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अरावली में कैसे बन गए सैकड़ों फॉर्म हाउस, क्या नेताओं व अधिकारियों ने ताक पर रखे कानून!

अरावली पहाड़ी क्षेत्र में बने अधिकतर फॉर्म हाउस देश के बड़े नेताओं से लेकर सेवानिवृत्त उच्च अधिकारियों के हैं। काफी फॉर्म हाउसों में पांच सितारा होटल जैसी सुविधाएं हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 03:59 PM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 04:17 PM (IST)
अरावली में कैसे बन गए सैकड़ों फॉर्म हाउस, क्या नेताओं व अधिकारियों ने ताक पर रखे कानून!
अरावली में कैसे बन गए सैकड़ों फॉर्म हाउस, क्या नेताओं व अधिकारियों ने ताक पर रखे कानून!

गुरुग्राम [आदित्य राज]। Gurugram Farmhouse News: “रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था” यह कहावत वन विभाग के ऊपर सटिक बैठती है। एनसीआर के लिए जीवनदायिनी कहे जाने वाली अरावली के सीने पर फॉर्म हाउस पर फॉर्म हाउस बनते चले गए और वन विभाग सोया रहा। यदि कभी नींद भी टूटी तो नोटिस देकर खानापूर्ति कर दी। नतीजा सैकड़ों फॉर्म हाउस बन गए। अदालत के सामने अपना साफ चेहरा दिखाने के लिए कभी-कभी एक-दो फॉर्म हाउस की दीवार पर बुलडोजर चला दिया गया। इससे साफ है कि वन अधिकारियों की उदासीनता या मिलीभगत से ही सैकड़ों फॉर्म हाउस बने लेकिन एक के खिलाफ भी कभी इसे लेकर कार्रवाई नहीं की गई।

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जानकारी के मुताबिक, हरियाणा के गठन के साथ ही अरावली पहाड़ी क्षेत्र में भूमि संरक्षण अधिनियम लागू है। जिस इलाके में यह अधिनियम लागू किया जाता है, उस इलाके में गैर वानिकी कार्य के लिए केंद्र सरकार से अनुमति आवश्यक है। इसके बाद भी गैर वानिकी कार्य जारी है। क्षेत्र की 10 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर गैर वानिकी कार्य हो रखे हैं। इनमें सैकड़ों फॉर्म हाउस शामिल हैं। फॉर्म हाउस के अलावा स्कूल, मंदिर, गौशाला एवं होटल आदि बने हुए हैं।

1990 से ही फॉर्म हाउस बनने शुरू हो गए थे

अरावली के सीने पर 1990 से ही फॉर्म हाउस बनने शुरू हो गए थे। वर्ष 2004-5 तक धड़ल्ले से बनते रहे। इसके बाद कुछ कमी आई लेकिन लगाम नहीं लगी। सबसे अधिक फॉर्म हाउस रायसीना, गैरतपुर बास, सांप की नंगली, सोहना, मानेसर, पचगांव, दमदमा, रिठौज, बंधवाड़ी, ग्वालपहाड़ी, घाटा एवं बालियावास के इलाके में बने हुए हैं। 7 मई 1992 को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा नोटिफिकेशन के मुताबिक गैर मुमकिन पहाड़ के इलाके में न ही पेड़ों की कटाई की जा सकती है और न ही निर्माण ही किया जा सकता है। यदि प्रशासन को भी कुछ कार्य करने हैं यानी रोड बनाने की आवश्यकता है, पाइप लाइन डालना हो या फिर बिजली के खंभे ही लगाने हो तो भी केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी। इसके बाद भी पूरे क्षेत्र में गैर वानिकी कार्य जारी रहे।

नेताओं से लेकर अधिकारियों के फॉर्म हाउस

अरावली पहाड़ी क्षेत्र में बने अधिकतर फॉर्म हाउस देश के बड़े नेताओं से लेकर सेवानिवृत्त उच्च अधिकारियों के हैं। काफी फॉर्म हाउसों में पांच सितारा होटल जैसी सुविधाएं हैं। कोरोना संकट की वजह से फॉर्म हाउसों में पार्टियां बंद हो गई हैं अन्यथा प्रतिदिन किसी न किसी इलाके में पार्टियां आयोजित की जाती थीं। हालांकि कोरोना संकट के दौरान भी एक पार्टी का पर्दाफाश कुछ दिन पहले गुरुग्राम पुलिस ने किया था। बंधवाड़ी इलाके में देर रात शराब पार्टी चल रही थी। मौके से कई युवतियां एवं युवक पकड़े गए थे।

फॉर्म हाउसों के मालिकों के तर्क

रायसीना इलाके में बने फॉर्म हाउसो के मालिकों के तर्क है कि अंसल अरावली रिट्रीट के लिए बिल्डर ने 1990 से पहले लगभग 1000 एकड़ जमीन निजी लोगों से खरीदी थी। इसे विकसित करने के लिए 1989 में डीटीपी से एनओसी मांगी गई थी। इस पर डीटीपी ने कहा था कि एग्रीकल्चर एक्टिविटी के लिए एनओसी की आवश्यकता नहीं है। 1991 में पटवारी ने अपनी रिपोर्ट में फार्म हाउसों को गैर मुमकिन फार्म हाउस करार दे रखा है। फार्म हाउस के मालिक राजेश वत्स उर्फ स्वामी कहते हैं कि एनजीटी के फैसले की कॉपी देखने के बाद आगे क्या करना है, इस बारे में निर्णय लिया जाएगा। बता दें कि एनजीटी ने बुधवार को आदेश जारी कर कहा है कि अगले साल फरवरी तक वन क्षेत्र में बने सभी फॉर्म हाउस हटा दिए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक पूरा अरावली पहाड़ी क्षेत्र ही वन क्षेत्र है। ऐसे में अरावली क्षेत्र में जहां भी फॉर्म हाउस बने हैं, सभी के ऊपर तलवार लटक गई है।

गैर वानिकी कार्यों की वजह से कम हुए वन्य जीव

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि अरावली पहाड़ी क्षेत्र में जब तक फॉर्म हाउस व अन्य निर्माण नहीं थे, तब तक हर तरफ वन्य जीव दिखाई देते थे। गैर वानिकी कार्यों की वजह से वन्य जीवों की संख्या कम हो गई। शोर से वन्य जीव अशांत होते हैं। अशांत होकर वे कई बार भागते-भागते रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं। बता दें कि पिछले 10 साल के दौरान 10 से अधिक तेंदुओं की मौत हो चुकी है।

पर्यावरण कार्यकर्ता व सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान के अनुसार, पूरे अरावली पहाड़ी क्षेत्र में भूमि संरक्षण अधिनियम लागू है। इस हिसाब से क्षेत्र में केंद्र सरकार की अनुमति के बिना हुए सभी निर्माण अवैध हैं। मैंने अपने कार्यकाल में काफी लड़ाई लड़ी थी। इस वजह से उस दौरान काफी हद तक लगाम लग गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई आदेश में साफ किया है कि अरावली पहाड़ी क्षेत्र वन क्षेत्र की परिभाषा में आएगा। बिना अधिकारियों की मिलीभगत के अवैध रूप से निर्माण नहीं हो सकते। फॉर्म हाउस ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के निर्माण ध्वस्त किए जाएं। साथ ही जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध निर्माण किए गए, पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

गुरुग्राम के जिला वन अधिकारी जय कुमार ने बताया कि एनजीटी के आदेश की कॉपी मिलने का इंतजार है। कॉपी मिलने के साथ ही सर्वे शुरू किया जाएगा। इससे पता चल सकेगा कि वन क्षेत्र में कहां-कहां फॉर्म हाउस बने हुए हैं। फॉर्म हाउसों की साइज क्या है। निर्माण करने से पहले अनुमति ली गई थी या नहीं। अधिकतर फॉर्म हाउस 15 से 20 साल पुराने हैं। सर्वे से पूरी सच्चाई सामने आएगी। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। पहले एनजीटी ने आदेश में क्या-क्या कहा है, यह देखना आवश्यक है।

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