Gurugram AQI: गुरुग्राम में 5 महीने से प्रदूषण पर ‘पर्दा’, जनवरी के बाद से नहीं मिल रहा डाटा
गुरुग्राम में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर प्रदूषण के आंकड़े छुपाने का आरोप है। पिछले पांच महीनों से प्रदूषण मापने वाले यंत्र बंद पड़े हैं जिससे डेटा नहीं मिल रहा है। सरकार प्रदूषण कम करने के लिए करोड़ों खर्च करने की योजना बना रही है लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से यह योजना विफल हो रही है। शहर में निर्माण कार्य और वाहनों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है।

संदीप रतन, गुरुग्राम। देश ही नहीं दुनिया के प्रदूषित शहरों में शामिल गुरुग्राम में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी प्रदूषण पर पर्दा डाल रहे हैं। पांच महीने से प्रदूषण मापक यंत्रों से प्रदूषण का डाटा नहीं मिल रहा है।
शहर में विकास सदन, सेक्टर 51 और ग्वाल पहाड़ी में प्रदूषण मापक यंत्र लगे हुए हैं, लेकिन जनवरी के बाद से यह बंद पड़े हैं। फरवरी से लेकर अब तक पांच महीने से ज्यादा समय बीत गया है, पर अधिकारियों को इन यंत्रों को चालू करवाने की चिंता नहीं है।
यह हाल तब है, जब प्रदेश सरकार प्रदूषण से निपटने और एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) सुधारने के लिए 3600 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना चुकी है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी ऐसी योजनाओं पर पानी फेर रहे हैं।
कैसे कम होगा प्रदूषण?
गुरुग्राम में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर रहता है और जब प्रतिदिन एक्यूआई का डाटा ही उपलब्ध नहीं होगा तो ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि प्रदूषण को कम करने के लिए उपाय कैसे हाेंगे।
गुरुग्राम मेट्रोपालिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) ने भी गुरुग्राम और फरीदाबाद में आठ वैदर स्टेशन बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन दो साल बाद भी धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। इस संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की क्षेत्रीय अधिकारी आकांक्षा तंवर को फोन किया गया और वाट्सएप पर मैसेज भेजे, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
गैस चैंबर बन जाता है गुरुग्राम
आइटी- इंडस्ट्री का हब होने के कारण गुरुग्राम में पिछले डेढ दशक में आबादी बढ़ने के साथ ही सड़कों पर वाहनों का दबाव भी बढ़ गया है। बिल्डिंग निर्माण कार्य भी दिन-रात हो रहे हैं, यही वजह है कि प्रदूषण लोगों का दम घोंटने लगा है। वैसे तो पूरे साल शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब रहता है, लेकिन अक्टूबर से लेकर फरवरी तक पूरा एनसीआर गैस चैंबर बन जाता है।
सांसों में जहर घोल रही गैसें
सर्दियों में एक्यूआई 400 को पार कर जाता है, वहीं दीपावली के आसपास एक्यूआई 500 के समीप पहुंच जाता है। स्मॉग नहीं छंटने के कारण प्रदूषण बच्चों से लेकर बजुर्गों तक की सेहत पर दुष्प्रभाव रहता है। बेहद खराब स्थिति होने पर कई बार स्कूलों में भी अवकाश घोषित हो जाता है।
वाहनों से निकले धुएं, धूल से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड सहित अन्य गैसें सांसों में जहर घोलती हैं। इसके कारण सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। लोग आंखों में जलन, गले में खराश, खांसी और सिरदर्द जैसी समस्या पूरा साल झेलते हैं।
धूल और धुएं में उड़ते हैं नियम
ज्यादा प्रदूषण होने पर उपायों के तौर पर ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के प्रतिबंध लागू रहते हैं। ग्रेप के तीसरे चरण में बिल्डिंग निर्माण कार्य भी बंद होते हैं, लेकिन इसके बावजूद नियमों का पालन नहीं होता।
जिला प्रशासन, नगर निगम सहित अन्य विभाग सड़कों पर पानी का छिड़काव करके खानापूर्ति कर देते हैं। प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए बीएस 3 (पेट्रोल) और बीएस 4 (डीजल) वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने जैसे सरकारी आदेश जारी होते हैं, लेकिन यह सब हवा को स्वच्छ बनाने की दिशा में स्थायी इंतजाम नहीं है।
शहर में बन गए मलबे के पहाड़
मलबा निपटान की जिम्मेदारी गुरुग्राम नगर निगम की है, लेकिन सेक्टर 29 सहित गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड, दिल्ली जयपुर हाईवे पर नरसिंहपुर, फरीदाबाद रोड और सेक्टर 31 में हाईवे के किनारे मलबा फेंका जा रहा है। इसके कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। ज्यादा धूल उड़ने वाले क्षेत्रों में एंटी स्माग गन लगाकर प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
50 से ऊपर एक्यूआई स्वास्थ्य के लिए खतरनाक
एक्यूआई - स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
- 0-50 - कोई दुष्प्रभाव नहीं
- 51-100 - संवेदनशील लोगों को सांस लेने में तकलीफ
- 101-150 - आंखों में जलन, सांस और दिल के मरीजों के लिए खतरनाक
- 151-200 - सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
- 201-300 - घर के अंदर रहने की सलाह
- 301- 500 - अति प्रदूषित, स्वास्थ्य के लिए अलर्ट
पौधरोपण का सिर्फ कागजी प्लान
शहर में आबादी बढ़ने के साथ ही हरियाली का दायरा लगातार घट रहा है। शहर के आसपास खाली जमीन नहीं बची है। कृषि योग्य भूमि से भी पेड़ों की कटाई होती है।
नगर निगम गुरुग्राम, नगर निगम मानेसर और गुरुग्राम मेट्रोपालिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) द्वारा हर साल मानसून में लाखों पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है, लेकिन पौधे लगाने और इनकी देखभाल करने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास नहीं किए गए हैं। इस मानसून के लिए भी जीएमडीए और नगर निगम के पास पौधरोपण की कोई खास योजना नहीं है।
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