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    रुग्राम में 15 साल से फ्लैट का इंतजार कर रहे सैकड़ों परिवार, सरकार से लगाई मदद की गुहार

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 02:01 PM (IST)

    नया गुरुग्राम की रामप्रस्थ सिटी परियोजना में फ्लैट बुक कराने वाले कई परिवार 15 साल से अपने आशियाने का इंतजार कर रहे हैं। हर साल झूठे वादे मिलते हैं जिससे वे आर्थिक और मानसिक रूप से टूट चुके हैं। होम बायर्स एसोसिएशन सरकार से हस्तक्षेप और अटैच संपत्तियों को सौंपने की मांग कर रही है ताकि वे अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा कर सकें।

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    रामप्रस्थ सिटी परियोजना के निर्माणाधीन फ्लैट। जागरण

    गौरव सिंगला, नया गुरुग्राम। रामप्रस्थ सिटी परियोजना में फ्लैट या प्लॉट बुक कराने वाले सैकड़ों परिवारों के लिए बीते 15 साल किसी यातना से कम नहीं। आज भी उन्हें अपने आशियाने की प्रतीक्षा है। यह इंतजार अब सिर्फ देरी नहीं, बल्कि एक मानवीय त्रासदी का रूप ले चुका है।

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    आवंटी कपिल मित्तल ने 2011 में इस परियोजना में फ्लैट बुक किया था। 85 प्रतिशत से ज्यादा भुगतान कर चुके कपिल कहते हैं कि हर साल कहा जाता है कि अगले साल कब्जा मिलेगा, लेकिन हर बार सिर्फ झूठे वादे मिले। बैंक का लोन चल रहा है, ब्याज की किश्तें दे रहे हैं, ऊपर से रेंट भी भरना पड़ रहा है।

    अब तो लगने लगा है जैसे जिंदगी भर इंतजार ही करना है। एक अन्य आवंटी महिंदर सिंह का कहना है कि जब हमने फ्लैट बुक किया था तो अपने घर होने को लेकर कई सपने संजोए थे लेकिन हम अब भी किराये के मकान में हैं। हमें न सुरक्षा मिली, न स्थायित्व।

    रामप्रस्थ सिटी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप राही का कहना है कि सरकार और अन्य कानूनी संस्थाओं को उन सैकड़ों होम बायर्स के हितों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए जिन्होंने अपनी जीवनभर की कमाई इस प्रोजेक्ट में लगा दी।

    हम बिल्डर के खिलाफ कोर्ट में प्रोजेक्ट की कंप्लीशन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि रामप्रस्थ सिटी 37डी के सभी अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करवाने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाए जाएं।

    ईडी द्वारा अटैच की गई सभी संपत्तियों को होम बायर्स एसोसिएशन को सौंपा जाना चाहिए, ताकि हम खुद इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करवा सकें। उन्होंने खुद द एज टावर में फ्लैट का कब्जा ले लिया है, लेकिन वहां आज तक क्लब हाउस चालू नहीं हुआ है। कई आवंटियों की उम्र ढल गई, बच्चों का भविष्य अधर में है। लगातार चल रहे मानसिक और आर्थिक संघर्ष ने कई परिवारों को भीतर से तोड़ दिया है।