Year Ender 2025: साइबर सिटी, मिलेनियम सिटी तो कभी सिंगापुर..., गुरुग्राम को एक बस स्टैंड तक न मिला
गुरुग्राम, जिसे साइबर सिटी और मिलेनियम सिटी जैसे नामों से जाना जाता है, को 2025 के अंत तक भी एक बस स्टैंड नहीं मिल पाया है। शहर के विकास और बुनियादी ढ ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, गुरुग्राम। साइबर सिटी, मिलेनियम सिटी तो कभी सिंगापुर से तुलना... लेकिन सच्चाई यह है कि गुरुग्राम शहर के पास अपना बस स्टैंड तक नहीं है। टीन शेड और अस्थायी ढांचों के नीचे बस स्टैंड चलाया जा रहा है। हेलीपोर्ट बनाने और डिज्नीलैंड बनाने तक की बातें खूब हो रही हैं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन जैसी मूलभूत सुविधा पर कोई बात नहीं कर रहा।
नतीजन, आईटी और इंडस्ट्री के हब इस शहर में लोग ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा, कैब और प्राइवेट बसों या अपनी कारों में सफर करने को मजबूर हैं। गुरुग्राम से मानेसर या शहर से उद्योग विहार, साइबर हब, बस स्टैंड क्षेत्र में बसें नहीं मिलने के कारण यात्री परेशान हैं।
समय पर बस नहीं मिलने के कारण यात्रियों को मजबूरन कैब, ऑटो रिक्शा या फिर अपनी कार से सफर करना पड़ रहा है। शहर में प्रदूषण घटाने के लिए ई रिक्शा चलाए जाने थे, पर योजना सिरे नहीं चढ़ सकी।
मेट्रो स्टेशनों से सिटी बसों की कनेक्टिविटी भी नहीं होने के कारण यात्रियों को सार्वजनिक परिवहन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) काॅरिडोर, पुराने शहर को मेट्रो से जोड़ने, बस स्टैंड निर्माण, रोडवेज और सिटी बसों के रूटों की संख्या बढ़ाने सहित कई ऐसी योजनाए हैं जिन पर काम ही नहीं हुआ। प्रस्तुत है दैनिक जागरण गुरुग्राम से वरिष्ठ संवाददाता संदीप रतन की रिपोर्ट:
दस वर्ष बाद भी नहीं बना बस स्टैंड
वर्ष 2015 में पीडब्ल्यूडी ने शहर के रोडवेज बस स्टैंड को जर्जर घोषित किया था। बस स्टैंड की जर्जर बिल्डिंग को तोड़ा जा चुका है। नया बस स्टैंड निर्माण सीही गांव में प्रस्तावित है और अभी तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। टीन शेड के नीचे बस स्टैंड चल रहा है और प्रचंड गर्मी व सर्दी तथा वर्षा के दिनों में यात्रियों को परेशानी होती है।
- 40 लाख शहर की आबादी है।
- 150 लो फ्लोर सिटी बसें चल रही हैं।
- 4.5 लाख से ज्यादा कैब-टैक्सी और निजी कारें दिनभर शहर की सड़कों पर रहती हैं।
- 32 हजार से आटो रिक्शा हैं।
- 2.5 लाख लगभग (प्रतिदिन) यात्री सफर करते हैं।
- 214 रोडवेज बसें शहर से आवागमन करती हैं।
मेट्राे का काम शुरू पर धीमी गति से चल रहा
मेट्रो की येलो लाइन के जरिए गुरुग्राम दिल्ली से कनेक्ट है। प्रतिदिन हजाराें नौकरीपेशा लोग नाेएडा, गाजियाबाद, दिल्ली से गुरुग्राम तक सफर करते हैं। गुरुग्राम में मिलेनियम सिटी सेंटर इसका अंतिम स्टेशन है। पुराने शहर में मेट्रो रूट निर्धारित हो गया है। मेट्रो लाइन का निर्माण कार्य तो शुरू हो गया है, लेकिन धीमी गति से चल रहा है। मजबूरन लोग आटो रिक्शा, कैब या टैक्सी और निजी वाहनों से सफर करते हैं।
150 बसें नाकाफी, इलेक्ट्रिक बसों का भी इंतजार
शहर में गुरुग्राम मेट्रोपालिटन सिटी बस लिमिटेड (जीएमसीबीएल) की 150 सिटी बसें चल रही हैं और इनमें प्रतिदिन लगभग 50 हजार से ज्यादा यात्री सफर करते हैं। फिलहाल जीएमसीबीएल की लो फ्लोर सीएनजी आधारित बसें चलाई जा रही है।
गुरुग्राम शहर के अलावा सिटी बसाें का संचालन सोहना और मानेसर सहित आसपास के कस्बों तक किया जा रहा है। साइबर सिटी में 100 इलेक्ट्रिक बसें भी 32 रूटों पर चलाने की योजना है। लेकिन पिछले डेढ़ वर्ष से इन बसों का इंतजार हो रहा है।
नए रूटों का नहीं हुआ सर्वे
शहर की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में नए रूटों का सर्वे कर बसों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। जीएमसीबीएल 25 मार्गों पर सिटी बसें चलाई जा रही हैं। पीक आवर्स के दौरान ज्यादा बसें चलाने की आवश्यकता है। शहर में लगभग 450 बस क्यू शेल्टर हैं।
2031 तक गुरुग्राम में 1025 बसों की होगी जरूरत
जीएमडीए की मोबिलिटी डिवीजन के एक सर्वे के अनुसार बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त बस सेवा प्रदान करने के लिए वर्ष 2031 तक गुरुग्राम में 1025 बसों की आवश्यकता होगी।
भविष्य में बस सेवाओं की निर्बाध सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए, बस डिपो और टर्मिनल जैसे पर्याप्त बुनियादी ढांचे की स्थापना भी की जानी है। सेक्टर 103, सेक्टर 65 और सेक्टर 48 में सिटी बस डिपो निर्माण होना है।
पाॅड टैक्सी योजना भी हुई फेल
दिल्ली के धौलाकुआं से गुरुग्राम तक पाॅड टैक्सी चलाने की योजना धरातल पर नहीं उतरी है। इस योजना के तहत दिल्ली से गुरुग्राम के बीच पाॅड टैक्सी चलाने की योजना थी। वर्ष 2016 में बड़े जोर-शोर से इस प्रोजेक्ट की चर्चा हुई, लेकिन प्रोजेक्ट फाइलों से बाहर नहीं आया।
पर्यावरण अनुकूल हो सार्वजनिक परिवहन: आरके कंसल
गुरुग्राम आज देश के सबसे तेजी से बढ़ते शहरी क्षेत्रों में शामिल है। आईटी, उद्योग, रियल एस्टेट और रोजगार के अवसरों ने यहां आबादी और वाहनों की संख्या में लगातार इजाफा किया है। इसका सीधा असर सड़कों पर बढ़ते ट्रैफिक दबाव, वायु प्रदूषण और नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। ऐसे में समय की सबसे बड़ी जरूरत है कि शहर में पर्यावरण अनुकूल सार्वजनिक परिवहन को मजबूती दी जाए। यह कहना है पीडब्ल्यूडी से सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता आरके कंसल का।
वर्तमान स्थिति यह है कि निजी कारें और दोपहिया वाहन रोजमर्रा की आवाजाही का मुख्य साधन बने हुए हैं। इसका कारण केवल सुविधा नहीं, बल्कि भरोसेमंद और पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन का अभाव भी है। सिटी बसों की संख्या सीमित है और कई रिहायशी सेक्टरों व औद्योगिक इलाकों तक इनकी पहुंच नहीं है।
परिणामस्वरूप लोग मजबूरी में निजी वाहन इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सड़कें जाम हो रही हैं और प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच रहा है। यदि सरकारी और सिटी बसों की संख्या बढ़ाई जाए, उनके रूट को तर्कसंगत तरीके से विस्तार दिया जाए और समयबद्ध संचालन सुनिश्चित किया जाए, तो बड़ी आबादी को निजी वाहनों से हटाकर सार्वजनिक परिवहन की ओर मोड़ा जा सकता है।
इलेक्ट्रिक और सीएनजी बसों को प्राथमिकता देकर न केवल ईंधन खर्च घटाया जा सकता है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। इससे शहर का एक्यूआई सुधारने में मदद मिलेगी।
मेट्रो और आरआरटीएस जैसी आधुनिक परिवहन सुविधाएं गुरुग्राम के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं। जब लोगों को तेज, सुरक्षित और किफायती विकल्प मिलते हैं, तो वे स्वेच्छा से निजी कारों का उपयोग कम करते हैं।
मेट्रो नेटवर्क का और विस्तार, आरआरटीएस को शहर के प्रमुख आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों से जोड़ना तथा बस सेवाओं के साथ बेहतर इंटीग्रेशन करना बेहद जरूरी है। अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी मिलने से सार्वजनिक परिवहन वास्तव में लोगों की पहली पसंद बन सकता है।
पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारी नीतियों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक योजनाओं से संभव है। गुरुग्राम जैसे शहर में टिकाऊ विकास तभी संभव है जब परिवहन व्यवस्था प्रदूषण कम करने वाली, सुलभ और विश्वसनीय हो।
सार्वजनिक परिवहन में निवेश को खर्च नहीं, बल्कि भविष्य की सेहत और पर्यावरण में निवेश के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि आज सही कदम उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में गुरुग्राम एक स्वच्छ, सुगम और पर्यावरण अनुकूल शहर के रूप में पहचान बना सकता है।

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