Gurugram Crime: भोंडसी में मिली दफन लाश का रहस्य उलझा, DNA ने पलट दिया पूरा केस
गुरुग्राम के भोंडसी में दफन लाश का मामला उलझ गया है। अदालत ने हरीश पाल और उसकी पत्नी धनदेवी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया क्योंकि डीएनए रिपोर्ट मृ ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, बादशाहपुर। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश पुनीत सहगल की अदालत ने बहुचर्चित भोंडसी हत्याकांड में आरोपित दंपत्ति हरीश पाल और उसकी पत्नी धनदेवी को बरी कर दिया। डीएनए रिपोर्ट में शव की पहचान मृतक के परिवार से मैच नहीं हुई।
मृतक 14 अप्रैल 2022 को अपने घर से गाजियाबाद शादी में शामिल होकर दो-तीन दिन में वापस आने की बात कह कर आया था। उसके बाद सितंबर में उत्तराखंड और गुरुग्राम पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में भोंडसी में दबाया हुआ उसका शव बरामद हुआ। पुलिस ने जेसीबी से खोदकर शव निकाला।
अप्रैल 2022 में बन्ने मौर्य संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गए थे। परिजनों ने गुमशुदगी की शिकायत उत्तराखंड में दर्ज करवाई। शक के आधार पर भोंडसी में रहने वाले दंपत्ति हरीश और धनदेवी को उत्तराखंड पुलिस ने पूछताछ में शामिल किया गया।
पुलिस के अनुसार दोनों ने बताया कि 14 अप्रैल 2022 को मृतक भोंडसी में उनके कमरे पर आया था। हरीश ने अपनी पत्नी के साथ उसे देखा तो गुस्से में हत्या कर दी। आरोप था कि पति-पत्नी ने मिलकर शव को पास के खेतों में दफना दिया। उत्तराखंड और गुरुग्राम पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में सितंबर 2022 को मौके से दबाया हुआ शव बरामद किया गया।
तहसीलदार (ड्यूटी मजिस्ट्रेट) की निगरानी में खुदाई कर शव निकाला गया। जिसकी पहचान स्वजनों ने कपड़ों के आधार पर की। भोंडसी पुलिस ने मृतक के भाई की शिकायत पर मामला दर्ज किया। पुलिस ने इसे हत्या और साक्ष्य मिटाने का मामला मानते हुए दंपत्ति को जेल भेज दिया।
लेकिन अदालत में मामला उलट गया। अभियोजन पक्ष का मुख्य आधार ही कमजोर हो गया। पोस्टमार्टम में भी मृत्यु का निश्चित कारण निर्धारित नहीं हो सका। पुलिस अदालत में ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं कर सकी जिससे यह साबित हो कि बरामद शव वास्तव में बन्ने मौर्य का ही था।
डीएनए टेस्ट में भी मृतक बन्ने मौर्य के शव का मिलान उसकी मां और भाई के डीएनए से नहीं हुआ। सीडीआर से यह जरूर सामने आया कि घटना वाले दिन हरीश और मृतक के मोबाइल की लोकेशन एक ही क्षेत्र में थी। अदालत ने इसे पर्याप्त नहीं माना और कहा कि यह केवल उपस्थिति का संकेत है। हत्या से जोड़ने वाला पुख्ता प्रमाण नहीं।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता विपिन गुप्ता ने दलील दी कि पूरा मामला पुलिस की जल्दबाजी और अनुमान पर आधारित था। न तो हत्या का तरीका सिद्ध हुआ। न ही शव की पहचान वैज्ञानिक रूप से स्थापित हो सकी। अदालत ने इन तर्कों से सहमति जताते हुए संदेह के लाभ में आरोपित दंपति को बरी कर दिया।

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