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    तलाक के कगार पर खड़ा था रिश्ता, 18 साल से अलग रह रहे पति-पत्नी फिर हुए एक; फैमिली कोर्ट ने मिटाईं दूरियां

    By Mahavir YadavEdited By: Kushagra Mishra
    Updated: Sat, 13 Dec 2025 08:12 PM (IST)

    राष्ट्रीय लोक अदालत ने 18 साल से अलग रह रहे एक जोड़े को फिर से मिला दिया। यह मामला साबित करता है कि न्याय केवल फैसला सुनाने का माध्यम नहीं, बल्कि रिश् ...और पढ़ें

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    महावीर यादव, बादशाहपुर: जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर में राष्ट्रीय लोक अदालत में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला। जिसने न्याय की मानवीय और संवेदनशील तस्वीर को जीवंत कर दिया। पति-पत्नी के बीच 18 वर्षों से चला आ रहा अलगाव आखिरकार प्रेम, समझ और विश्वास में बदल गया।

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    राष्ट्रीय लोक अदालत की पहल से दंपती एक बार फिर वैवाहिक जीवन की नई शुरुआत के लिए साथ हो गए। दोनों का विवाह 4 दिसंबर 2001 को हुआ था। इस दंपती से 9 अप्रैल 2004 को पुत्र की प्राप्ति हुई। दोनों ही उच्च शिक्षित और अपने-अपने पेशे में सफल हैं।

    पति जहां बीई और एमटेक हैं वहीं पत्नी एमए, बीएड और एमफिल जैसी उच्च डिग्रियां रखती हैं। इसके बावजूद वैवाहिक जीवन में आई कड़वाहट के चलते 5 जुलाई 2008 को दोनों अलग हो गए। आपसी विवाद सुलझाने के कई प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली।

    2016 में पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत याचिका दायर की गई। 27 अक्टूबर 2020 को तलाक की याचिका दाखिल हुई। मामला अपने अंतिम चरण में था। जब राष्ट्रीय लोक अदालत ने इसे एक नया मोड़ दिया।

    अदालत ने न केवल न्याय की ही बात की बल्कि रिश्ते की डोर टूटने से बचा ली। अदालत ने दो दिलों को जुदा होने से बचाकर एकजुट कर मिसाल कायम कर दी। राष्ट्रीय लोक अदालत की बेंच में अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश (फैमिली कोर्ट) की जज पूनम कंवर और विधिक सहायता सदस्य अलरीना सेनापति शामिल थीं।

    मध्यस्थता के दौरान दोनों पक्षों को न सिर्फ सुना बल्कि रिश्ते की गहराई और परिवार के महत्व को भी महसूस कराया। इसी संवेदनशील प्रयास का परिणाम रहा कि 18 वर्षों से अलग रह रहे पति-पत्नी ने अपने सारे गिले-शिकवे भुलाकर फिर से साथ रहने का निर्णय लिया।

    पति ने तलाक की याचिका वापस ले ली और पत्नी को सम्मानपूर्वक रखने का संकल्प लिया। एबी ने उसी दिन से पति के साथ रहने की सहमति दी। भावुक क्षणों के बीच एबी अदालत परिसर से ही अपने पति के साथ ससुराल चली गईं।

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    यह मामला साबित करता है कि न्याय केवल फैसला सुनाने का माध्यम नहीं। बल्कि टूटते रिश्तों को जोड़ने की शक्ति भी रखता है। राष्ट्रीय लोक अदालत ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि संवाद और समझ से वर्षों पुरानी दूरियां भी मिटाई जा सकती हैं।



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    -राकेश कादियान, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी एवं सचिव जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण