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    Faridabad News: बुढ़िया नाले में समाहित होगा यमुना का पानी, बनेगा भूजल स्तर बढ़ाने का केंद्र

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 11:37 PM (IST)

    फरीदाबाद में अरावली से यमुना तक बहने वाले बुढ़िया नाले को भूजल स्तर बढ़ाने के लिए विकसित किया जा रहा है। बाढ़ के पानी को संरक्षित करने के लिए वर्षा जल संचयन प्रणाली लगाई जाएगी। फरीदाबाद महानगर विकास प्राधिकरण ने सर्वेक्षण के लिए एजेंसी नियुक्त की है। सिंचाई विभाग से एनओसी मिलने का इंतजार है। इस परियोजना से भूजल स्तर में सुधार होगा और जलभराव की समस्या कम होगी।

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    बुढ़िया नाले को भूजल स्तर बढ़ाने के लिए विकसित किया जा रहा है। फाइल फोटो

    प्रवीण कौशिक, फरीदाबाद। अरावली पहाड़ियों से यमुना नदी में बहने वाले बुढ़िया नाले को भूजल स्तर बढ़ाने के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने की तैयारी चल रही है। बाढ़ के दौरान, बुढ़िया नाले में कई किलोमीटर तक पानी जमा हो जाता है। इस पानी को संरक्षित करने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। इसके लिए नाले में विभिन्न स्थानों पर वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ स्थापित की जाएंगी।

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    फरीदाबाद महानगर विकास प्राधिकरण ने एक परामर्श एजेंसी नियुक्त की है जो सर्वेक्षण करेगी और यह निर्धारित करेगी कि प्रणालियां कहां स्थापित की जाएंगी, उनकी गहराई कितनी होनी चाहिए और प्रतिदिन कितने लीटर पानी भूजल तक पहुँच सकेगा। इस योजना को सरकारी मंज़ूरी मिल गई है।

    अब बस सिंचाई विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने की आवश्यकता है, क्योंकि बुढ़िया नाला इसी विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। प्राधिकरण ने एनओसी के लिए विभाग को आवेदन कर दिया है। याद रहे, यह नाला बारिश के दौरान अरावली पहाड़ियों से शहर के एक बड़े हिस्से तक पानी पहुँचाने का एक प्रमुख माध्यम है। सारा पानी इसी से होकर यमुना नदी में जाता है।

    भूजल स्तर के मामले में जिला डार्क जोन में

    फ़रीदाबाद भूजल स्तर के मामले में डार्क ज़ोन में है। यमुना नदी के किनारे भी जल स्तर 80 से 100 फ़ीट नीचे है। पहाड़ी इलाकों में तो जल स्तर 600 से 700 फ़ीट तक पहुँच गया है। स्थिति चिंताजनक है। इसलिए, सरकार ने फरीदाबाद महानगर विकास प्राधिकरण को भूजल स्तर बढ़ाने की दिशा में काम करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। इस पहल के तहत, बुढ़िया नाले का भी उपयोग किया जाएगा।

    लगभग 18 किलोमीटर लंबा बुढ़िया नाला अरावली पहाड़ियों से यमुना नदी तक जाता है। यह नाला यमुना नदी में गिरता है। बाढ़ के दौरान, यमुना नदी का पानी इस नाले में वापस आ जाता है। इससे नाला ओवरफ़्लो हो जाता है और आसपास के रिहायशी इलाकों और खेतों में पानी भर जाता है। अगर नाले में वर्षा जल संचयन प्रणाली लगाई जाए, तो यमुना का पानी ज़मीन के नीचे रिस सकेगा और आसपास के इलाकों में जलभराव को रोका जा सकेगा।

    सरकार भी इस मामले को लेकर गंभीर 

    सिंचाई विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने के लिए उच्चस्तरीय अधिकारी भी सक्रिय हो गए हैं। मुख्यमंत्री के शहरी विकास सलाहकार डी.एस. ढेसी ने भी प्राधिकरण के अधिकारियों को शीघ्र कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

    उन्होंने इस संबंध में सिंचाई विभाग के अधिकारियों से भी बात की और अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) का अनुरोध किया। उम्मीद है कि अगले मानसून तक नाले में वर्षा जल संचयन प्रणाली लगाने का काम पूरा हो जाएगा।

    जल संरक्षण नहीं हो रहा

    हर साल मानसून के मौसम में यमुना नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। हालाँकि, यह पानी जिले की सीमा से बाहर बह जाता है। इस पानी के संरक्षण के लिए भूजल संरक्षण के प्रयास अभी तक शुरू नहीं हुए हैं।

    प्राधिकरण ने नदी के किनारे रेनीवेल लगाए हैं, जिनसे पूरा शहर पानी खींचता है। इनका जलस्तर गिर रहा है। अगर नदी के किनारे बाढ़ के पानी का संरक्षण किया जाए, तो भूजल स्तर बढ़ेगा और रेनीवेल साल भर रिचार्ज होते रहेंगे।

    यह नाला यमुना में गिरता है। जब भी बाढ़ आती है, यमुना का पानी कई किलोमीटर तक बहकर इस नाले में वापस आ जाता है। यह नाला 2023 में टूटा था और इस बार भी।

    - राकेश कुमार, उप-मंडल अधिकारी, सिंचाई विभाग

    यह परियोजना बेहद कारगर साबित होगी। यह नाला यमुना जल संरक्षण का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। हर घंटे लाखों लीटर पानी ज़मीन के नीचे रिस सकेगा। इसका सीधा असर भूजल स्तर पर पड़ेगा। सर्वेक्षण के लिए एक परामर्श एजेंसी नियुक्त की गई है। अब केवल सिंचाई विभाग की अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) का इंतज़ार है।

    - विशाल बंसल, मुख्य अभियंता, प्राधिकरण