Delhi Blast: पुलिस का खुफिया तंत्र फेल, बीट सिस्टम भी बंद, सवालों के घेरे में फरीदाबाद की लोकल इंटेलिजेंस
फरीदाबाद में आतंकी गतिविधियों के सामने आने के बाद पुलिस के खुफिया तंत्र पर सवाल उठ रहे हैं। मार्च में अब्दुल रहमान और अल-फलाह यूनिवर्सिटी में हुई आतंक ...और पढ़ें
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दीपक पांडेय, फरीदाबाद। मार्च माह में पाली गांव में पकड़े गए अब्दुल रहमान और उसके ठीक आठ माह बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी में हुई आतंकी गतिविधि ने पूरे पुलिस प्रशासन के खुफिया तंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है।
खाकी के खुफिया सूचना तंत्र के पास पल-पल की जानकारी होती है, जो जिले के शीर्ष पुलिस अधिकारियों से लेकर मुख्यालय पहुंचाई जाती हैं, पर उपरोक्त दो मामलों के बारे में देरी से पता चलने से स्पष्ट है कि कहीं न कहीं तो तंत्र कमजोर हुआ है और इसे प्रभावी व मजबूत करने की जरूरत है, ताकि फिर किसी गांव, शहर, संस्थान में अल फलाह जैसे सफेदपोश आतंकी अपनी जड़ें न जमा पाएं।
सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं क्योंकि धौज थाने से करीब चार किलोमीटर दूर अल फलाह यूनिवर्सिटी के पास और फतेहपुर तगा गांव में सफेदपोश आतंकी विस्फोटक पदार्थ का भंडारण करते रहे, यूनिवर्सिटी के अंदर तक आधुनिक हथियार लाते रहे और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लग पाई।
इससे पहले मार्च माह में अयोध्या राम मंदिर को उड़ाने को टास्क लेकर आया आतंकी अब्दुल रहमान ओल्ड फरीदाबाद रेलवे स्टेशन से होकर पाली गांव के खेतों तक पहुंच गया। लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी। बाद में गुजरात एसटीएफ से मिले इनपुट पर पलवल एसटीएफ ने अब्दुल रहमान को खेत में बने कोठरे से पकड़ा था।
इस घटना के बाद भी पुलिस ने अपनी सूचना व्यवस्था को दुरुस्त करना मुनासिब नहीं समझा और अल फलाह यूनिवर्सिटी के सफेदपोश आतंकियों के कारनामे सामने आ गए। इसमें भी धौज थाना पुलिस और गुप्तचर विभाग को कोई जानकारी नहीं लगी।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के इनपुट पर स्थानीय पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन का नाम देकर आतंकी डाक्टर मुजम्मिल को गिरफ्तार किया था। और उसके बाद धौज और फतेहपुर तगा से विस्फोटक बरामद किया गया।
इन दोनों घटनाओं से स्पष्ट है कि स्थानीय पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से फेल रहा। हालांकि स्थानीय पुलिस के शीर्ष अधिकारी जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ की गई कार्रवाई को संयुक्त आपरेशन का नाम देकर अपनी नाकामी को छिपाने का प्रयास करते नजर आए।
शहरी क्षेत्र में सीमित सीआईडी व मुखबिर
स्थानीय पुलिस को गुप्त व संदिग्ध सूचनाएं देने के लिए गुप्तचर विभाग यानी सीआईडी व मुखबिर तंत्र होता है। सीआईडी के स्टाफ के साथ-साथ इंस्पेक्टर और जिले में एक डीएसपी होता है। डीएसपी के माध्यम से गुप्त सूचनाएं उनके एसपी और वहां से उनके आईजी, डीजी तक पहुंचती हैं। वहां से प्रत्येक जिले के शीर्ष पुलिस अधिकारियों तक जानकारी आती है।
प्रत्येक थाने में जिला पुलिस मुख्यालय से एक एसए यानी सुरक्षा एजेंट तैनात होता है, जो थाना क्षेत्र की रिपोर्ट पुलिस आयुक्त कार्यालय तक पहुंचाते हैं। इसी तरह से निजी लोगों का मुखबिर तंत्र होता है, जिन्हें पुलिस विभाग बकायदा भुगतान करती है। इनके अलावा इंटेलिजेंस ब्यूराे अलग होता है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार सीआईडी शहरी क्षेत्र में ही ज्यादा रहती है, दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्र में क्या हो रहा है, इस बारे में ज्यादा सक्रिय रहने की गंभीरता नहीं दिखाते। वहीं उनकी अधिकतर सूचनाएं यूनियन के धरना प्रदर्शन और नेताओं के आवागमन तक ही सीमित रहती हैं। इन सबके अतिरिक्त आतंकी गतिविधियों की सूचना को लेकर पुलिस के पास अलग से कोई स्पेशल स्टाफ नहीं है।
बीट सिस्टम पूरी तरह से हो चुका है खत्म
डीजीपी ओपी सिंह ने फरीदाबाद का पुलिस आयुक्त रहते बीट सिस्टम शुरू किया था। जिसमें प्रत्येक थाना प्रभारी को आदेश दिया गया था कि वह पुलिसकर्मियों को अलग-अलग क्षेत्रों में निगरानी की ड्यूटी दे। उनका कहना था कि थाना प्रभारी को अपने एरिया में होने वाली प्रत्येक गतिविधि की जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही उसके पास पूरा डाटा होना चाहिए। उनके ट्रांसफर के बाद बीट सिस्टम आगे नहीं बढ़ पाया।
यह कहना सही नहीं है कि स्थानीय पुलिस को अल फलाह के बारे में पता नहीं चला। समय से पता चल गया तभी तो विस्फोटक पदार्थ की बरामदी हो गई। बाकी पुलिस आयुक्त की ओर से सभी थाना प्रभारियों और चौकी इंचार्ज को आदेश दिया गया कि वह लोगों के बीच अधिक समय व्यतीत करे। पंचायतों और एसोसिएशन के साथ बैठक करे। उनसे गांव या सेक्टर में आने वाले नए व्यक्ति के बारे में जानकारी लेे। ताकि पुलिस का सूचना तंत्र मजबूत हो सके। इस बारे में थाना प्रभारी को पुलिस आयुक्त को अपनी रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।
-यशपाल सिंह, प्रवक्ता, फरीदाबाद पुलिस
हां, यह सही है। दोनों घटनाओं के बाद सूचना तंत्र को अधिक मजबूत करने की जरूरत है। सरकार को भी पुलिस थानों में स्टाफ बढ़ाना चाहिए। क्योंकि जितने पुलिसकर्मी हर माह सेवानिवृत होते हैं। उस हिसाब से नियुक्ति नहीं हो पाती है। स्थानीय स्तर पर थाना चौकी के पुलिसकर्मियों को अपनी पहुंच आम जन तक बढ़ानी चाहिए। उनको मार्केट और शिक्षण संस्थानों में समय-समय पर विजिट करना चाहिए। स्टाफ से अपने संबंध अच्छे करने चाहिए। ताकि किसी भी नए व्यक्ति के आगमन की जानकारी पुलिस तक तुरंत पहुंच सके।
- पूरनचंद पंवार, सेवानिवृत, डीसीपी

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