17 साल पहले जांच एजेंसियाें ने क्यों नहीं दिखाई सख्ती? अल-फलाह यूनिवर्सिटी में यूं न पनपते 'सफेदपोश आतंकी'
17 साल पहले जांच एजेंसियों की ढिलाई के कारण अल-फलाह यूनिवर्सिटी में 'सफेदपोश आतंकी' पनपने लगे। समय पर सख्ती दिखाई जाती तो शायद ऐसी स्थिति न आती। एजेंसियों की निष्क्रियता के चलते यूनिवर्सिटी संदिग्ध गतिविधियों का केंद्र बन गई। कार्रवाई के अभाव में आतंकियों को छिपने और गतिविधियों को संचालित करने का मौका मिला।
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सुशील भाटिया, फरीदाबाद। अल फलाह यूनिवर्सिटी का नाम अब जिस तरह से आतंकी गतिविधियों का केंद्र के रूप में सामने आया है और एक-एक करके परतें उखड़ने के बाद सुबूत सामने भी आ रहे हैं, उसके बाद सुरक्षा एजेंसियों व सरकार के स्तर पर कार्रवाई हुई है।
ऐसी सख्ती अगर 17 साल पहले दिख जाती तो यहां डाॅ. मुजम्मिल, डाॅ. शाहीन, डाॅ. उमर, डाॅ. निसार जैसे सफेदपोश आतंकी यहां न पनपते और आतंकी माॅड्यूल को अंजाम न दे पाते।
दरअसल 2008 में जब देश के विभिन्न राज्यों में सीरियल बम धमाके हुए थे और इसे अंजाम देने वाले आतंकवादी संगठन से जुड़े जिस आतंकी मिर्जा शादाब बेग का नाम सामने आया था, उस शादाब बैग ने अल फलाह यूनिवर्सिटी से ही बीटेक किया था।
यूनिवर्सिटी के एक पुराने स्टाफ ने दिमाग पर जोर डालते हुए कुछ याद किया और बताया कि उस समय यहां पुलिस आई थी और थोड़ी बहुत छानबीन करके चली गई, तब इतनी बातें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से सामने नहीं आती थी, जैसा अब आ रही हैं। इसलिए ज्यादा कुछ पता नहीं चला कि क्या हुआ था।
एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने बताया कि चूंकि धमाके बाहरी राज्यों में हुए थे और इन धमाकों की जांच केंद्रीय जांच एजेंसियां व उन राज्यों की पुलिस ही कर रही थीं, इसलिए हरियाणा पुलिस ज्यादा सक्रिय नहीं थी। स्थानीय पुलिस का सहयोग तो सुरक्षा के लिए लिया गया था।
यह सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अब कहते हैं कि यह बात बिल्कुल अब सही साबित हो रही है कि उस समय शासन-प्रशासन का तंत्र चेत जाता, थोड़ी संजीदगी दिखाता तो राष्ट्रविरोधी गतिविधियां वहीं रुकी जाती और यूं औद्योगिक जिला फरीदाबाद का नाम बदनाम होता।
तब कुछ हुआ नहीं, इसलिए यहां पुलवामा के रहने वाले सफेदपोश आतंकियों को शह मिलती चली गई और उसका नतीजा सबके सामने है। यह सरकार के लिए सबक भी है।
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