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    मां दया ने बिना ऊफ किए सब कुछ सहा और बेटियों को बना दिया धाकड़

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Tue, 15 May 2018 08:52 PM (IST)

    गीता और बबीता फौगाट को धाकड़ बनाने में पिता महाबीर फौगाट से कम योगदान उनकी मां दया कौर का नहीं है। बेटियों को कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाने में दया कौर ने बहुत कुछ सहा।

    मां दया ने बिना ऊफ किए सब कुछ सहा और बेटियों को बना दिया धाकड़

    भिवानी, [बलवान शर्मा]। दयाकौर, दंगल गर्ल गीता-बबीता की मां। यही पहचान है भारतीय महिला कुश्ती को धाकड़ बेटियां देने वाली यशस्विनी मां की। यह पहचान उनके लिए सम्मान भी है। कहती हैं- बेटियों की जीत पर जब वैश्विक मंच पर तिरंगा लहराया जाता है और राष्ट्र गान गाया जाता है तो लगता है कोख धन्य हो गई। बेटियाें को धाकड़ बनाने में दया कौर का योगदान महाबीर फौगाट से कम नहीं है। महाबीर का कहना है कि दया ने इस संघर्ष में उनका हर कदम पर साथ दिया अौर इस दौरान बिना ऊफ किए काफी कुछ सहा।

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    दया के संघर्ष ने बेटियों को दिलाया अंतरराष्ट्रीय मुकाम, लेकिन पर्दे के पीछे रह गया यह संघर्ष

    अंतरराष्ट्रीय पहलवान गीता व बबीता के संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि किस-किस के ताने नहीं सुनने पड़े थे बेटियों को अखाड़े में उतारने पर। अपने भी पराये लगने लगे थे, लेकिन मन में पक्का यकीन था कि जब मेरी बेटियां मेहनत के पसीने से सफलता की इबारत लिखेंगी तो हमारे भी दिन बदल जाएंगे। बस यही सोचकर बेटियों के सपने को ही अपना सपना बना लिया। कभी अपने बारे में नहीं सोचा।

    रात-रातभर जागकर बेटियों की फिटनेस, उनकी डाइट और अभ्यास के लिए उन्हें तैयार करती रहीं तो परिवार को भी संभाले रहीं। जब दयाकौर से यह कहा गया कि शायद आमिर खान भी आपके योगदान को पूरी तरह से समझ नहीं पाए। फिल्म में आपके संघर्ष को उतनी प्रमुखता से स्थान नहीं दिया गया, जिसकी आप हकदार हैं तो दया कौर कहती हैं कि ऐसा नहीं है। उन्होंने मुझे बहुत सम्मान दिया है। जब मां अपने बेटे-बेटी के नाम पहचानी जाए तो इससे बड़ी सफलता और क्या होगी।

    ऐसे समझें दया कौर के संघर्ष को

    दयाकौर के संघर्ष को समझने के लिए हमें एक बार फिर से फ्लैश बैक में जाना होगा। महाबीर फौगाट गीता व बबीता को पहलवान बनाने के लिए दिन-रात एक कर रहे थे तो दयाकौर पर जिम्मेदारी केवल दो बेटियों की न होकर पूरे परिवार की थी। ग्रामीण परिवेश होने की वजह से घरेलू पशुओं की देखरेख का जिम्मा दयाकौर पर ही टिका हुआ था। एक पहलवान को तैयार करने के लिए खर्च काफी ज्यादा होता था। इस परिवार में तो कई पहलवान थे। इनके साथ ही ऋतु व उनकी चचेरी बहन विनेश छोटी थीं। इन सबसे छोटा भाई था। उनके लालन-पालन की जिम्मेदारी भी दया कौर पर ही थीं।

    मां रात को 12 बजे सोती थी और सुबह 4 बजे उठ जाती थीं : बबीता

    बबीता ने बीते दिनों की याद ताजा करते हुए बताया कि कई बार ऐसा होता था कि दिन में स्कूल जाना और इसके बाद कुश्ती का अभ्यास करने के बाद हम बुरी तरह थक जाते थे। जैसे ही बिस्तर पर पहुंचते, तुरंत नींद जाती थी। लेकिन, मां ने कभी थकान की परवाह नहीं की और वह ताजा खाना बनाकर लाती और हमें उठाकर खाना खिलाकर ही सोती थीं। हम तो सोते जाते थे, लेकिन देर रात तक बर्तनों के साफ करने की आवाज हमेशा हमारी नींद तोड़ती थीं।

    मां दया कौर और पिता महाबीर फौगाट के साथ बबीता फौगाट।

    बबीता ने कहा, पापा हमारे साथ बहुत संघर्ष कर रहे थे। लेकिन हम सबसे ज्यादा कठिन दिनचर्या तो मां की थीं। क्योंकि हम सभी का खाना बनाना, भैंसों की देखरेख करने के अलावा घर के दूसरे इतने कार्य थे कि मां को कभी भी बाजार तक जाने का मौका नहीं मिला।

    मायके भी नहीं जाती थी दयाकौर

    बकौल बबीता फौगाट उनकी मां अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों में इतनी व्यस्त रहती थीं कि वह अपने मायके भी नहीं जा पाती थीं। गीता व बबीता का मामा के यहां छुट्टियों में जाने का खूब मन होता था, लेकिन पापा प्रैक्टिस कराते थे और उन्होंने कभी छुट्टियां दी ही नहीं। बबीता ने बताया कि शादियों में जाना हुआ तो पापा, मां को सुबह लेकर जाते थे और शाम को लौट आते थे।

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    दया का बड़ा योगदान : महाबीर

    बेटियों को पहलवान बनाकर सफलता के मुकाम तक पहुंचाने में दयाकौर के योगदान को कभी कम करके नहीं आंका जा सकता है। उन्होंने स्वीकार किया कि जब भी सफलता के लिए योगदान की बात चली तो कहीं न कहीं दयाकौर का जिक्र नहीं हो पाया पर मेरा दिल जानता है कि उन्होंने किस तरह मेरा साथ निभाया।