गृहस्थ को तिलांजलि दे संन्यासी बनेंगी एमबीए पास अंजलि
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अंजलि ने वैराग्य का मार्ग चुना है। 28 मई 2017 को राजस्थान के जिला उदयपुर में मावली जंक्शन में दीक्षा प्राप्त करेंगी।
डबवाली [डीडी गोयल]। जिस उम्र में लड़कियां भविष्य के सुनहरे सपने संजोती है और अपने होने वाले जीवन साथी व घर परिवार को लेकर चिंतित होती है। उस उम्र में जिले की ग्राम पंचायत गंगा की रहने वाली अंजलि ने वैराग्य का मार्ग चुना है।
28 मई 2017 को राजस्थान के जिला उदयपुर में मावली जंक्शन में दीक्षा प्राप्त करेंगी। इससे पहले 2 अप्रैल को पैतृक गांव में धूमधाम से बेटी की शोभा यात्रा निकलेगी। यात्रा को यादगार बनाने के लिए सरपंच पवन शर्मा समेत पूरा गांव तैयारियों में जुट गया है। बता दें कि इससे पहले डबवाली निवासी एमबीए पास गरिमा जैन ने 8 मार्च 2015 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दीक्षा प्राप्त करके गृहस्थ आश्रम त्याग दिया था।
अंजलि अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ।
गंगा गांव में आढ़त का काम करने वाले लीलाधर जैन की 20 साल की बेटी अंजलि मेरिटोरियस स्टूडेंट रही है। डबवाली के एचपीएस स्कूल में 10वीं 82 फीसद अंकों के साथ और वर्ष 2014 में 12वीं 75 फीसद अंकों के साथ पास की। इसके बाद वैराग्य जीवन की ओर पहला कदम बढ़ाते हुए गिदड़बाहा में जैन साध्वी रवि रश्मि के पास चली गई।
अंजलि अब तक पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल, जम्मू, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात आदि 11 राज्यों में जाकर जैन धर्म की शिक्षा प्राप्त कर चुकी है। इस दौरान ही मुंबई में प्राकृत और संस्कृत भाषा का ज्ञान मिला। अब यह बेटी ङ्क्षहदी, पंजाबी और अंग्रेजी के साथ-साथ पांच भाषाओं की ज्ञानी हो गई है। मौजूदा समय में अंजलि महाराष्ट्र के अहमदनगर में आचार्य पद की शिक्षा प्राप्त कर रही है।
बेटी के दृढ़ संकल्प के आगे झुके परिजन
वर्ष 2005 में जैन संत हेमकुंवर ने अंजलि को साध्वी बनने के लिए कहा था। 9 साल बाद संन्यासी बनने का संकल्प लेते हुए बेटी ने यह बात अपने दादा पन्ना लाल जैन को बताई। इस पर दादा ने तो हामी भर दी, लेकिन पिता लीलाधर और माता रितु जैन ने विरोध किया। मगर बेटी के दृढ़ संकल्प के आगे झुकते हुए माता-पिता खुद उसे जैन साध्वी रवि रश्मि के पास छोड़ आए।
गृहस्थ जीवन में नहीं है मन
अंजलि जैन का कहना है, मेरा गृहस्थ जीवन मे मन नहीं है। इसलिए मैंने वैराग्य जीवन चुना है। पूरे दक्षिण भारत में विचरण कर चुकी हूं। इस बार जुलाई में चितौडगढ़ में विचरण करुंगी।
बेटी पर है गर्व
अंजलि के पिता लीलाधर व माता रितु जैन का कहना है, जब बेटी ने संन्यासी बनने का फैसला सुनाया था तो जरूर ठेस पहुंची थी। अब हमें उस पर गर्व महसूस हो रहा है। आखिरकार शादी के बाद भी बेटी को घर छोड़कर जाना ही पड़ता है।
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