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    भूमिगत जल प्रदूषण की नहीं होती जांच, बीमारी फैलने पर स्वास्थ्य विभाग लेता है सैंपल

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 05 Jun 2017 01:00 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, झज्जर : भूमिगत जल प्रदूषण से मुक्त मानकर लोग इसका प्रयोग करते आ रहे हैं और ऐसा विश्

    भूमिगत जल प्रदूषण की नहीं होती जांच, बीमारी फैलने पर स्वास्थ्य विभाग लेता है सैंपल

    जागरण संवाददाता, झज्जर : भूमिगत जल प्रदूषण से मुक्त मानकर लोग इसका प्रयोग करते आ रहे हैं और ऐसा विश्वास भी करते हैं। जब तक उसमें ऊपरी क्षेत्र से प्रदूषित जल नहीं मिला होता। लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है, भूमिगत जल औद्योगिक गंदे जल, गंदी नालियों के जल के भूमि में सोखने के साथ-साथ रासायनिक खाद, सूक्ष्म जीवाणुओं, कीटाणुनाशक दवाइयों आदि से प्रदूषित होता जा रहा है। यह पानी उन क्षेत्रों में जल्दी प्रदूषित हो जाता है, जहां भूमिगत जलस्तर काफी ऊपर होता है। जबकि झज्जर जिले की बात की जाए तो यहां का काफी क्षेत्र ऐसा है जहां पर भूमिगत जला का स्तर 1.5 मीटर से दस मीटर के अंदर है। ऐसे में भूमि में साल्ट ऊपर आने से पानी ही नहीं भूमि भी खराब हो चुकी है। वहीं गंदे पानी की निकासी के नालों, खेतों में रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से भूमिगत जल स्तर खराब हो रहा है। जब कोई बीमारी क्षेत्र में फैलती है तो स्वास्थ्य विभाग की तरफ से पानी के सेंपल अवश्य भरे जाते हैं।

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    क्या है जल प्रदूषण : जब प्राकृतिक या अन्य स्त्रोतों से बाहरी पदार्थ जल में मिल जाते हैं और जिसका दुष्प्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। जल के सामान्य स्तर में गिरावट आती है, जल-जनित महामारियां फैलती हैं। इसके दुष्प्रभाव जब जन जीवन पर पड़ते हैं तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं। शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी जल प्रदूषण की समस्या काफी विकट होती है जा रही है। गांवों में जल धरातलीय एवं भूमिगत दोनों स्त्रोतों से प्राप्त किया जाता है। धरातलीय स्त्रोतों में तालाब, नहर व भूमिगत जल में कुए एवं नलकूप प्रमुख हैं। गांवों में अज्ञानता के कारण प्रदूषित जल पीने के लिये उपयोग किया जाता है। कुएं अधिकतर खुले होते हैं उनमें धूल, खरपतवार इत्यादि पड़ते रहते हैं। अधिक्तर कुओं के ऊपर मेड़ इत्यादि नहीं होते जिससे बरसात के दिनों में गंदा जल आस-पास के क्षेत्रों में आकर मिल जाता है। गांवों में लोगों के घरों से निकलने वाला जल-आस-पास के क्षेत्रों में ही एकत्र हो जाता है। कभी-कभी तो इन्ही गंदी नालियों को लेकर लोगों में आपस में झगड़े भी हो जाते हैं। स्थिर गंदे जल से मच्छरों की बढ़ोतरी के साथ-साथ छुआ-छूत की बीमारियां भी तेजी से फैलती हैं। गांवों में खुले स्थान का शौच के लिये उपयोग किया जाता है, जोकि वर्षा के समय में बहकर तालाबों आदि में मिलकर जल का प्रदूषण बनाता है।

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    जल प्रदूषण के परिणाम : मुख्य रूप से उद्योग धंधों, नालियों से डाला गया गन्दा जल, नदियों, झीलों, तालाबों के साथ-साथ भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर देता है। हमारे उद्योगों, कल-कारखानों से निकलनेवाला रासायनिक कचरा सीधे नदियों, नालों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है। अब तो स्थिति यहां तक बन गई है कि उद्योगों के गंदे पानी को सीधे बो¨रग कर जमीन में ही छोड़ दिया जाता है। जो कचरा अत्यधिक जहरीला होता है और यह पानी को भी जहरीला कर देता है। वहीं आज कल खेती के लिए भी रासायनिक उर्वरकों और दवाईयों का प्रयोग हो रहा है जो पानी के जमीन में रिसाव के साथ जल प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। इस पानी के पीने से अनेक प्रकार की बीमारियां फैलती हैं।

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    प्रदूषण युक्त बनता है जलजनित बीमारियों का कारण : सामान्य अस्पताल के फीजीशियन विभाग के एमडी डा. संजीव हसिजा का कहना है कि जल प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्रों में मानवीय स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। बहुत सी बीमारियां दूषित पानी के कारण ही फैलती हैं। इनमें हैजा, टाइफाइड (मियादी बुखार), पीलिया (हैपेटाइटिस), दस्त, पेचिस, मच्छरों के लार्वा जो कि मलेरिया, पीला बुखार, फाइलेरिया फैलाते हैं। उनकी प्रारंभिक वृद्धि प्रदूषित पानी में ही होती है। हैजे के कीटाणु भी प्रदूषित जल के माध्यम से बहुत शीघ्रता से फैलते हैं। मलेरिया फैलाने वाले मच्छर भी अपने अंडे सीवेज के पानी में देते हैं। प्रदूषित जल से फैलने वाले संक्रामक रोगों के अतिरिक्त पानी में उपस्थि्त विभिन्न तत्व अलग-अलग रोगों के लिए हैं। जैसे पीने के पानी में उपस्थित कीटनाशकों से कैंसर और स्नायु संबंधी रोगों के उत्पन्न होने का खतरा रहता है। भारी धातुएं, लोहा, फ्लोराइड्स पाचन संबंधी बीमारी पैदा करते हैं। वहीं अस्पतालों से निकला बायो मेडिकल वेस्ट जानलेवा बीमारी हैपेटाइटिस-बी को फैलाने का प्रमुख कारण है। वहीं थोड़ी मात्रा में फ्लोराइड्स दंत-रोग को रोकते हैं, लेकिन फ्लोरइड की अधिक्ता वाले पानी को के लम्बे समय तक उपयोग करने पर दंतरोग बढ़ने का कारण बनता है। फ्लोरीन का एक बड़ा हिस्सा रक्त में घुल कर हड्डियों को कमजोर कर देता और एलर्जी भी पैदा करता है।

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    भूजल को लेकर जिले की स्थिति

    - भूमिगत जल : खारा

    - टीडीएस, फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक।

    पानी को लेकर मुख्य रूप से फैल रही बीमारी

    - फ्लोराइड व टीडीएस अधिक होने से हड्डी रोग, दांत रोग, पत्थरी आदि।

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    जिले का ¨सचित एरिया

    -कुल ¨सचित क्षेत्र : 1 लाख 5 हजार हेक्टेयर

    -नहरी पानी पर आधारित : 39 हजार हेक्टेयर

    -टयूबवेल पर आधारित क्षेत्र : 66 हजार हेक्टेयर

    -बिना ¨सचाई वाला एरिया : 55 हजार हेक्टेयर

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    भूजल को लेकर जिले की स्थिति :

    कुल क्षेत्र : 186770 हेक्टेयर

    झज्जर खंड : 49803 हेक्टेयर

    बहादुरगढ़ खंड : 50143 हेक्टेयर

    बेरी खंड : 32524 हेक्टेयर

    मातनहेल खंड : 33144 हेक्टेयर

    साल्हावास खंड : 21156 हेक्टेयर

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    भू जल स्तर :

    खंड 1.5 मीटर तक, 1.5 से 3 मीटर, 3 से 10 मीटर, 10 से 20 मीटर, 20 से 30 मीटर तक

    झज्जर 0000 7704 32606 6879 2614

    बहादुरगढ़ 1567 10114 38177 285 0000

    बेरी 3614 21683 7227 0000 0000

    मातनहेल 647 6474 14759 9969 1295

    साल्हावास 254 8234 10768 1900 0000

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    कुल क्षेत्र : 6032 54209 103537 19033 3909

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    फीसद क्षेत्र : 3 फीसद 29 फीसद 55 फीसद 10 फीसद 2 फीसद

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    नोट : क्षेत्र हेक्टेयर भूमि में है।

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    प्रदूषण कंट्रोल विभाग भूगर्भ जल के सेंपल नहीं लेता, इसकी जांच भूगर्भ विभाग की तरफ से शिकायत मिलने पर पानी की जांच की जाती है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड इन सैंपलों की जांच नहीं करता।

    - नवनीत भारद्वाज, एसडीओ, प्रदूषण कट्रोल बोर्ड, बहादुरगढ़।