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    Lok Sabha Election: हर बार कारगर रहा मुख्यमंत्रियों का दांव, तीन सियासी घरानों ने साधा देश के साथ प्रदेश की सत्ता का समय

    Updated: Sat, 09 Mar 2024 01:15 PM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 हरियाणा में हर बार मुख्‍यमंत्रियों का दांव कारगर रहा है। हरियाणा में केवल दो बार ऐसा हुआ है जब लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराए गए। वर्ष 1991 और 1996 में लगातार दो बार संसदीय चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव कराए गए थे। बता दें सबसे पहले मुख्यमंत्री बंसी लाल ने समय पूर्व विधानसभा भंग कराई थी।

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    तीन सियासी घरानों ने साधा देश के साथ प्रदेश की सत्ता का समय (फाइल फोटो)

    सुधीर तंवर, चंडीगढ़। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के साथ ही आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होंगे। हरियाणा में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल आठ महीने बाद खत्म होगा। अक्टूबर में चुनाव होंगे। प्रदेश सरकार की ओर से लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव कराने की संभावनाओं को पहले ही खारिज किया जा चुका है, लेकिन एक तबका अब भी दोनों चुनाव साथ कराने के पक्ष में है।

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    हरियाणा में लोकसभा के साथ करवाए गए विधानसभा चुनाव

    हरियाणा में केवल दो बार ऐसा हुआ है जब लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराए गए। वर्ष 1991 और 1996 में लगातार दो बार संसदीय चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव कराए गए थे। उसके बाद से ही दोनों चुनाव आगे-पीछे होते आ रहे हैं।

    प्रदेश में तीन बार ऐसा हुआ है जब बड़े राजनीतिक घरानों ने चौधर की लड़ाई में विधानसभा को समय से पहले भंग करा दिया। जनवरी 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसी लाल, दिसंबर 1999 में ओम प्रकाश चौटाला और अगस्त 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने समय पूर्व विधानसभा को भंग कराते हुए फिर से सरकार बनाने में सफलता पाई।

    1968 में सबसे पहले बंसी लाल ने समय पूर्व भंग कराई विधानसभा

    सर्वप्रथम तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसी लाल ने समय पूर्व विधानसभा भंग कराई थी। 12 मई, 1968 को हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला था, लेकिन सरकार बनाने को लेकर लंबी खींचतान हुई। 21 मई, 1968 को बंसी लाल ने हरियाणा की सत्ता अपने हाथ में ले ली। वर्चस्व की लड़ाई में बंसी लाल ने मार्च 1972 में विधानसभा भंग करा दी। इसके बाद विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करते हुए वे फिर सीएम बन गए।

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    1999 में बहुमत की सरकार के लिए ओपी चौटाला ने कराए दोबारा चुनाव

    वर्ष 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने तगड़ा दाव खेला, जिन्होंने चौधरी बंसी लाल की सरकार से समर्थन वापस लेने वाली भाजपा और हविपा के बागी विधायकों के समर्थन से 24 जुलाई को सरकार बनाई थी। बहुमत की सरकार बनाने के लिए चौटाला ने छह महीने बाद ही दिसंबर में विधानसभा भंग करा दी और दोबारा चुनाव करा दिए। भाजपा के साथ गठबंधन में इनेलो को अपने दम पर ही बहुमत मिल गया और चौटाला ने पूरे पांच साल सरकार चलाई।

    2009 में भूपेंद्र हुड्डा की घट गईं सीटें, लेकिन सरकार बनाने में रहे सफल

    वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस को नौ सीटें मिली थी। कांग्रेस लहर का फायदा उठाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने करीब छह महीने पहले ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी, जबकि विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2010 तक था। हालांकि बाद में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 सीटों पर सिमट गई, लेकिन तब हुड्डा ने हरियाणा जनहित कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर अपने साथ कर लिया और सरकार बनाई।

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    दोनों चुनाव एक साथ हों तो खर्च होगा आधा

    चुनावी मामलों के कानूनी जानकार एडवोकेट हेमंत कुमार के मुताबिक अगर लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं तो केंद्र और प्रदेश सरकार पर चुनावी प्रक्रिया पर होने वाले खर्चे का आधा-आधा बोझ ही पड़ता है। अगर हरियाणा विधानसभा के आम चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ करवाए जाएं तो सरकारी खजाने पर आधा खर्च पड़ेगा।