अंबाला: बुढ़ापे की बेरहम तस्वीर, चारपाई पर सड़ती मां और सिस्टम खामोश; वंदेमातरम् दल की टीम ने किया रेस्क्यू
अंबाला शहर के काजीवाड़ा में 72 वर्षीय बेबे दर्शना को अमानवीय परिस्थितियों से बचाया गया। वह महीनों से बिस्तर पर मल-मूत्र त्यागने को मजबूर थीं और गंभीर ...और पढ़ें

अंबाला: बुढ़ापे की बेरहम तस्वीर...
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर। चारपाई पर लेटी 72 वर्षीय बेबे दर्शना। कमरे और चारपाई पर घूमते कोकरोच और चूहे। हाथ-पैरों के नाखूनों में फंसा मल। घर में कदम रखते ही सांस रोक देने वाली दुर्गंध। काजीवाड़ा मुहल्ले की एक तंग और अंधेरी गली में किराये के कमरे के भीतर यह दृश्य शहर के बीचों-बीच वार्ड नंबर-6 में इंसानियत की टूटती तस्वीर है।
यह वही बेबे दर्शना हैं, जिन्होंने कभी अपने दो बेटों और एक बेटी को गोद में खिलाया था। आज वही महिला चारपाई से उठने में असमर्थ, दूसरों की दया पर जीने को मजबूर है।
उम्र, कमजोरी और बीमारी ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि चलना-फिरना तो दूर, उठकर बैठना भी संभव नहीं रहा। हालात इतने भयावह थे कि वह महीनों से बिस्तर पर ही मल-मूत्र करने को मजबूर थीं। करीब छह महीने से उन्होंने स्नान तक नहीं किया।
वंदेमातरम् संस्था फिर बनी मददगार
शनिवार सुबह करीब 11 बजे यह खामोश पीड़ा सार्वजनिक हुई। वंदेमातरम दल की टीम ने संस्थापक भरत सिंह की अगुवाई में बुजुर्ग को रेस्क्यू किया। मौके पर चार नंबर चौकी इंचार्ज जयकुमार और वार्ड नंबर छह की पार्षद अर्चना छिब्बड़ भी मौजूद रहीं।
काफी मशक्कत और समझाने के बाद बेबे दर्शना को एंबुलेंस से इलाज के लिए ले जाया जा सका। उन्हें लुधियाना स्थित मनुख्ता की सेवा सबसे बड़ी सेवा अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां पहले से ही 800 ये ज्यादा लावारिस बुजुर्ग, युवा, बच्चे व महिलाएं इलाज के सहारे जिंदगी थामे हुए हैं।
पेंशन से चला रही थी गुजारा
7-8 साल पहले हाशमी मोहल्ले में रहने वाली बेबे दर्शना अब काजीवाड़ा में किराये के कमरे में आकर रहने लगी थीं। तीन-चार साल पहले तक वह खुद कमरें में लकड़ियों व उपलों से आग जलाकर खाना बनाती थीं। बाद में बीमारी और कमजोरी ने उन्हें बिस्तर का कैदी बना दिया। पेंशन उनके खाते में आती थी और कोई परिचित या पड़ोसी बैंक से निकलवाकर दे देता था। उसी से उनका गुजारा चलता था।
बेटी और दामाद की हो चुकी हत्या
पारिवारिक इतिहास भी दर्द से भरा है। बताया जाता है कि उनकी बेटी और दामाद की हत्या हो चुकी है। एक बेटा शराब की लत में नाले में गिरकर मर चुका है, जबकि दूसरा हत्या के मामले में जेल में बंद है। खुद बेबे दर्शना ने बताया कि उसके एक बेटे ने कभी किसी को चाकू मारा था। जब उनसे पूछा गया कि अब उनका कौन है, तो बस इतना बोलीं- अब मेरे आगे-पीछे कोई नहीं है।
पड़ोसी दे देते था खाना
पड़ोसी खाना दे देते थे, दवा पूछ लेते थे। सफाई, नहलाने और नियमित देखभाल में हर कोई असहज था। मजबूरी में पहले वह डिब्बों में शौच करती थीं, जिसे कोई व्यक्ति पैसे लेकर नाली में डाल देता था। समय के साथ हालत अधिक बिगड़ गई। इसी वजह से उनके शरीर में संक्रमण फैल चुका था।
मैं वापस आऊंगी...
बेबे दर्शना इलाज के लिए जाने को तैयार नहीं थीं। किसी पर भरोसा नहीं कर पा रही थीं। वह वार्ड पार्षद अर्चना छिब्बड़ को पहचानती थीं और उन्हें अपनी बेटी मानती थीं। काफी समझाने के बाद जब वह मान गईं, तो जाते वक्त बोलीं- मैं आऊंगी, मेरे पैसे संभालकर रखना।
इतना ही नहीं, उन्होंने अपने किराये के कमरे का ताला भी पार्षद से ही लगवाया। पुराने पैसे उन्होंने पहले अलग-अलग लोगों को दे रखे थे। कुछ लोग उन्हें लौटाते रहे, तो कुछ उन्हें लावारिस समझकर पैसे दे देते थे।

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