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    अंबाला से शुरू हुई थी आजादी की लड़ाई. अंग्रेजों ने इसी जगह को बनाया था बफर जोन, पूरे उत्तर भारत पर रखते थे नजर

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 10:32 AM (IST)

    आजादी के 79 साल बाद भी अंबाला का योगदान अविस्मरणीय है। 1857 की क्रांति की शुरुआत यहीं से हुई थी जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। हरियाणा के लोगों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया और बलिदान दिया। अंग्रेजों ने अंबाला को उत्तरी भारत पर नजर रखने के लिए चुना और 1842 में छावनी स्थापित की।

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    अंग्रेजों ने अंबाला को बनाया था बफर जोन, पूरे उत्तर भारत पर रखते थे नजर (जागरण फोटो)

    जागरण संवाददाता, अंबाला। देश को आजाद हुए 79 साल हो चुके हैं। एक लंबा समय अंग्रेजों ने देश पर शासन किया, लेकिन जुनून ऐसा था कि 15 अगस्त 1947 को देश के जांबाजों ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ों को उखाड़ फेंका था। इसके तहत प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 की चिंगारी सबसे पहले अंबाला से शुरू हुई थी, जबकि इस आजादी के सफर में हरियाणा का योगदान भी भूला नहीं जा सकता।

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    इसके बाद हुए तमाम आंदोलनों में अंबाला ही नहीं हरियाणा के लोगों ने आगे बढ़कर अंग्रेजों का मुकाबला किया और बलिदान हुए। उनकी बदौलत ही आज देश आजाद है। अंबाला में अंग्रेजों का पड़ाव डाले जाने के बाद कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने अंबाला को सुर्खियों में लाया। यही नहीं प्रदेश में भी ऐसी बड़ी घटनाएं हुईं, जिसमें अंग्रेजों की फौजें कमजोर हुईं।

    अंग्रेज दिल्ली से जब चले तो उनको एक ऐसा क्षेत्र चाहिए था, जहां से वे पूरे उत्तर भारत पर नजर रख सकें। इसके लिए पहले वे करनाल आए, जिसके बाद उन्होंने अंबाला में पड़ाव डाला। अंबाला का वातावरण काफी अच्छा लगा और यहीं पर उन्होंने 1842 में छावनी को स्थापित किया। यहीं से वे उत्तर भारत पर नजर रख सकते थे। उन्होंने पहले अंबाला के स्थानीय कारोबार, जो कपड़े का था, को खत्म किया।

    धीरे-धीरे उन्होंने अंबाला में अपना वर्चस्व कायम किया। इस दौरान अंबाला की महारानी दया कौर उनके सामने अड़ी थीं। उनके पति अंग्रेजों के साथ पंजोखरा साहिब के आसपास हुए युद्ध में बलिदान हुए थे। इसके बाद दया कौर ने महिलाओं को अपनी फौज में शामिल किया और उनको लड़ने के लिए तैयार किया।

    28 जून 1857 को अंबाला में सैनिकों ने किया था विद्रोह 1857 के स्वाधीनता संग्राम में 28 जून 1857 को अंबाला में बंदी सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। जो बंदी नहीं थे वे भी खुलकर विरोध में आ गए थे। जून में ही प्रदेश भर में घटनाएं हुईं। इसके तहत हांसी के स्किनर द्वारा मजारों पर हमले किए गए, सिरसा के ओढां व खैरेकां में कोर्टलैंड से युद्ध, सिरसा के छतरिया में अंग्रेजों द्वारा कत्लेआम, सिरसा के ही जोधकां में संघर्ष व कत्लेआम हुआ।

    करनाल के बल्ला में ह्यूज के साथ युद्ध व आगजनी हुई। जुलाई में मेवात में एडन द्वारा दमनचक्र व संघर्ष, अगस्त में हिसार व आजम द्वारा आक्रमण किया गया और जीत हासिल की। रोहतक में औरतों व बच्चों को एडसन द्वारा जीवित जलाने की घटना भी सामने आई थी।

    सत्याग्रह में भी अंबाला से हुई थीं 153 गिरफ्तारियां अंबाला में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 153 लोगों ने गिरफ्तारियां दी थीं। इसके तहत व्यक्तिगत सत्याग्रह में 120 लोगों ने गिरफ्तारियां दी थीं, जबकि 33 अन्य गिरफ्तारियां थीं। गुरुग्राम (पहले गुड़गांव) में सत्याग्रह के तहत 32 व अन्य सात, हिसार में सत्याग्रह के तहत 77 व अन्य एक, करनाल में सत्याग्रह की 36 व रोहतक में 251 तथा दो अन्य गिरफ्तारियां थीं।