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'अपनी असफलताओं से सीखें युवा', CJI चंद्रचूड़ ने कहा- जीवन कोई 100 मीटर की दौड़ नहीं, एक मैराथन है

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार को युवाओं को असफलताओं से सीख लेने की सलाह देते हुए कहा कि जीवन 100 मीटर की दौड़ नहीं बल्कि एक मैराथन है। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के 72वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए चंद्रचूड़ ने छात्रों से अपील की कि वह अपना समय लें और अपनी असफलताओं से सीख लें।

By Agency Edited By: Anurag GuptaPublished: Sun, 04 Feb 2024 07:51 PM (IST)Updated: Sun, 04 Feb 2024 07:51 PM (IST)
देश के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)

पीटीआई, वडोदरा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार को युवाओं को असफलताओं से सीख लेने की सलाह देते हुए कहा कि जीवन 100 मीटर की दौड़ नहीं, बल्कि एक मैराथन है।

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महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह

बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के 72वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि इस वर्ष विश्वविद्यालय ने 346 स्वर्ण पदकों में से 336 महिलाओं को प्रदान किए, जो वास्तव में हमारे राष्ट्र में बदलते समय का संकेत है।

प्रधान न्यायाधीश ने मौजूदा दौर को इतिहास का सबसे शानदार वक्त बताते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी ने लोगों को पहले से कहीं अधिक कनेक्टेड बना दिया है। साथ ही उन्हें उनकी चिंताओं और डर से भी अवगत कराया है।

उन्होंने कहा कि हम हर दिन नए और अनूठे व्यवसायों को उभरते हुए देखते हैं, लोग अपनी खुद की पेशेवर यात्रा तय करते हैं, जो पारंपरिक मानदंडों का अनुपालन नहीं करता है। ग्रेजुएट होने का यह एक रोमांचक समय है, लेकिन मैं जानता हूं कि ये परिस्थितियां कुछ अनिश्चितताओं और भ्रम को भी जन्म देती हैं।

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CJI ने छात्रों से की यह अपील

प्रधान न्यायाधीश ने छात्रों को अनोखी पीढ़ी करार देते हुए कहा कि आप ऐसे समय में रह रहे हैं जहां आप पहले से कहीं अधिक आइडियाज के संपर्क में हैं। आप एक अनोखी पीढ़ी हैं, जो पहले की पीढ़ियों की तुलना में हमारे समय की चुनौतियों के बारे में ज्यादा जागरूक हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह 'मौके के हिसाब से युवा पीढ़ी की आगे बढ़ने और हमारे समय की भारी चुनौतियों का सामना करने' की क्षमता से हैरान हैं। साथ ही उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे आगे बढें, अयथार्थवादी उम्मीदों से प्रभावित न हों और अपनी असफलताओं से सीखें। उन्होंने कहा, 

हमारी औपचारिक शिक्षा यह नहीं बताती है कि विफलता हमारे विकास के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी शिक्षा प्रणाली हमारे लिए असफलता से घृणा करने और उसका भय पैदा करने के लिए बनाई गई है। हालांकि, जीवन का मतलब असफलताओं से मुक्त होना नहीं है।

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इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने ग्रेजुएट्स से सिर्फ विद्वान नहीं, बल्कि बुद्धिजीवी बनने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एक बुद्धिजीवी वह व्यक्ति होता है, जो विचारों, सिद्धांतों और अवधारणाओं से गहराई से जुड़ा होता है और अपनी सोच, कौशल और विश्लेषणात्मक क्षमताओं के लिए जाना जाता है।


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