Khakee The Bengal Chapter Review: अपराध, राजनीति और पुलिस की टकराहट! कैसी है नीरज पांडे की खाकी?
अपराध पर आधारित खाकी द बंगाल चैप्टर (Khakee The Bengal Chapter) एक काल्पनिक कहानी है जो आतंक की दुनिया का एक कड़वा सच उजागर करती है। नीरज पांडे की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज ओटीटी पर रिलीज हो चुकी है। अगर आप इस सीरीज को देखने की योजना बना रहे हैं तो पहले इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें। इससे आपको स्टोरी समझने में काफी मदद मिल सकती है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Khakee The Bengal Chapter Review: नीरज पांडे कुछ अलग रचने के लिए जाने जाते हैं। उनकी चर्चित वेब सीरीज खाकी का दूसरा पार्ट ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ ओटीटी पर दस्तक दे चुका है। सीरीज एक काल्पनिक घटना पर आधारित है, जो 2000 के दशक के दौरान कोलकाता में अपराध और कानून व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती है। अगर आप नेटफ्लिक्स की सीरीज को देखने की योजना बना रहे हैं, तो पहले इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें। इससे आपको कहानी से जुड़ी जरूरी जानकारी मिल सकती है।
सीरीज की कहानी क्या है?
पुलिस का गैंगस्टर को खत्म करने का संघर्ष हम पहले ही ‘भौकाल’ में देख चुके हैं। इस तरह की काफी सीरीज और फिल्में भ्रष्टाचार, गैंगस्टर और पुलिस की कहानी को दिखाने का काम करती है। नीरज पांडे की खाकी द बंगाल चैप्टर भी इस तरह की कहानी को दिखाती है। स्टोरी की शुरुआत खूंखार गैंगस्टर बाघा (सस्वत चटर्जी) के आतंक से शुरू होती है, जो पॉलिटिकल पार्टी के नेता बरुण रॉय (प्रसेनजीत चटर्जी) के समर्थन से अपने अपराध के धंधे को अंजाम देता है। कहानी में ट्विस्ट आता है, जब बाघा के दो करीबी सागर तालुकदार (ऋत्विक भौमिक) और रंजीत ठाकुर (आदिल जफर खान) मिलकर आईपीएस अधिकारी का कत्ल कर देते हैं।
अपराध चरम पर पहुंच जाता है, तो सरकार नए आईपीएस अधिकारी अर्जुन मैत्रा (जीत) को लेकर आती है। इसके बाद गैंगस्टर बाघा का मर्डर रंजीत-सागर मिलकर कर देते हैं। फिर दोनों करीबियों के बीच राजनीति आ जाती है और चौथे एपिसोड तक रंजीत और सागर एक घटना के बाद एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। अर्जुन मैत्रा ने आतंक को खत्म करने के लिए गैंगस्टर के बीच में फूट डालने का काम किया, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी साबित हुए। इससे आगे की कहानी जानने के लिए आपको खुद सीरीज देखनी होगी।
Photo Credit- IMDB
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एक्टिंग और डायरेक्शन
खाकी सीरीज बंगाल की एक दूसरी छवि को दिखाने का काम करती है, जो संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि अपराध की एक काली दुनिया का सच उजागर करती है। ऋत्विक भौमिक, प्रसेनजीत चटर्जी का काम उभरकर आया है। दोनों ने किरदार की जरूरत को शानदार ढंग से अदा किया है। रंजीत ठाकुर के किरदार में आदिल जफर खान का काम भी तारीफ के काबिल लगा है। इसके अलावा, सबसे ज्यादा ध्यान जीत यानी आईपीएस अधिकारी अर्जुन मैत्रा ने खींचा है। महिला किरदारों का भी मजबूत छवि वेब सीरीज में देखने को मिली। खासकर चित्रांगदा सिंह ने विपक्ष की नेता के तौर पर अच्छा काम किया है। इसके अलावा, आकांक्षा सिंह ने पुलिस अधिकारी के किरदार में दमदार अभिनय का परिचय दिया है।
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नीरज पांडे की रचित और प्रोड्यूस की सीरीज अच्छी है, लेकिन कहानी पकड़ बनाने में थोड़ा समय लेती है। इसके कई प्लॉट अधूरे भी लगते हैं, जिसमें रंजीत-सागर की बैकस्टोरी और बाघा के बेटे चीना की कहानी खासतौर पर शामिल है। डायरेक्शन की बात करें, तो देबात्मा मंडल और तुषार कांति रे ने मिलकर अच्छा काम किया है।
कुल मिलाकर यह सीरीज देखने लायक है। इसका लुत्फ आप ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर उठा सकते हैं। हमारी तरफ से सीरीज को 2.5 स्टार दिए जा रहे हैं।
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