नई दिल्ली, जेएनएन। देश में क्रिकेट का जुनून सिर चढ़कर बोलता है और खिलाडियों की फैन फॉलोइंग उन्हें पलकों पर बिठाकर रखती है। मगर, एक वक्त ऐसा भी आया, जब क्रिकेट के इस खेल पर मैच फिक्सिंग का दाग लगा और खिलाड़ियों की साख पर बट्टा। दुनियाभर के क्रिकेटप्रेमियों के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था।
फैंस ने तमाम खिलाड़ियों को लानतें भेजीं और जो सिर पर चढ़े थे, वो नजरों से गिर गये। क्रिकेट के खेल में मैच फिक्सिंग का खुलासा ऐसी घटना नहीं थी, जिसे सोच-समझकर अंजाम दिया गया हो, बल्कि यह सब अचानक हुआ। नेटफ्लिक्स की डॉक्युमेंट्री कॉट आउट- क्राइम, करप्शन, क्रिकेट घटनाओं के इसी सिलसिले का दस्तावेज है।
डॉक्युमेंट्री का निर्देशन सुप्रिया सोबती गुप्ता ने किया है। शो को तैयार करने में खेल जगत के दिग्गज पत्रकारों और सीबीआई अफसरों की मदद ली गयी है, जो दर्शक को क्रिकेट के उस स्याह दौर की ओर ले जाते हैं, जिसने पूरे देश के भरोसे को हिलाकर रख दिया था।
पत्रकारों के सनसनीखेज खुलासे
डॉक्युमेंट्री में पत्रकारों के जरिए उस दौर के बेहद सनसनीखेज खुलासे किये गये हैं। किस तरह खेल में अंडरवर्ल्ड की एंट्री हुई। जिन खिलाड़ियों को लोग भगवान की तरह देखते थे, वो आखिर जाल में फंस कैसे गये। माफिया का प्रभाव इस कदर हो गया था कि खेल पूरी तरह उनके कब्जे में चला गया और उनके इशारे पर बल्ला और गेंदें घूमने लगी थीं।
नब्बे के दौर जन्म लेने वाली पीढ़ी के लिए यह कॉट आउट चौंकाने वाला मसाला पेश करती है तो उस दौर में जवान पीढ़ी के लिए यह कड़वीं यादों को दोहराने जैसा है। वैसे तो क्रिकेट के घोटालों पर जन्नत और अजहर जैसी फिल्में भी बनी हैं, जिनमें कुछ हकीकत और कुछ कल्पना के साथ घटनाओं को दिखाया गया था, मगर कॉट आउट सही रंग दिखाती है।
मैच फिक्सिंग स्कैम को लेकर इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट अनिरुद्ध बहल का इंटरव्यू काफी रोमांचक है। अनिरुद्ध बताते हैं कि वो उस वक्त आउटलुक मैगजीन के साथ थे। वो स्पोर्ट्स कवर नहीं करते थे, मगर स्पोर्ट्स देखने वाले जर्नलिस्ट बीमार पड़ गये तो उन्हें यह जिम्मेदारी दे दी गयी थी। वो खुद को आउटसाइडर कहते हैं।
प्रेस बॉक्स में आते थे बुकीज के कॉल
रेग्युलर स्पोर्ट्स कवर करने वाले जर्नलिस्ट्स ने कभी नेगेटिव चीजों को रिपोर्ट नहीं किया था। प्रेस बॉक्स में जब जर्नलिस्ट के पास पिच को लेकर, खिलाड़ियों को लेकर कॉल आने लगे तो उन्हें शक हुआ कि यह बुकीज की तरफ से आ रहे हैं। प्रेस बॉक्स में बैठकर बुकीज से बात करना अनैतिकता है। इसके बाद बुकीज को खोजने और इस पूरे स्कैम की परतें उघाड़ने का सिलसिला शुरू होता है।
लगभग एक घंटा 11 मिनट की डॉक्युमेंट्री में इस तरह के किस्सों का नैरेशन बांधे रखता है और एक रोमांच का अनुभव करवाता है। ऐसी कई बातें हैं, जो सामने आती हैं। क्रिकेट के खेल का यह झोल इंटरव्यूज और फुटेज के जरिए दिलचस्प लगता है। डॉक्युमेंट्री, मूल रूप से अंग्रेजी में है, मगर हिंदी, तमिल और तेलुगु डबिंग के साथ भी उपलब्ध है।
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