Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi नहीं, पहले ये था सीरियल का नाम... इस खास शख्स से इंस्पायर्ड है कहानी
क्योंकि... सास भी कभी बहू थी (Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi) फिर से टीवी पर वापसी कर रहा है। स्मृति ईरानी को फिर से तुलसी विरानी के किरदार में देखने के लिए दर्शक बेताब हैं। इस बीच दैनिक जागरण के साथ बातचीत में स्मृति और एकता कपूर ने कई दिलचस्प किस्से शेयर किए हैं।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। करीब 25 साल पहले आए धारावाहिक ‘क्योंकि... सास भी कभी बहू थी’ (Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Th) ने लोकप्रियता के शिखर को छुआ था। शो में तुलसी विरानी के संस्कार, सूझबूझ और आत्मीयता ने देश-विदेश के लोगों को खूब लुभाया था।
अब फिर तुलसी लौट रही है ‘क्योंकि... सास भी कभी बहू थी रिटर्न्स’ (Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Th 2) के साथ। इसे लेकर ति इरानी, शो की क्रिएटर एकता कपूर व जियोस्टार के क्लस्टर हेड (एंटरटेनमेंट) सुमंता बोस ने दैनिक जागरण से खास बातचीत में शो के बारे में बात की है।
मूल शो को बनाने के पीछे क्या सोच था?
एकता: अम्मा हमारे साथ रहती थीं। मैंने उनकी जिंदगी देखी थी। पहले इस शो का नाम अम्मा था। फिर इसका नाम बदलकर हमने ‘क्योंकि... सास भी कभी बहू थी’ रखा। बा (सुधा शिवपुरी) जैसे पात्र हर घर में रहते हैं। सास-बहू का रिश्ता इतना अजीब होता है, लेकिन दोनों एक ही इंसान से प्यार करती हैं। ऐसे कहानी का निर्माण हुआ।
17 साल बाद अभिनय में वापसी कर रही हैं। इसे मिस नहीं किया?
स्मृति: नहीं। एक कैबिनेट मंत्री या सांसद होने के नाते आप समाज में बदलाव ला सकते हैं, देश की सेवा करते हैं। इससे बड़ा प्रभु का आशीर्वाद नहीं हो सकता। देश की संसद और संविधान सर्वोपरि हैं। उनके सामने कुछ जरूरी नहीं।
आपने तो मूल शो के दौरान ही राजनीति में भी कदम रख दिया था।
स्मृति: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कई ऐसी इकाइयां हैं, जिनके साथ मैं काम कर रही थी। मेरे नाना जी आरएसएस में थे। मेरी माता जी जनसंघ से बतौर सामान्य कार्यकर्ता जुड़ी थीं। मैं नीति निर्माण में योगदान देना चाहती थी इसलिए मैंने 2003 में संगठनात्मक राजनीति में कदम रखा। यह बहुत सोचा-समझा निर्णय था।
25 साल बाद शो में वापसी का कैसे सोचा?
स्मृति: मेरे लिए इस कार्यक्रम के माध्यम से घर वापसी है और यह सीमित एपिसोड वाली सीरीज है। मैंने अपने किसी प्रसारण को ओटीटी पर नहीं देखा तो यह सारे फैक्टर मेरे लिए वाजिब थे। नए अनुभव ही नए मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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यह काम तुलसी तक सीमित रहेगा या आगे भी जारी रहेगा।
स्मृति : अभी तुलसी तक ही सीमित रहेगा। मुझे नहीं लगता कि हमारे देश की राजनीति में किसी भी व्यक्ति ने दो अलग-अलग क्षेत्रों, मीडिया और राजनीति में सफलता का शिखर एक साथ देखा होगा। प्रभु की कृपा से मैं वो खास व्यक्ति हूं। अभी वो परत न खोलें, तो बेहतर होगा। देखें आगे कौन से शिखर हैं।
ओटीटी और टीवी का दर्शक अलग है। ऐसे में दोनों को संतुष्ट करना कितनी बड़ी चुनौती है?
सुमंता: अगर कहानी अच्छी है, तो दोनों दर्शकों का झुकाव होगा। मैं ऐसी कहानियों को प्राथमिकता देता हूं, जो एंटरटेन करें व मूल्यों को भी आकार दें। जब पहला प्रोमो आया तो युवाओं में काफी उत्साह दिखा। उन्होंने कहा कि इसके बारे में अपनी मां से सुना था। हम नई कहानी देखना चाहते हैं।
शो की वापसी का दबाव है?
एकता कपूर: डर है कि नया शो दर्शकों की कल्पनाओं के अनुरूप होगा या नहीं। हमें जो मुद्दे एंटरटेनमेंट के जरिए उठाने हैं, जो वैल्यू सिस्टम डालना है, जो विचार-विमर्श घरों में शुरू करवाना है, उसका काम यह शो करेगा।
सुमंता : समय बदल गया है, लेकिन कुछ आधारभूत चीजें समाज के लिए अभी भी नहीं बदली हैं। इस शो का सांस्कृतिक प्रभाव रहा है कि लोग बच्चों को कैसी परवरिश दें। वही उम्मीद नए शो से है। अब चुनौतियां ज्यादा हैं, लेकिन एकता बेहतरीन तरीके से कहानी कहती हैं।
इस बार किन मुद्दों पर बात होगी?
एकता : पैरेंटिंग बहुत बड़ा मुद्दा है। आप अपने तरीके से घर चलाते हैं, बच्चों की अपनी पसंद होती है। इसके अलावा अन्य मुद्दे भी उठाए हैं।
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