स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Kapil Sharma's Zwigato Movie Review: कपिल शर्मा की फिल्म ज्विगाटो सिनेमाघरों में पहुंच गयी है। फिराक और मंटो के बाद ज्विगाटो बतौर निर्देशक नंदिता दास की तीसरी फिल्म है। ज्विगाटो को पहले शार्ट फिल्म के तौर पर बनाने की तैयारी थी, लेकिन बाद में इसे फीचर फिल्म के तौर पर विकसित किया गया।
फिल्म की कहानी कोरोना महामारी के बाद के दौर की है। कोरोना महामारी के बाद छाई आर्थिक मंदी में काफी लोगों की नौकरियां छिन गई थीं। ऐसे में जीवनयापन के लिए लोगों ने जो काम मिला, उसे करने से गुरेज नहीं किया। ज्विगाटो की कहानी भी इस पृष्ठभूमि में गढ़ी गई है।
रेटिंग्स और इनसेंटिव के खेल की कहानी
भुवनेश्वर में मानस महतो (कपिल शर्मा) अपनी पत्नी प्रतिमा (शहाना गोस्वामी), दो बच्चों और अपनी बुजुर्ग और बीमार मां के साथ रहता है। फैक्ट्री सुपरवाइजर की नौकरी से हटाए गया गया मानस आठ महीने बेरोजगार रहा होता है। परिवार के पालन पोषण के लिए वह फूड डिलीवरी ऐप ज्विगोटो में डिलीवरी ब्वॉय का काम करता है। उसकी कोशिश होती है कि हर दिन दस डिलीवरी कर पाए।
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कंपनी हर डिलीवरी के साथ सेल्फी लेने पर दस रुपये अतिरिक्त देती है। वह इस काम में नया है। घर की खस्ता आर्थिक हालत को देखते हुए प्रतिमा भी माल में सफाई कर्मचारी का काम करना चाहती है, लेकिन मानस उसके लिए तैयार नहीं है। मानस अपनी रेटिंग, इनसेंटिव और पेनाल्टी को लेकर परेशान रहता है। एक दिन उसकी आइडी को ब्लाक कर दिया जाता है।
कई मुद्दों को छूती है ज्विगाटो
नंदिता दास और समीर पाटिल लिखित कहानी में बेरोजगारी, कंपनी द्वारा कर्मचारियों का शोषण, धार्मिक भेदभाव, अमीरी-गरीबी के फासले को दर्शाने की कोशिश की गयी है। उन्होंने अलग-अलग प्रसंगों के जरिए डिलीवरी ब्वॉय की जिंदगी में आने वाली दिक्कतों को दर्शाया है।
मसलन ऑर्डर छोटा हो या बड़ा, उन्हें तय इनसेंटिव ही मिलेगा। उन्होंने कोरोना काल के बाद के दौर को चुना है, जिसमें बार-बार मास्क पहनने को कहा जाता है। कोई टोकरी में ही खाने का पैकेट रखने को कहता है। फिल्म में एक संवाद में मानस के मनोभावों को सुंदर अभिव्यक्ति मिली है। वो मजबूर है, इसलिए मजदूर है।
कहानी पूरी तरह से मानस पर केंद्रित है। हालांकि, मां के साथ मानस की बांडिंग दिखी नहीं है। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की दिक्कतों को नंदिता गहराई से प्रदर्शित नहीं कर पाई हैं। फिल्म में संवदेनाओं को उभारने की ज्यादा जरूरत थी। ट्रेन का दृश्य डालने का औचित्य भी समझ नहीं आया।
सीधी-सपाट दौड़ती है ज्विगाटो
नेता गोविंदराज (स्वानंद किरकिरे) का विरोध-प्रदर्शन कहानी में जबरन ठूंसा गया लगता है। फिल्म में मानस को काफी हताश दिखाया गया है। शो मस्ट गो ऑन यानी जीवन चलने का नाम है, की तर्ज पर फिल्म के अंत को बहुत आसान रखा गया है, जबकि कहानी को देखते हुए आप उसे अलग मोड़ पर देखने की उम्मीद करते हैं।
बहरहाल, सिनेमैटोग्राफर रंजन पालित ने अपने कैमरे के जरिए भुवनेशवर की खूबसूरत लोकेशंस के बजाय वहां की असल जिंदगी को दर्शाने का प्रयास किया है। कपिल ने अब्बास मस्तान की फिल्म किस किस को प्यार करूं से अपने अभिनय सफर का आगाज किया था। उसके बाद फिरंगी फिल्म का निर्माण करने के साथ उसमें अभिनय भी किया। यह फिल्म बॉक्स आफिस पर फीकी साबित हुई।
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ज्विगाटो बतौर अभिनेता कपिल की तीसरी फिल्म है। यहां पर वह अपनी कामेडी छवि से इतर गंभीर भूमिका में नजर आए हैं। नंदिता का कहना रहा है कि कपिल में उन्हें आम आदमी नजर आता है। कपिल ने आम से खास बनने का सफर तय किया है, लेकिन पर्दे पर उनकी कामिक स्टाइल की झलक मिल ही जाती है।
गृहिणी की भूमिका में शाहना गोस्वामी का अभिनय सराहनीय है। उन्होंने आम महिला की दिक्कतों से लेकर अपने उच्चारण पर बेहतरीन काम किया है। मेहमान भूमिका में गुल पनाग, स्वानंद किरकिरे और शायोनी गुप्ता कहानी को खास मोड़ नहीं दे पाते हैं। फिल्म की अच्छी बात यह है कि इसमें जबरन कोई गाना नहीं ठूंसा गया है।
नंदिता की इस फिल्म को देखने के बाद संभावना है कि कुछ लोगों का नजरिया डिलीवरी ब्वॉय की रेंटिंग के प्रति बदले, जो कि उनके काम का अहम हिस्सा है, जिसके लिए वे हर ग्राहक से गुहार लगाते हैं।
प्रमुख कलाकार: कपिल शर्मा, शहाना गोस्वामी आदि।
निर्देशक: नंदिता दास
अवधि: 105 मिनट
स्टार: तीन