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    Vijay 69 Review: 69 साल है खुद की उम्र, फिल्म के लिए सीखी स्वीमिंग, भीतर से झकझोर देगी Anupam Kher की ये फिल्म

    Updated: Fri, 08 Nov 2024 01:48 PM (IST)

    अनुपम खेर की नई फिल्‍म विजय 69 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में अनुपम खेर एक चिड़चिड़े बुड्ढे का किरदार निभाया है जिसके सपने बहुत बड़े बड़े हैं। ये फिल्म सपनों को जीने और उम्र से अध‍िक जज्‍बे की कहानी है। आप इसे नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं। फिल्म में अनुपम खेर के अलावा चंकी पांडे भी मुख्य किरदार में हैं।

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    अनुपम खेर की विजय 69 का रिव्यू (Photo: Jagran Online)

    एंटरटेनमेंट डेस्क,मुंबई। विजय मैथ्यू (अनुपम खेर) को मिसेज बक्शी (गुड्डी मारुति) पानी में कूदते हुए देखती हैं। सबको लगता है कि विजय इस दुनिया में नहीं रहा। चर्च में विजय का 30 साल पुराना दोस्त फली (चंकी पांडे) उसे याद करते हुए बताता है कि कैसे विजय ने तीन बार गरबा नाइट्स डांस में ट्राफी जीती थी। हालांकि विजय मरा नहीं होता है। वह उस रात अपने किसी दोस्त के घर जाकर रुक जाता है। मिसेज बक्शी को कोई गलतफहमी हुई थी।

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    विजय जब वह पेज देखता है, जिसमें फली ने उसकी उपलब्धियों के बारे में लिखा है,तो वह गुस्से में कहता है कि उसने नेशनल स्विमिंग चैंपियनशिप में तैराकी में उसके कास्य पदक जीतने की बात क्यों नहीं बताई? फिर वह एक पेज पर अपनी उपलब्धियां लिखने बैठता है, लेकिन उसे अपनी कोई और उपलब्धि नहीं मिलती। विजय के मोहल्ले से आदित्य (मिहिर अहूजा) ट्रायथलान में भाग लेने वाला है, जिसमें डेढ़ किलोमीटर तैराकी, 40 किलोमीटर साइकलिंग और 10 किलोमीटर की दौड़ लगानी होती है। विजय भी उसमें हिस्सा लेता है, ताकि दुनिया से जाने के बाद लोग उसकी इस उपलब्धि को याद रखें।

    फिल्म का निर्देशन चकाचक

    जहां कमर्शियल फिल्में बिना अच्छी कहानी के बड़े बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का दावा करते नहीं थक रही हैं,वहीं यह फिल्म साबित करती है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए बड़ा बजट नहीं, बल्कि अच्छी कहानी और साफ नीयत चाहिए। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद लिखने वाले निर्देशक अक्षय रॉय न ही कहानी में कहीं से चूकते हैं, न ही निर्देशन में। बुढ़ापे में चीयरलीडर बनकर साथ देने वाले हमसफर की कमी, सच्चे दोस्तों की जरुरत, खुद की पहचान को दोबारा खोजने का संघर्ष ऐसी कई बातों को छूते हुए फिल्म आगे बढ़ती है।

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    फिल्म में दिल छू लेने वाले डायलॉग्स

    विजय का ताबूत के भीतर सोकर सोचना कि जिंदगी में क्या किया झकझोरता है। मीडिया को कार्टून की तरह पेश करने वाले सीन बताते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री के लेखकों और निर्देशकों को इस क्षेत्र पर काफी रिसर्च करने की जरूरत है।

    फिल्म के संवाद 69 का हो गया तो क्या सपने देखना बंद कर दूं? 69 का हूं तो क्या सुबह उठकर अखबार पढ़ूं? 69 का हूं तो क्या दवाइयां खाकर सो जाऊं और एक दिन मर जाऊं? जैसे संवाद याद दिलाते हैं कि उम्र को महज एक आंकड़ा ही समझें। अक्षय ने फिल्म में विजय के पात्र को किसी सुपरहीरो की तरह नहीं दिखाया है। उम्र संबंधी समस्याओं के साथ उन्होंने इस पात्र को गढ़ा है।

    फिल्म के लिए अनुपम खेर ने सीखी तैराकी

    अनुपम खेर ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने इस फिल्म के लिए तैराकी सीखी थी। वह खुद 69 साल के हैं, ऐसे में वास्तविक जीवन में उम्र को मात्र एक नंबर समझने का जज्बा इस फिल्म में भी दिखाई देता है। क्लाइमेक्स में जब वह फिनिश लाइन तक पहुंचते हैं, तो उनकी जीत बेहद निजी महसूस होती है।

    चंकी पांडे कहीं-कहीं पारसी भाषा में बात करना भूल जाते हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक सच्चे दोस्त की भूमिका निभाई है, उसमें यह कमियां छुप जाती हैं। गुड्डी मारुति को स्क्रीन पर देखकर लगता है कि उन्हें और काम करना चाहिए। बेटी की भूमिका में सुलगना पाणिग्रही और प्रतिद्वंदी की भूमिका में मिहिर आहूजा का काम अच्छा है। कोच की भूमिका में व्रजेश हीरजी के पात्र को और जगह मिलनी चाहिए थी।

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