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Trial By Fire Review: उपहार सिनेमा त्रासदी के पीड़ितों का भावनाओं में लिपटा दस्तावेज है 'ट्रायल बाइ फायर'

Trial By Fire Review दिल्ली का उपहार सिनेमा अग्निकांड ने पूरे देश को हिला दिया था। इस त्रासदी में खाक हुई जिंदगियों के बारे में सोचकर रूह कांप जाती है। नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज में पीड़ितों और जिम्मेदारों के बीच कानूनी लड़ाई दिखायी गयी है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthPublished: Fri, 13 Jan 2023 03:38 PM (IST)Updated: Fri, 13 Jan 2023 03:38 PM (IST)
Trial By Fire Review: उपहार सिनेमा त्रासदी के पीड़ितों का भावनाओं में लिपटा दस्तावेज है 'ट्रायल बाइ फायर'
Trial By Fire Review Netflix Series Staring Abhay Deol Rajshri Deshpande. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, दिल्ली। नेटफ्लिक्स की इस सीरीज की रिलीज से पहले उपहार सिनेमा अग्निकांड के दोषी सुशील अंसल ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर करके इस पर रोक लगाने की मांग की थी। गुरुवार को उच्च न्यायालय ने ट्रायल बाइ फायर की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इस फैसले के साथ न्यायालय ने जो टिप्पणी की, वो इस कहानी की अहमियत को दर्शाती है।

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जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ने उपहार सिनेमा अग्निकांड की घटना को दहलाने वाला बताते हुए कहा कि यह बहस और चर्चा का विषय रही है। यह अकल्पनीय त्रासदी थी, जिसने देश का सिर शर्म से झुका दिया था। इस कमेंट से समझा जा सकता है कि उपहार सिनेमा अग्निकांड की दर्दभरी यादें कितनी गहरी हैं। 

कहानी नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति की है, जिन्होंने लगभग 25 सालों तक चले कोर्ट ट्रायल पर इसी शीर्षक से किताब लिखी थी। 13 जून, 1997... दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा में जेपी दत्ता की फिल्म बॉर्डर चल रही थी। फिल्म देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ थी।

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Photo- Netfix

3 बजे के शो के दौरान थिएटर में आग लगने से 59 लोगों की जान चली गयी थी, जबकि 103 लोग भगदड़ और दम घुटने की वजह से गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। सीरीज में अभय देओल शेखर कृष्णमूर्ति और राजश्री देशपांडे नीलम कृष्णमूर्ति के रोल में हैं, जो न्याय के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते हैं। ट्रायल बाइ फायर सालों लम्बी कानूनी लड़ाई का दस्तावेज है, जिसमें भावनाओं का उतार-चढ़ाव है।

निर्देशन प्रशांत नायर और रणदीप झा का है, जिन्होंने केवि लुपरचिहो के साथ ट्रायल बाइ फायर किताब पर स्क्रीनप्ले लिखा है। इस किताब में दूसरे कई पीड़ितों के बारे में भी बताया गया है। सीरीज पहले सीन से ही आगे की कहानी के लिए स्टेज सेट कर देती है। नीलम और शेखर दक्षिणी दिल्ली में अपने दो बच्चों उन्नति (17 साल) और उज्ज्वल (13 साल) के साथ रहते हैं। एक टिपिकल मिडिल क्लास फैमिली।

Photo- Poster/Netflix

किशोरवय बच्चों की सोच और लाइफस्टाइल के साथ संतुलन बिठाती मां और पिता का कहना कि जब ये चले जाएंगे तो यह सब मिस करोगी... और वक्त की क्रूरता देखिए, जिसने पत्नी को ढांढस बनाने के लिए मुंह से निकली बात सच कर दी। उस आग में सिर्फ जिंदगी नहीं जातीं, बल्कि सपने, उम्मीदें, हंसी-खुशी, सब खाक हो जाता है। 

इस त्रासदी से टूटा कृष्णमूर्ति कपल दूसरे पीड़ितों के साथ मिलकर इस हादसे के पीछे की वजह और जिम्मेदारों खोजने निकलते हैं। इसके साथ सीरीज में इनवेस्टिगेटिव ड्रामा में बदल जाती है, जिसमें नीलम का किरदार उभरकर आता है। यह कहानी इसलिए भी देखनी चाहिए कि किस तरह सीमित संसाधन वाले मिडिल क्लास कपल ने असीमित संसाधनों वाले कारोबारी से लड़ाई जारी रखी। भावनाओं का सैलाब पूरे नैरेशन में पिरोया हुआ है। फिर चाहे वो परिवार के दृश्य हों या कोर्ट के दृश्य। 

राजश्री देशपांडे नीलम के दर्द, व्यथा, कसक और छटपटाहट को जिस शिद्दत से उकेरा है, वो दृश्यों की जान है। कुछ दृश्यों में संवाद बोले बिना भी महज भावाभिव्यक्ति से ही राजश्री सब कुछ बयां कर देती हैं। अभिनय की रवानगी से दर्शक नीलम के किरदार से जुड़ जाता है और एक वक्त पर उसका दर्द महसूस करने लगता है। अभय देओल संजीदा किस्म के अभिनेता रहे हैं और शेखर के किरदार में समा गये हैं।

Photo- Twitter

दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के कर्मचारी वीर सिंह के किरदार में राजेश तैलंग का काम उल्लेखनीय है। ट्रांसफॉर्मर में धमाका होने और आग लगने से पहले इसी कर्मचारी ने उसकी मरम्मत की थी। उसे ही बलि का बकरा बना दिया जाता है। वीर सिंह जेल आता-जाता रहता है और इस दौरान उसका परिवार सामान्य जिंदगी बिताता रहता है, वो दृश्य बेहद दिलचस्प हैं।आशीष विद्यार्थी सूखे मेवों के कारोबारी के किरदार में हैं, जो दोनों पार्टियों के बीच एक मध्यस्थ की तरह है। आशीष इस किरदार में प्रभावित करते हैं।

कहानी के मेन प्लॉट के साथ सबप्लॉट इसे देखने लायक बनाते हैं। अनुपम खेर वार वेटरन के किरदार में हैं, जो वक्त से पहले रिटायर हो जाता है। रत्ना पाठक शाह उनकी पत्नी बनी हैं। प्रशांत और रणदीप झा का निर्देशन कसा हुआ है। उन्होंने कहानी के प्रवाह को बनाये रखा है और कलाकारों से किरदारों के दायरे में बेहतरीन काम लिया है। 7 एपिसोड्स की सीरीज पकड़कर रखती है। सीरीज के सातों एपिसोड्स के टाइटल्स ट्रायल बाइ फायर, AVUT, मेमोरियल, उपहार, हीरोज, विलेंस और बॉर्डर भी उपहार, सिनेमा और पीड़ितों के संघर्ष की कहानी बयां करते हैं। इस हादसे के वक्त उपहार में बॉर्डर ही लगी थी। 

कलाकार- अभय देओल, राजश्री देशपांडे, राजेश तैलंग, आशीष विद्यार्थी आदि।

निर्देशक- प्रशांत नायर और रणदीप झा।

निर्माता- एंडेमोल शाइन इंडिया

प्लेफॉर्म- नेटफ्लिक्स

अवधि- लगभग 45 मिनट प्रति एपिसोड 

रेटिंग- ***1/2

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