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    Chhath Review: दिल को छूती है यह पारिवारिक कहानी, यहां देख सकते हैं ये फिल्म

    Updated: Thu, 23 Oct 2025 04:47 PM (IST)

    जानी मानी एक्ट्रेस नीतू चंद्रा (Neetu Chandra) अपने भाई और निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा (Nitin Neera Chandra) के साथ एक नई फिल्म लेकर आई हैं, जिसका नाम है छठ (Chhath)। 24 अक्‍टूबर को डिजिटल प्‍लेटफार्म वेव्‍स पर रिलीज रही उनकी फिल्‍म 'छठ' (Chhath) असल में भोजपुरी सिनेमा और पारिवारिक रिश्तों के बारे में बताती है। छठ पर्व मनाने के साथ घर-परिवार और आपसी रिश्‍ते के ताने बाने में गढ़ी फिल्‍म अपनों अहमियत को बखूबी दर्शाती है। फिल्म देखने से पहले जरूर पढ़ें हमारा ये रिव्यू

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    दिल को छू जाएगी फिल्म 'छठ' की कहानी, पढ़ें हमारा ये रिव्यू

    फिल्‍म रिव्‍यू : छठ

    प्रमुख कलाकार : शशि वर्मा, दीपक सिंह, मेघना पांचाल, सुषमा सिन्‍हा, स्‍नेहा पल्‍लवी

    निर्देशक : नितिन नीरा चंद्रा

    अवधि : 137 मिनट

    स्‍टार : साढे तीन

    रिलीज प्‍लेटफार्म : वेव्‍स

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई. भोजपुरी फिल्मों या गानों का जिक्र आते ही दिमाग में सबसे पहले यही आता है कि उसमें कितनी अश्लीलता और फूहड़ता होती है। ऊपर से द्विअर्थी संवाद। इसके चलते लोग अपने ही परिवार के साथ भोजपुरी फिल्‍में या गाने देखने से कतराते हैं। वहीं मैथिली फिल्‍म श्रेणी के तहत मिथिला मखान के लिए सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार जीत चुकी नीतू चंद्रा (Neetu Chandra) अपने भाई और निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा (Nitin Neera Chandra) के साथ अपनी फिल्‍मों के जरिए इस छवि को बदलने की सार्थक कोशिश कर रही है। 24 अक्‍टूबर को डिजिटल प्‍लेटफार्म वेव्‍स पर रिलीज रही उनकी फिल्‍म 'छठ' (Chhath) इसकी ताजा मिसाल है। छठ पर्व मनाने के साथ पारिवारिक रिश्‍ते के ताने बाने में गढ़ी फिल्‍म परिवार की अहमियत को बखूबी दर्शाती है।

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    कहानी बिहार के एक गांव में सेट है। गोविंद (शशि वर्मा) अपनी मां, पत्‍नी ज्‍योति (स्‍नेहा पल्‍लवी) के साथ रहता है। उनके दो बेटे मोतिहारी में पढ़ रहे हैं। एक बेटा छठ के बाद परीक्षा की वजह से नहीं आ पाया है। 25 साल बाद गोविंद का पूरा परिवार छठ के मौके पर इकट्ठा हो रहा है। उनकी तीन बहनें अपने पति और बच्‍चों के साथ तो भतीजा मोहित (दीपक सिंह) अपनी नवविवाहित पत्‍नी नीलांजना (मेघना पांचाल ) के साथ आता है। मोहित अमेरिका में कार्यरत है। मोहित के माता-पिता का निधन हो चुका है। गोविंद का मोहित के जन्‍म के बाद से ही गहरा जुड़ाव रहा है। स्‍वजनों के एकत्र होने पर बचपन की यादें ताजा होती है। नीलांजना को मोहित अपनी जमीन दिखाने के लिए लाता है, लेकिन वहां पर छोटी सी बिल्डिंग बनी होती है, जिसमें क्‍लीनिक चल रहा है और फिर यह बात मोहित को खटकती है। दूर के रिश्‍तेदार से उसे पता चलता है कि इस क्‍लीनिक से उसके चाचा को अच्‍छा किराया भी मिल रहा है। मोहित को यह बात बुरी लगती है कि चाचा ने बिना बताए उसकी जमीन पर क्‍लीनिक बना दिया। उसे लगता है कि चाचा ने उसकी जमीन हड़प ली। इसके बाद वह चाचा से मकान गिराने या चार साल का किराया करीब छह लाख रुपये देने की शर्त रखता है। ऐसा न करने पर सांझ वाला अर्ध्‍य न देने और वहां से जाने की बात करता है। वहां से घर का माहौल तनावपूर्ण होता है। परिवार दो खेमों में बंट जाता है। मोहित को कई बार गोविंद समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन वह सुनने को राजी नहीं होता। क्‍या वाकई गोविंद ने जमीन हड़पी है? उसके पीछे असल वजह क्‍या है ? कहानी इस संबंध में है।

     

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    निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा ने छठ के पावन पर्व के साथ पारिवारिक रिश्‍तों, उनके बीच आपसी मनमुटाव, बिहार से बाहर रह रही नई पीढ़ी के सोच-विचार, तौर तरीकों को बारीकी से छुआ हैं। वह शुरुआत से अंत तक कहानी पर पकड़ बनाए रखते हैं। चूंकि फिल्‍म की शूटिंग गांव में हुई है तो माहौल वास्‍तविक लगता है। शुरुआत में परिवार के सदस्‍यों के एकत्र होने के साथ ही नितिन छठ की तैयारी के साथ गोविंद और उसके परिवार की दुनिया में ले आते हैं। नई नवेली बहू अगर ठीक से पल्‍लू न करें, बिछिया न पहने तो बुआ का ताने देना, खानपान में मीनमेख निकालने वाले फूफा, बहनों का आपस में अपनी ही भाभी की खिल्‍ली उड़ाना, भाई बहनों के बीच आपसी नोकझोंक जैसे पहलुओं को बहुत बारीकी से दिखाया है। फिल्‍म के कई दृश्‍य मध्‍यमवर्गीय परिवार के लोगों को अपने बचपन की याद दिला देगा, जो किसी खास मौके पर एकत्र होते हैं। आपसी मनमुटाव कम करने को लेकर गोविंद की कोशिशें और मोहित के अहंकार का टकराव वास्‍तविक लगता है। यह बिना सच जाने रिश्‍तों पर तोहमत न लगाने की हिदायत भी दे जाता है। कुल मिलाकर हर सीन पर बारीकी से काम किया गया है। फिल्‍म के संवाद भी प्रभावी है। अच्‍छी बात यह है कि हर किरदार को उबरने का मौका मिला है। फिल्‍म में कुछ संवाद हिंदी में भी है लेकिन यह भोजपुरी के प्रवाह को बाधित नहीं करते हैं।

    सीमित बजट में बनी इस फिल्‍म का अहम पक्ष सभी कलाकारों की अदायगी है। गोविंद की आत्‍मीयता, बेबसी और परिवार के जिम्‍मेदार सदस्‍य की भूमिका को शशि वर्मा ने बहुत शिद्दत से जीया है। उनके हिस्‍से में आए कई दृश्‍य भावुक कर जाते हैं। उनकी पत्‍नी की भूमिका में स्‍नेहा पल्‍लवी का अभिनय सराहनीय है। मोहित की जिद और अहंकार को दीपक सिंह सादगी से आत्‍मसात करते हैं। नीलांजना के द्वंद्व को मेघना पांचाल बखूबी जीती हैं। सहयोगी कलाकारों की भूमिका में आए कलाकारों की प्रशंसा बनती है। भोजपुरी में बनी यह फिल्‍म वास्‍तव में दिल को छूती है, इसके साथ ही परिवार और रिश्‍तों की अहमियत समझने का संदेश भी दे जाती है।

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