The Tenant Movie Review: महिलाओं के प्रति समाज के पाखंड को दर्शाती है शमिता शेट्टी की फिल्म, पढ़ें पूरा रिव्यू
The Tenant Movie Review शमिता शेट्टी इस फिल्म के जरिए काफी अर्से बाद बड़े पर्दे पर लौटी हैं। इस बीच वो बिग बॉस और ओटीटी के जरिए अपने फैंस के बीच पहुंचती रही हैं। शमिता की यह फिल्म समाज के डबल स्टैंडर्ड को दिखाती है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। द टेनेंट यानी किराएदार। यह फिल्म किराएदार के तौर पर अकेले रहने वाली आजाद ख्याल और आधुनिक लड़की की कहानी है, जो अपनी शर्तों पर जीना पसंद करती है। हालांकि, उसके आसपास के लोग बिना जाने उसके चरित्र पर लांछन लगाने लग जाते हैं। यह फिल्म महिलाओं के प्रति समाज के पाखंड को उजागर करती है।
मध्यमवर्गीय सोसाइटी में मीरा की कहानी
कहानी मॉडल और पेंटर मीरा (शमिता शेट्टी) की है। वह एक मध्यमवर्गीय लोगों की सोसाइटी में किराए के फ्लैट में पर रहने आती है। छोटे-छोटे परिधान पहनने की वजह से सभी की नजरों में आ आती हैं। यहां तक कि सोसाइटी में रहने वाले किशोर लड़के भी उसकी ओर आकर्षित होते हैं। इसी सोसाइटी में रहने वाला भरत (रूद्राक्ष जायसवाल) धीरे-धीरे उससे दोस्ती कर लेता है।
गर्मियों की छुट्टियों की वजह से वह उसके अव्यविस्थत घर को सुव्यवस्थित करने में मदद करता है। मीरा अपने दोस्तों को अपने घर पर डिनर पर बुलाती है। उसमें भरत भी आता है। तब उसे मीरा की जिंदगी के कई राज पता चलते हैं कि उसका ब्वायफ्रेंड है। उसकी असली नाम सोनिया है। भरत उसके नाम को इंटरनेट पर खोजता है तो उसके अतीत से जुड़ी कुछ चौंकाने वाली जानकारियां मिलती हैं। क्या होता है जब यह जानकारियां सोसाइटी के लोगों को पता चलती है? कहानी इस संबंध में है।
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महिलाओं के नजरिए को दिखाती है कहानी
बतौर लेखक और निर्देशक सुश्रुत जैन की यह पहली फिल्म है। इससे पहले उन्होंने शॉर्ट फिल्म और डाक्युमेंट्री का निर्देशन किया है। उन्होंने मीरा के प्रति भरत के आकर्षण को छोटी सी लव स्टोरी नहीं बनने दिया। उनके रिश्ते को बहुत खूबसूरती से दर्शाया है। इसके साथ ही अकेली, स्वतंत्र विचारों वाली और आत्मनिर्भर महिलाओं के प्रति किशोर से लेकर अधेड़ पुरुषों की रूढ़िवादी सोच, घरेलू महिलाओं के दृष्टिकोण को बारीकी से चित्रित किया है।
घरेलू महिलाओं की जिंदगी को भी छूने को प्रयास किया है, जिनकी इच्छाओं के प्रति पति का कोई ध्यान नहीं है। वहीं, समाज के दोगलेपन को भी दिखाती है, जो पुरुषों की गलती को सहजता से लेता है, लेकिन महिलाओं की गलतियों के लिए उन्हें ताउम्र माफ नहीं करता। यह किशोरावस्था के लड़कों के मनोभावों को भी छूती है। यह वह अवस्था होती है, जब जीवन की सच्चाइयों से थोड़ा-थोड़ा उनका सामना होना शुरू होता है।
जीवन के यह अनुभव उन्हें महिलाओं के प्रति संवेदनशील बना सकते हैं या फिर उन्हीं रूढ़िवादी विचारों तक सीमित कर सकते हैं, जो सदियों से चले आ रहे हैं। दोस्ती के कई पहलू को भी बहुत अच्छे से चित्रित करती है। मसलन, मीरा के दोस्त प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उसका साथ नहीं छोड़ते हैं।
भरत और पप्पू की दोस्ती है, जो एक-दूसरे के हमराज हैं। इन प्रसंगों को कहानी में बहुत सहजता से गूंथा गया है। यह फिल्म मीरा के अतीत की झलक देती है, लेकिन जिंदगी उसकी गहराई में नहीं जाती। उसके परिवार के बारे में भी कोई जानकारी नहीं देती। वह अपने घर की चाबी भरत को दे देती है। भरत को उसके माता पिता की इजाजत के बिना घुमाने ले जाती है। माता पिता को भी चिंता नहीं होती कि इतनी देर लड़का कहां रहा?
उसकी मां पेड़े बनाकर पड़ोसी के घर देकर आने को कहती है, लेकिन वो मीरा को दे आता है। यह बात भी पकड़ी नहीं जाती, जबकि सोसाइटी में महिलाओं को गॉसिप करते दिखाया गया है। भरत की मीरा के साथ बढ़ती दोस्ती की सोसाइटी में किसी को भनक नहीं होती, जबकि मीरा के आने जाने पर सबकी निगाहें होती हैं।
शमिता का अभिनय सराहनीय
कलाकारों में शमिता शेट्टी का अभिनय बेहद सराहनीय है। उनका पात्र आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और स्पष्टवादी महिला की भूमिका में उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो किन्हीं कारणों से अकेले रह रही हैं। जिनकी आजादी और स्वच्छंदता के मायने बिना जांचे परखे ही व्यक्त कर दिए जाते हैं।
भरत की भूमिका में रूद्राक्ष मासूम लगे हैं। उस उम्र के लड़के की भावनाओं, आकर्षण और समझदारी को उन्होंने सुमचित तरीके से चरितार्थ किया है। बाकी सहयोगी भूमिका में आए कलाकार अतुल श्रीवास्तव, दिव्या जगदले, शीबा चड्डा, स्वानंद किरकिरे का अभिनय उल्लेखनीय है। फिल्म का खास आकर्षण इसका संगीत भी है। वह कहानी साथ सुसंगत है। फिल्म में काफी डायलाग अंग्रेजी में भी हैं। यह आज के दौर के लोगों को दर्शाते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार हिंदी को प्राथमिकता देते हैं। बहरहाल, यह फिल्म सही मायने में नारीवाद के मुद्दे को बिना लाग लपेट के सादगी के साथ दर्शाती है।
कलाकार: शमिता शेट्टी, रूद्राक्ष जायसवाल, अतुल श्रीवास्तव, दिव्या जगदले, अक्षत सिंह, स्वानंद किरकिरे, शीबा चड्ढा
लेखक और निर्देशक: सुश्रुत जैन
अवधि: दो घंटा दो मिनट
रेटिंग: तीन
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