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The Railway Men Review: भोपाल गैस त्रासदी के घाव पर इंसानियत का मरहम, बेहतरीन लेखन के साथ अभिनय की जुगलबंदी

The Railway Men Review भोपाल गैस त्रासदी की पृष्ठभूमि पर बनी द रेलवे मेन सच्ची घटना से प्रेरित कहानी है। यशराज बैनर की इस पहली सीरीज का निर्देशन शिव रवैल ने किया है। केके मेनन आर माधवन बाबिल खान दिव्येंदु मुख्य किरदारों में हैं। सीरीज इस घटना के अनदेखे पहलू को रेखांकित करती है। भोपाल गैस त्रासदी 1984 में हुई थी।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthPublished: Sat, 18 Nov 2023 05:41 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2023 05:41 PM (IST)
द रेलवे मेन नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गयी है। फोटो- इंस्टाग्राम

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। यशराज फिल्म्स ने चार एपिसोड्स की मिनी सीरीज द रेलवे मेन के साथ ओटीटी स्पेस में अपना खाता खोल दिया है। सीरीज नेटफ्लिक्स पर शनिवार को स्ट्रीम हो चुकी है। पहली सीरीज के लिए बैनर ने एक ऐसी सच्ची कहानी सुनी है, जिसके जख्म आज तक नहीं भरे हैं। 

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भारतीय इतिहास में 1984 दो दहलाने वाली घटनाओं के लिए याद किया जाता है- 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जघन्य हत्या और उसके बाद सिखों के खिलाफ हुए दंगे। दूसरी घटना है 3 दिसम्बर को भोपाल में हुई गैस त्रासदी। दोनों में हजारों मासूमों की जानें गयीं। दोनों घटनाओं के बीच फासला लगभग एक महीना।  

द रेलवे मेन मुख्य रूप से भोपाल गैस लीक की घटना की पृष्ठभूमि पर आधारित सीरीज है, जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद घटनाक्रमों की छींटें भी हैं। यह गुमनाम हीरोज की कहानी है। उनके जज्बे, हौसले, इंसानियत को दिखाती है और इस बात को साबित करती है कि सुपरहीरोज सिर्फ वर्दी या कॉस्ट्यूम पहनकर नहीं आते।

अपनी जान पर खेलकर जिंदगी बचाने वाला हर शख्स सुपरहीरो होता है। यह सीरीज किरदारों के माध्यम से इंसानी फितरत के नकारात्मक पहलुओं पर भी टिप्पणी करती है। द रेलवे मेन कसे लेखन और बेहतरीन अभिनय से सजी सीरीज है, जो भावनात्मक उतार-चढ़ाव के साथ उम्मीद जगाती है। 

क्या है सीरीज की कहानी?

घाटे से जूझ रही अमेरिकन केमिकल कम्पनी यूनियन कार्बाइड में सुरक्षा को लेकर लगातार अनदेखी की जा रही है। कर्मचारी इसे समझते हैं, मगर मैनेजमेंट नुकसान का हवाला देकर उन्हें चुप करवा देता है। 2 दिसम्बर, 1984 की रात मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआइसी) गैस लीक हो जाती है। शहरभर में गैस फैलने लगती है और इससे पहले कि लोग कुछ समझ सकें, मरने लगते हैं।

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भोपाल जंक्शन के स्टेशन मास्टर इफ्तेखार सिद्दीकी (केके मेनन) के सामने लोगों को बचाने की जिम्मेदारी है, साथ ही इटारसी से भोपाल की ओर आ रही ट्रेनों को रोकना भी है, ताकि ट्रेन में आ रहे लोगों की जान बच सके। रेलवे का कम्युनिकेशन सिस्टम खराब होने की वजह से चुनौती बढ़ जाती है।

जीएम सेंट्रल रेलवे रति पांडेय (आर माधवन) इटारसी जंक्शन पर औचक निरीक्षण के लिए पहुंचता है। भोपाल के हालात पता चलने पर वो कमान अपने हाथ में लेता है और उधर जाने वाली ट्रेनों को रोकने की कोशिश करता है, मगर नाकामयाब रहता है।

भोपाल जंक्शन और इस ट्रेन के यात्रियों की जान बचाने की भारी चुनौती अब रेलवे कर्मियों के हाथों में है। इसमें नव नियुक्त लोको पायलट इमाद रियाज (बाबिल खान) और पुलिस कांस्टेबल के भेष में चोर बलवंत सिंह यादव (दिव्येंदु) उसकी मदद करते हैं, जो भोपाल स्टेशन पर रखे कैश को चुराने आया था।

कैसा है सीरीज का लेखन?

भोपाल गैस त्रासदी दुनिया के सबसे भयानक औद्योगिक हादसों में से एक माना जाता है। इस दहलाने वाली घटना को कुछ फिल्मों और डॉक्युमेंट्रीज के जरिए पहले भी दिखाया जाता रहा है, लेकिन रेल विभाग के एंगल से त्रासदी को पहली बार दिखाया गया है। आयुष गुप्ता ने सीरीज का लेखन किया है और शिव रवैल का निर्देशन है। 

सीरीज की शुरुआत यूनियन कार्बाइड में गैस लीक की घटना से 16 घंटे पहले 2 दिसम्बर 1984 से होती है। पहले एपिसोड के फर्स्ट हाफ में कहानी का स्टेज तैयार हो जाता है। लेखन की खूबी यह है कि इसमें संवादों के जरिए यूनियन कार्बाइड की लापरवाही और एक सम्भावित हादसे की रूपरेखा समझा दी गयी है।

मसलन, केके का किरदार अपने बेटे के यूनियन कार्बाइड में नौकरी करने के फैसले पर सवाल उठाता है तो समझ आ जाता है कि आम आदमी के मन में कम्पनी को लेकर क्या धारणा है।

सीरीज यहां यह सवाल भी छोड़ती है कि जिस बात को आम इंसान समझ रहा था, सिस्टम उसे क्यों नहीं समझ सका। बहरहाल, 2 दिसम्बर को गैस लीक होती है और शहर में लाशें बिछना शुरू हो जाती हैं।  

कथानक का फोकस रेलकर्मियों पर है, लिहाजा घटना का मुख्य केंद्र भोपाल जंक्शन ही रहता है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री और भोपाल शहर पर फोकस नहीं रखा गया है। 

इमाद का रेलवे में लोको पायलट की नौकरी का पहला दिन होता है। वो पहले यूनियन कार्बाइड में ही काम करता था और अपने एक दोस्त को गैस लीक में मरते देखा था। तब से वो फैक्ट्री में सुरक्षा के प्रति लापरवाही को बाहर लाने के लिए स्थानीय पत्रकार कुमावत (सनी हिंदूजा) की मदद कर रहा है, जो यूनियन कार्बाइड में पल रहे खतरे को अपने अखबार के जरिए उठाता है। 

शातिर चोर बलवंत भोपाल जंक्शन पर कैश चुराने पहुंचा है, मगर जब गैस लीक के बाद स्टेशन पर लाशों के अम्बार लगते हैं तो मदद में जुटना पड़ता है। नहीं तो उसके कॉन्सेटबल बनने के प्रपंच का भांडा फूट सकता था। क्लाइमैक्स में बलवंत का किरदार जो मोड़ लेता है, वो अहम संदेश छोड़ता है। 

वहीं, वो सफेदपोश दंगाई हैं, जो ट्रेन में घुसकर मासूमों की जान लेना चाहते हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगों के इस पहलू को भोपाल गैस त्रासदी की घटना में गूंथा गया है, जो मुख्य कथानक को सपोर्ट करता है।

सीरीज के शुरुआती दृश्यों में इफ्तेखार सिद्दीकी के घर पर चल रहे टीवी में राजीव गांधी के भाषण की लाइन सुनाई देती है- 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन थोड़ी हिलती है।' यह पंक्ति बहुत कुछ कह जाती है।

सीरीज इस घटना को लेकर सरकारी महकमे की शिथिलता और सरकारी तंत्र की काहिली को भी उजागर करती है। घातक गैस लीक की घटना को जिस तरह से डील किया गया, वो परेशान करता है। यूनियन कार्बाइड की कमियों को उघाड़ने से लेकर शहर को बचाने तक की फिक्र आम शहरवासी को ही थी।

सरकारी महकमे के जो लोग काम करना चाहते थे, उनके हाथ बांध दिये गये थे। घटनाक्रम के हिसाब से असली फुटेज और कतरनों का इस्तेमाल विश्वसनीयता बढ़ाता है, मगर लेखकों को दाद देनी होगी कि सीरीज को डॉक्युमेंट्री नहीं बनने दिया। 

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

कलाकारों के अभिनय की बात करें तो केके मेनन और बाबिल खान ने अपने किरदारों के जरिए सीरीज की रवानगी को कायम रखा। ईमानदार और अनुशासित स्टेशन मास्टर सिद्दीकी के किरदार में केके ने एक बार अपने अभिनय से रंग जमाया है।

इस किरदार की एक बैक स्टोरी भी सपनों के जरिए सामने आती है, जब एक ट्रेन हादसे में वो बच्चे की जान नहीं बचा पाया था और यही तड़प भोपाल गैस त्रासदी में उसे जानें बचाने के लिए प्रेरित करती है। यूनियन कार्बाइड से दस कदम दूर बस्ती में रहने वाले इमाद के किरदार में बाबिल की परफॉर्मेंस बांधे रखती है। उन्हें इस किरदार में ढलते देखने उनकी ग्रोथ दिखाता है।

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बलवंत चोर के किरदार में दिव्येंदु की अदाकारी दिलचस्प है। कुछ परिस्थितियों में यह किरदार दृश्यों के तनाव को कम करके ह्यूमर भी देता है। उनके संवाद भी इस तरह के हैं।

अमिताभ बच्चन की फिल्मों के शीर्षक को पिरोकर लाइन बोलना गुदगुदाता है। भोपाल जंक्शन पर फंसे यात्रियों की मदद करने की जब सारी उम्मीदें विफल हो जाती हैं तो सेंट्रल रेलवे के महाप्रबंधक रति पांडेय अपनी जीएम स्पेशल में राहत सामग्री लेकर निकलते हैं। इस किरदार में आर माधवन की मौजूदगी दमदार लगती है। 

वहीं, डीजी रेलवे राजेश्वरी जांगले के किरदार में जूही चावला की संक्षिप्त उपस्थिति प्रभावी और कहानी के लिए अहम रही है। गोरखपुर एक्सप्रेस में सिख यात्री के किरदार में मंदिरा बेदी और उसे बचाने वाले गार्ड रघुबीर यादव ने अपने किरदारों से साथ न्याय किया है। 

कैसी है सीरीज?

प्रोडक्शन विभाग ने यूनियन कार्बाइड और भोपाल जंक्शन के दृश्यों को वास्तविकता के करीब दिखाने की सराहनीय कोशिश की है। 

द रेलवे मैन इस साल रिलीज हुई बेहतरीन बेब सीरीज में शामिल हैं, जिसमें लेखन को अभिनय और निर्देशन का भरपूर साथ मिला है। लगभग एक-एक घंटे के चार एपिसोड्स की मिनी सीरीज भोपाल गैस त्रासदी की घटना के घाव पर इंसानियत का मरहम लगाने की सफल कहानी है।


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