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    The Goat Life Review: खाड़ी देश में एक गुलाम की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी, पृथ्वीराज की G.O.A.T एक्टिंग

    Updated: Thu, 28 Mar 2024 12:53 PM (IST)

    The Goat Life सरवाइवल ड्रामा है जो गोट डेज नाम की किताब पर आधारित है। Bade Miyan Chote Miyan में विलेन बने पृथ्वीराज सुकुमारन नजीब का किरदार निभा रहे हैं जो काम के लिए खाड़ी देश जाता है मगर गुलामों से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर रहता है। फिल्म का निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। द गोट लाइफ हिंदी में भी रिलीज की गई है।

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    द गोट लाइफ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। दूर के ढोल सुहावने होते हैं। यह कहावत कई बार सुनी है, लेकिन चरितार्थ तभी प्रतीत होती है, जब खुद पर गुजरी हो या किसी की दर्दनाक आपबीती पता चली हो।

    पृथ्‍वीराज सुकुमारन अभिनीत फिल्‍म द गोट लाइफ (The Goat Life) केरल निवासी नजीब मु‍हम्‍मद की जिंदगी को चित्रित करती है, जिन्‍हें तीन साल तक खाड़ी देश के रेगिस्‍तान में गुलाम बनाकर रखा गया था। यह बेन्यामिन लिखित नजीब की आत्मकथा गोट डेज (Goat Days) पर आधारित है। रोंगटे खड़े कर देने वाली यह फिल्‍म उम्‍मीद का दामन न छोड़ने का संदेश भी देती है।

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    क्या है गोट लाइफ की कहानी?

    फिल्म के आरंभ में खानाबदोश की तरह दिखता नजीब (पृथ्‍वीराज सुकुमारन) मवेशियों के बर्तन में पानी पीते दिखता है। वहां से कहानी उसके अतीत में जाती है। केरल के कई अशिक्षित व्यक्तियों की तरह धन कमाने की इच्‍छा से नजीब अनाम खाड़ी देश जाता है।

    टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने वाला गांव का लड़का हाकिम (के आर गोकुल) भी साथ होता है। यहां पर वे रोजगार के बहाने धोखाधड़ी करने वालों का शिकार हो जाते हैं। एयरपोर्ट से कफील (तालिब अल बलुशी) दोनों को अपने साथ ले जाता है। अरेबिक भाषी कफील को अंग्रेजी समझ नहीं आती।

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    वह दोनों को अलग-अलग रखता है। नजीब अपने क्रूर नियोक्ता कफील के अलावा किसी के भी संपर्क में नहीं होता। पांचवीं कक्षा पास नजीब के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। भरपेट खाने के लिए वह तरसता है।अपने गांव में नदी में नहाने वाला नजीब रेगिस्‍तान में पानी की कमी की वजह से स्नान करने में असमर्थ रहता है।

    उनके दैनिक भोजन में केवल एक मोटी रोटी सूखी शामिल होती है, जिसे खाने के लिए उसे पानी से गीला करना पड़ता है। वह अकेले ही भेड़ बकरियों के झुंड और कुछ ऊंटों की देखभाल करता है। धीरे-धीरे उसका मानवता पर से विश्वास उठता जाता है और खुद को बकरियों में से एक के रूप में पहचानना शुरू कर देता है।

    उसे पता ही नहीं चलता कि कितने दिन बीत गए हैं। कष्‍ट और मुश्किलों के बीच एक दिन अचानक हाकिम मिलता है। वह बताता है कि कफील की बेटी की शादी के दिन उसका अफ्रीकी दोस्‍त इब्राहिम (जिमी जीन लुइस) उन्‍हें सड़क तक पहुंचने में मदद करेगा। हालांकि, यह सफर आसान नहीं होता।

    मूल रूप से मलायालम में बनी और पांच भाषाओं में रिलीज हुई ‘द गोट लाइफ’ मनुष्‍य के ‘सरवाइवल इन्स्टिंक्ट’ की शानदार कहानी है। पिछली सदी के आखिरी दशक में तमाम साधनों के बीच रेगिस्‍तान पहुंचा एक व्‍यक्ति किस कदर लाचार और हतप्रभ हो सकता है? पर्दे पर उसे देखते हुए कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

    यह फिल्‍म देखते हुए आगे क्‍या होगा यह जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। आप परदे पर एकटक और अपलक उसे देखते हैं।

    कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले और अभिनय?

    मसाला फिल्‍मों की लीक से हट कर बनी इस फिल्‍म में पृथ्‍वीराज सुकुमारन निर्देशक ब्‍लेस्‍सी की कल्‍पना की उड़ान को पंख देते हैं। पृथ्‍वीराज ने नजीब की उलझन, मुश्किल, बेचारगी और दर्द को पूरी शिद्दत से पर्दे पर जीवंत किया है।

    इस दौरान हम नजीब के व्‍यक्तित्‍व और सोच में आ रहे बदलाव से परिचित होते हैं। नजीब से हमें हमदर्दी होती है और उसकी विवशता पर सहानुभूति। पहली बार भेड़-बकरियों की वापसी को लेकर मेमने का उसकी मनोदशा को समझने का दृश्‍य भावुक करता है। फिल्‍म में ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जहां सिर्फ हाव-भाव और बॉडी लैंग्‍वेज से पृथ्‍वीराज सब कुछ अभिव्‍यक्‍त करते हैं।

    ब्‍लेस्‍सी ने कठिन परिस्थितियों में नजीब के फंसने से लेकर निकलने और सरवाइव करने की कोशिश को मर्मस्‍पर्शी और संवेदनशील तरीके से दिखाया है। उन्‍हें पृथ्‍वीराज का भरपूर सहयोग मिला है। नजीब के किरदार के लिए आवश्‍यक सरलता, गंभीरता, बेबसी और तड़प पृथ्‍वीराज ले आते हैं। किरदार के क्रमिक शारीरिक और मानसिक बदलाव को उन्‍होंने खूबसूरती से जाहिर किया है।

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    यह उनके करियर की सबसे बेहतरीन फिल्‍मों में शुमार होगी। सफर में नजीब और हाकिम प्‍यास से बेहाल होते हैं, लेकिन इब्राहिम नहीं। यह थोडा अटपटा लगता है। बहरहाल इब्राहिम की भूमिका में हॉलीवुड अभिनेता जिमी जीन लुइस और काफिल बने तालिब अल बलुशी ने अपनी स्वाभाविकता से अपने पात्र को विश्‍वसनीय बनाया है।

    चंद दृश्‍यों में के आर गोकुल अपना प्रभाव छोड़ते हैं। जॉर्डन और अल्‍जीरिया के रेगिस्‍तान के माहौल, नजीब के अेकेलपन और वहां की खूबसूरती को सिनेमैटोग्राफर सुनील केएस ने नयनाभिरामी तरीके से कैमरे में कैद किया है। एआर रहमान द्वारा तैयार संगीत हिंदी में खास प्रभाव नहीं पैदा कर पाता। चुस्‍त संपादन से फिल्‍म की अवधि को थोड़ा कम किया जा सकता था।