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TBMAUJ Review: जिया लुभाती है या कहानी उलझाती है? कैसी है शाहिद कपूर और कृति सेनन की पर्दे पर केमिस्ट्री?

तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया में शाहिद कपूर और कृति सेनन पहली बार एक साथ पर्दे पर आये हैं और दोनों की केमिस्ट्री भी अच्छी लगती है मगर इस साइ-फाइ फिल्म में तकनीक से ज्यादा इमोशंस पर जोर दिया गया है जिससे बहुत सारी बातें बनावटी लगती हैं और विश्वसनीयता के अभाव में कहानी प्रभावित नहीं कर पाती। पढ़िए पूरा रिव्यू।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Published: Fri, 09 Feb 2024 11:58 AM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2024 11:58 AM (IST)
तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया रिव्यू। फोटो- एक्स

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Teri Baaton Mein Aisa Uljha Jia Review: इंसान की जिंदगी को सुविधाजनक बनाने के लिए तरह-तरह के रोबोट बनाने में वैज्ञानिक लगे हैं। उपयोग और जरूरत के हिसाब से इनका निर्माण हो रहा है। कुछ पहले से ही काम कर रहे हैं, लेकिन अगर इंसान उसके प्‍यार में दीवाना हो जाए तो कांसेप्‍ट सुनने में अच्‍छा लगेगा।

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दिनेश विजन द्वारा निर्मित साइंस फिक्‍शन रोमांटिक कामेडी तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया भी इंसान और रोबोट के इसी कांसेप्‍ट पर बुनी गई कहानी है, जो कागज पर अवश्य दिलचस्‍प लगती है, लेकिन पर्दे पर समुचित तरीके से साकार नहीं हो पाई है।

क्या है TBMAUJ की कहानी?

मुंबई में कार्यरत रोबोटिक इंजीनियर आर्यन (शाहिद कपूर) पर परिवार शादी के लिए दबाव डाल रहा है। आर्यन को अपनी हमसफर में तमाम खूबियां चाहिए। अमेरिका में रह रहीं उसकी बॉस और मौसी उर्मिला (डिंपल कपाड़िया) आर्यन को वहां बुलाती हैं।

रोबोटिक कंपनी की मालकिन उर्मिला अकेले रहने वालों का दर्द समझती है। उनकी सहायता के लिए इंसान सरीखे रोबोट बनाने के लिए प्रयासरत है। उर्मिला के घर पहुंचने पर आर्यन की सिफरा (कृति सेनन) से मुलाकात होती है। उसके साथ कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यन उस पर फिदा हो जाता है। सिफरा का पूरा नाम Super Intelligent Female Automation है।

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सिफरा रोबोट है, यह पता चलने पर आर्यन का दिल टूट जाता है। स्‍वदेश वापसी के बाद वह प्रयोग के बहाने सिफरा को भारत मंगवाता है। घर में स्‍वजनों से अपनी प्रेमिका के तौर पर मिलवाता है। परिवार भी खूबसूरत और संस्‍कारी सिफरा को राजी-खुशी अपना लेता है। उनकी शादी होने ही वाली ह‍ोती है कि सिफरा की तकनीक में समस्‍या आ जाती है। आर्यन के सपनों को आघात पहुंचता है।

कहां चूकी कहानी, कैसा है स्क्रीनप्ले?

करीब 14 पहले आई साइंस फिक्‍शन फिल्‍म रोबोट में इंसान और मशीन के बीच की जंग को कई रोचक ट्विस्‍ट और टर्न्स के साथ दर्शाया गया था। उसके साथ ही साइंटिस्‍ट रजनीकांत, मेडिकल की छात्रा बनीं ऐश्‍वर्या राय और रोबोट रजनीकांत के बीच मजेदार त्रिकोणीय प्रेमकथा चित्रित की गई थी।

फिल्‍म के स्‍पेशल इफेक्‍ट्स कमाल के थे। हालीवुड में भी कई फिल्‍में आई हैं, जिसमें इंसानी कौशल से निर्मित मशीन कैसी तबाही लाती हैं, उसे दिखाया गया है। अमित जोशी और आराधना साह द्वारा लिखित और निर्देशित कहानी की परिकल्‍पना अच्‍छी है। कहानी में बीच-बीच में कई ऐसे पल आते हैं, जो चेहरे पर मुस्‍कान लाते हैं। हालांकि, विश्‍वसनीय नहीं बन पाई है।

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फिल्‍म की शुरुआत धीमी है। मध्यांतर से पहले कहानी को परिवार और आर्यन की महत्वाकांक्षाओं और जिंदगी को दर्शाने में लेखक और निर्देशकों ने काफी समय लिया है। रोबोट को विकसित करने वाली कंपनी और उनकी कार्यप्रणाली काफी बनावटी लगी है।

आर्यन के सिफरा पर मरमिटने को लेकर स्‍क्रीनप्‍ले को चुस्‍त बनाने की जरूरत थी। आर्यन के अमीर परिवार को भोंदू जैसा दिखाने की सिनेमा की घिसीपिटी लीक से लेखकों को बाहर आने की जरूरत है। सिफरा के प्रति जिज्ञासा और गड़बड़ियों को बहुत सतही तरीके से दर्शाया है।

संवादों में बहुत ही प्रतिभावान रोबोटिक इंजीनियर बताए गए आर्यन के निर्देशों को जब सिफरा नकारती है तो कंप्‍यूटर की बजाय वह हथियार से उस पर वार करता है। यहां तक कि मौसी भी उसकी प्रोग्रामिंग की गड़बड़ी को नहीं समझ पाती हैं, जिन्‍होंने 13 साल इस रोबोट को बनाने में लगाए होते हैं। यह हास्‍यास्‍पद है।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

रोबोटिक इंजीनियर के तौर पर शाहिद कपूर के हिस्‍से में कुछ खास नहीं है, लेकिन स्‍क्रीन पर उन्‍हें डांस करते, इश्‍क लड़ाते और जुनूनी प्रेमी के तौर पर देखना अच्‍छा लगता है। रोबोट की भूमिका में कृति सेनन ने अपनी भूमिका के साथ न्‍याय किया है।

हालांकि, उनके पात्र पर लेखकों को काम करने की जरूरत थी। मौसी और आर्यन की बॉस की भूमिका में डिंपल कपाड़िया का अभिनय कमजोर है, लेकिन वह काफी स्‍टाइलिश दिखी हैं। लेखन स्‍तर पर उनका पात्र बेहद कमजोर है। सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र दादा की संक्षिप्‍त भूमिका में हैं।

बाकी सहयोगी भूमिका में आए कलाकार राकेश बेदी, राजेश कुमार, आशीष वर्मा अपने चिरपरिचित अंदाज में हैं। तकनीक के स्‍तर पर फिल्‍म औसत है। 'तेरी बातों में उलझा जिया' गाना प्रमोशनल है। बाकी गीत संगीत साधारण है। सिनेमाघर से बाहर आने पर याद नहीं रहते। फिल्‍म के आखिर में सीक्‍वल का संकेत है। बेहतर होता कि इसे ही मुकम्मल फिल्‍म बनाते।

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