Single Salma Review: अच्छे मुद्दे को निर्देशक ने बना दिया खिचड़ी, 'सिंगल सलमा' का यहां पढ़ें रिव्यू
'थामा' और एक दीवाने की दीवानियत के बीच हाल ही में हुमा कुरैशी फिल्म 'सिंगल सलमा' के साथ थिएटर में आई हैं। इस फिल्म में उनके साथ श्रेयस तलपड़े और सनी सिंह मुख्य भूमिका में हैं। इस ट्राएंगल लव स्टोरी में 30 साल की लड़की की कहानी दिखाई गई है। विषय को नचिकेत सामंत ने काफी अच्छा चुना है, फिर कहां ये फिल्म मात खा रही है, नीचे पढ़ें रिव्यू:

हुमा कुरैशी की सिंगल सलमा का रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphic

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। लखनऊ में स्थापित सिंगल सलमा की कहानी में एक दृश्य है जिसमें पहली बार लंदन गई सरकारी विभाग में कार्यरत श्रीवास्तव मैडम (नवनीत परिहार) कमोट (Camote) को देखकर घबरा जाती हैं। जबकि वह अपने बच्चों की सुपरहीरो थीम पर आधारित जन्मदिन पार्टी पर स्पाइडरमैन के मास्क, हीमैन की तलवार मंगा रही होती है। यह दृश्य देखते समय लगता है कि लेखक और निर्देशक ने रिसर्च करने या लखनऊ को करीब से जानने की कोशिश ही नहीं की। वह किस दौर की फिल्म बना रहे हैं उसमें खुद ही गडमड हो गए।
दरअसल, यह फिल्म वर्तमान दौर में सेट है जहां स्मार्ट फोन सबके हाथ में है, लेकिन इसके शामिल प्रसंग और घटनाएं घिसी पिटी और पिछली सदी के आठवें दशक की प्रतीत होती है। स्मार्ट फोन के जमाने में बिकनी पहने लड़की की फोटो को जिस प्रकार से वायरल किया है वह अपच है।
क्या है सिंगल सलमा की कहानी?
यह फिल्म तीस की उम्र पार कर चुकी सलमा रिजवी (हुमा कुरैशी) की है। सरकारी विभाग में इंजीनियर सलमा के पिता पूर्व नवाब (कंवलजीत सिंह) रहे हैं। गिरवी रखी हवेली की किश्त चुकाने के साथ अपनी तीन छोटी बहनों की शादी उसने लोन लेकर कराई है। छोटे भाई की पढ़ाई ओर क्रिकेटर बनने के सपने का खर्च उठा रही है। मां उसकी शादी करवाने के लिए प्रयास करती है। इस क्रम वह सिकंदर (श्रेयस तलपड़े) से मिलती है। 40 साल का सिकंदर सलमा को देखते ही उस पर मोहित हो जाता है।
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शादी से चंद दिनों पहले सलमा को चार सहयोगियों के साथ लंदन ट्रेनिंग के लिए जाना होता है। सिकंदर इस पर राजी हो जाता है। लंदन पहुंचने पर सलमा की मुलाकात मीत (सनी सिंह) से होती है। मीत ओपन रिलेशनशिप (जहां रिश्तों में बंदिश न हो) में यकीन रखता है। मीत के साथ सलमा की नजदीकियां बढ़ती हैं। वह सलमा को अपने दादा से भी मिलवाता है। लंदन से लौटने पर सलमा यह बात सिकंदर को बताती है। सिकंदर बारात लाने पर अड़ जाता है। वहीं मीत भी लंदन से आकर सलमा के लिए उसी दिन बारात लाता है। सलमा इन दोनों में किसी को चुनेगी या कुछ और फिल्म इस संबंध में है।
अच्छे विषय में जबरन दर्शाए गए बेबुनियाद सीन
अमीना खान और रवि कुमार की लिखी कहानी का विषय अच्छा है, लेकिन परदे पर दिलचस्प नहीं बन पाई है। सलमा के साथ उन्होंने बेटे की चाहत में तीन लड़कियां होना, लड़की के चरित्र को कपड़ों से जज करना, उसकी आजादी और आकांक्षाओं जैसे मुद्दों को भी उठाने की कोशिश की है, लेकिन किसी के साथ न्याय नहीं कर पाए हैं।
सलमा के बिकिनी फोटो प्रकरण के बजाए अगर कोई और मुद्दा उठाया होता तो कहानी को ठोस आधार मिलता। सलमा खूबसूरत, काबिल, प्रतिभावान और आत्मनिर्भर है, लेकिन 33 साल की उम्र तक आते आते उसके अंदरुनी द्वंद्व और ख्वाहिशों को लेखक समुचित तरीके से दर्शा नहीं पाए हैं। उन्होंने सिंगल सलमा के जरिए अकेली लड़कियों का मुद्दा उठाया है, लेकिन उसकी गहराई में उतर नहीं पाए हैं।
कमजोर कहानी को नहीं संभाल पाईं हुमा कुरैशी
हुमा कुरैशी के भाई साकिब सलीम इसके निर्माता हैं। फिल्म का भार हुमा के कंधों पर है। हुमा ने कर्तव्य और आत्मसम्मान के द्वंद्व को पूरी शिद्दत से जिया है। कई जगह वह खूबसूरत दिखी हैं लेकिन कमजोर कहानी को वह अपने अभिनय से संभाल नहीं पाती है। हुमा और सनी के बीच केमिस्ट्री भी जमती नहीं है। अनपढ़ सिकंदर की भूमिका में श्रेयस तलपड़े का पात्र जरूर रोचक है, हालांकि चालीस का दिखाने के लिए रंगे बाल उन पर जमते नहीं हैं। उनका पात्र भी समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है। सलमा की दोस्त की भूमिका में निधि सिंह और नवनी परिहार का अभिनय उल्लेखनीय है।
उनके हिस्से में कुछ चुटकीले संवाद आए हैं। नचिकेत सामंत और जस्सी संधू के गीतों को सोहेल सेन और जस्सी सिंधू ने संगीत दिया है। वह कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ता। अहम मुद्दे पर बनी फिल्म कमजोर पटकथा की वजह से प्रभाव नहीं छोड़ती।

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