फिल्म रिव्यू: एक्शन और इमोशन से भरपूर 'शिवाय' (3.5 स्टार)
अजय देवगन की यह फिल्म एक्शन और इमोशन के लिए देखी जा सकती है। अजय देवगन ने एक्शन का मानदंड बढ़ा दिया है। ‘शिवाय’ में शिव का धार्मिक या आध्यात्मिक पक्ष नहीं है। अजय देवगन की ‘शिवाय’ में अनेक खूबियां हैं। हिंदी में ऐसी एक्शन फिल्म नहीं देखी गई है।
-अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार- अजय देवगन, एरिका कार और साएशा सहगल।
निर्देशक- अजय देवगन
संगीत निर्देशक- मिथुन
स्टार- 3.5 स्टार
अजय देवगन की ‘शिवाय’ में अनेक खूबियां हैं। हिंदी में ऐसी एक्शन फिल्म नहीं देखी गई है। खासकर बर्फीली वादियों और बर्फ से ढके पहाड़ों का एक्शन रोमांचित करता है। हिंदी फिल्मों में दक्षिण की फिल्मों की नकल में गुरूत्वाकर्षण के विपरीत चल रहे एक्शन के प्रचलन से अलग जाकर अजय देवगन ने इंटरनेशनल स्तर का एक्शन रचा है। वे स्वयं ही ‘शिवाय’ के नायक और निर्देशक हैं। एक्शन दृश्यों में उनकी तल्लीनता दिखती है। पहाड़ पर चढ़ने और फिर हिमस्खलन से बचने के दृश्यों का संयोजन रोमांचक है। एक्शन फिल्मों में अगर पलकें न झपकें और उत्सुकता बनी रहे तो कह सकते हैं कि एक्शन वर्क कर रहा है। ‘शिवाय’ का बड़ा हिस्सा एक्शन से भरा है, जो इमोशन को साथ लेकर चलता है।
फिल्म शुरू होती है और कुछ दृश्यों के बाद हम नौ साल पहले के समय में चले जाते हैं। शिवाय पर्वतारोहियों का गाइड और संचालक है। वह अपने काम में निपुण और दक्ष है। उसकी मुलाकात बुल्गारिया की लड़की वोल्गा से होती है। दोनों के बीच हंसी-मजाक होता है और वे एक-दूसरे को भाने लगते हैं। तभी हिमपात और तूफान आता है। इस तूफान में शिवाय और वोल्गा फंस जाते हैं। बर्फीले तूफान से बचने के लिए वे अपने तंबू में घुसते है। वह तंबू एक दर्रे में लटक जाता है। यहीं दोनों का सघन रोमांस और प्रेम होता है। चुंबन-आलिंगन के साथ उनकी प्रगाढ़ता दिखाई जाती है।
लेखक संदीप श्रीवास्तव ने नायक-नायिका प्रेम की अद्भुत कल्पना की है। कह सकते हैं कि हिंदी फिल्मों में पहली बार ऐसा प्रेम दिखा है। आम हिंदी फिल्मों की तरह ही नायिका गर्भवती हो जाती है। वोल्गा अभी मां बनने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन शिवाय को संतान चाहिए। आखिरकार वोल्गा इस शर्त पर राजी होती है कि वह प्रसव के बाद बच्चे का मुंह देखे बगैर अपने देश लौट जाएगी। कहानी इसी अलगाव से पैदा होती है। घटनाएं जुड़ती हैं और फिल्म आगे बढ़ती है।
शिवाय अपनी बेटी का नाम गौरा रखता है। बाप-बेटी के बीच गहरा रिश्ता है। दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते हैं। गौरा को मां की कमी नहीं महसूस होती। एक भूकंप के बाद अचानक मां का पत्र उसके हाथ लगता है। वह जिद कर बैठती है कि उसे मां से मिलना है। शिवाय आरंभिक इंकार के बाद बुल्गारिया जाने के लिए राजी हो जाता है। बाप-बेटी बुल्गारिया पहुंचते हैं, लेकिन मां ने अपना ठिकाना बदल लिया है। वे भारतीय दूतावास की मदद लेने आते हैं तो वहां एक बिहारी अधिकारी मिलते हैं। उनके इंट्रोड्यूसिंग सीन में बिहारी लहजे और स्वभाव पर जोर दिया गया है, जो बाद में लेखक, निर्देशक और कलाकार भूल जाते हैं।
बहरहाल, बुल्गारिया में कुछ अप्रत्याकशित घटता है और शिवाय को फिर से एक्शन मोड में आ जाने का मौका मिलता है। एक्शन और इमोशन से लबरेज इस फिल्म में चाइल्ड ट्रैफिकिंग का मुद्दा भी आ जुड़ता है। उसकी भयावहता और इंटरनेशनल तार से भी हम वाकिफ होते हैं। पता चलता है कि कैसे सिर्फ 72 घंटों में गायब किए गए बच्चों को ठिकाना लगा दिया जाता है।
अजय देवगन की यह फिल्म एक्शन और इमोशन के लिए देखी जा सकती है। अजय देवगन ने एक्शन का मानदंड बढ़ा दिया है। चूंकि वे पहली फिल्म से ही एक्शन में प्रवीण है, वे इस रोल और एक्शन में जंचते हैं। उन्होंने एक्शन के साथ अपनी अदाकारी के जलवे भी दिखाए हैं। नाटकीय और इमोशनल दृश्यों में उनकी आंखें और चेहरे के भाव बोलते हैं। वोल्गा बनी एरिका कार के हिस्से कम सीन आए हैं। उन्हें मुख्य रूप से खूबसूरत दिखना था। वह दिखी हैं। अभिनय और दृश्य के लिहाज से सायशा को अधिक स्पेस मिला है। पहली फिल्म होने के बावजूद वह अपनी मौजूदगी दर्ज करती हैं। वह अच्छी लगती हैं। उन्होंने अपने किरदार के द्वंद्व को समझा और पेश किया है। बेटी गौरा की भूमिका में एबिगेल एम्स बहुत एक्सप्रेसिव हैं। एबिगेल मूक किरदार में है, लेकिन वह अपने एक्सप्रेशन और अंदाज से सारे इमोशन बखूबी जाहिर करती हैं।
अजय देवगन की ‘शिवाय’ में शिव का धार्मिक या आध्यात्मिक पक्ष नहीं है। शिवाय की शिव में श्रद्धा है और उसके स्वभाव में शैवपन है। बाकी वह ट्रैडिशनल भारतीय पुरुष है, जो परिवार, संतान और पारिवारिक मूल्यों को तरजीह देता है। देखें तो वोल्गा पश्चिम की लड़की है। वे ऐसे इमोशन में यकीन नहीं करती है। वह बेटी को सौंप कर शिवाय की जिंदगी से निकल जाती है। हालांकि बाद में लेखक ने उसकी ममता जगा दी है, फिर भी वह शिवाय और गौरा के साथ नहीं आती। ‘शिवाय’ इमोशनल फिल्म है, लेकिन हिंदी फिल्मों के प्रचलित मैलोड्रामा से बचती है। अजय देवगन का प्रयास सराहनीय है। उन्होंने हर स्तर फिल्म की हद बढ़ाई है।
अवधि- 172 मिनट
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