Shaakuntalam Review: शकुंतला-दुष्यंत के प्रेम की गहराई पर भारी कहानी की गति, पढ़िए कैसी है सामंथा की फिल्म
Shaakuntalam Movie Review शाकुंतलम की कहानी महाकवि कालिदास के लोकप्रिय संस्कृत नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम से ली गयी है। हालांकि यह प्रचलित भारतीय पौराणिक कथा है जिसका वर्णन महाभारत में भी मिलता है। फिल्म में सामंथा रूथ प्रभु ने लीड रोल निभाया है।

नई दिल्ली, जेएनएन। सामंथा रूथ प्रभु की फिल्म शाकुंतलम शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। दक्षिण भारतीय भाषाओं के साथ फिल्म को हिंदी में भी डब वर्जन के साथ रिलीज किया गया है। ऐसी कई पौराणिक कहानियां हैं, जिन्हें स्कूली शिक्षा या धार्मिक ग्रंथों के जरिए पढ़ा और सुना गया है। ऐसी ही कहानी है राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम की।
इस कहानी का सबसे लोकप्रिय साहित्यिक प्रस्तुतिकरण है महाकवि कालिदास का संस्कृत नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम, जिस पर आधारित है तेलुगु सिनेमा की फिल्म शाकुंतलम। इसी नाटक से निकली है भारत की कहानी। हालांकि, शकुंतला-दुष्यंत की कहानी मूल रूप से महाभारत के आदि पर्व में लिखी गयी है।
क्या है शाकुंतलम की कहानी?
शकुंतला, महर्षि विश्वामित्र और स्वर्ग की अप्सरा मेनका की बेटी हैं। बचपन में ही उसे माता-पिता ने त्याग दिया था। कण्व ऋषि के आश्रम में पली-बढ़ी शकुंतला को शिकार के लिए जंगल आये राजा दुष्यंत से प्रेम हो जाता है। दोनों गंधर्व विवाह कर लेते हैं। कुछ वक्त ठहरकर दुष्यंत ये वादा करके चले जाते हैं कि वो वापस आएंगे और शकुंतला को भव्य और जोरशोर से लेकर जाएंगे।
बेहद गुस्सैल दुर्वासा ऋषि एक दिन कण्व ऋषि के आश्रम में आते हैं। दुष्यंत की याद में खोई शकुंतला उनकी आवाज नहीं सुन पाती, जिससे क्रोधित होकर ऋषि उसे श्राप देते हैं कि जिसकी याद में वो खोई है, वो ही उसे भूल जाएगा।
शकुंतला को जब पता चलता है कि वो गर्भवती हो गयी है तो कण्व ऋषि की सलाह पर राजा दुष्यंत के पास जाती है, मगर श्राप के कारण राजा उसे पहचानता नहीं और शकुंतला लौट आती है। श्राप खत्म होने के बाद ही वो राजा से मिल पाती है।
कितना असर छोड़ती है शाकुंतलम?
भारतीय दर्शक के लिए यह कहानी नई नहीं है। ऐसी कहानी, जिसे सब जानते हों, उसे पर्दे पर पेश करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। कल्पना से ऐसे दृश्यों को गढ़ना होता है, जो दर्शक की दिलचस्पी बनाये रखें और उसे चौंकाएं। मगर, शकुंतला इस मामले में कमजोर है।
गुणसेखर लिखित-निर्देशित शाकुंतलम के दृश्य काफी रंग-बिरंगे तो लगते हैं, मगर उनमें वो धार नहीं कि दर्शक को हिलने ना दें। डिज्नी की फैंटेसी फिल्मों की तरह इन्हें संवारा गया है और साकार किया गया है। वीएफएक्स के जरिए जंगल, पशु-पक्षियों को बनाया गया है। मगर, कहीं-कहीं वीएफएक्स कमजोर होने की वजह से दृश्य असर नहीं छोड़ पाये हैं।
हिंदी डबिंग के साथ दिक्कत यह है कि भाषा में संतुलन नहीं है। कहीं-कहीं संवादों की भाषा फिल्म की माइथोलॉजिकल थीम से मेल नहीं खाती। फिल्म इंटरवल से पहले बेहद धीमी है। शकुंतला और दुष्यंत के बीच प्रेम के दृश्यों में गहराई नहीं दिखती, जिसके लिए यह कहानी अमर है।
सामंथा ने अपने हिस्से का काम ठीक से किया है, वहीं दुष्यंत के किरदार में देव मोहन ने भी पूरी कोशिश की है, मगर दोनों मिलकर छाप नहीं छोड़ते। ऐसा लगता है कि तकनीक पर फोकस रहने के कारण कहानी को कसने वाले बिंदु पीछे छूट गये हैं। अल्लू अर्जुन की बेटी आरहा की मौजूदगी प्रभावी रही है। आरहा की यह पहली फिल्म है।
कलाकार- सामंथा रूथ प्रभु, देव मोहन, सचिन खेड़ेकर, मोहन बाबू, प्रकाश राज, गौतमी, मधु, कबीर बेदी, आरहा आदि।
निर्देशक- गुणसेखर
निर्माता- नीलिमा गुहा
रेटिंग- **1/2
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