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    Khichdi 2 Review: लॉजिक के चक्कर में पड़ेंगे तो हाजमा बिगाड़ देगी 'खिचड़ी', हंसना है तो बस देखते रहिए

    By Jagran NewsEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Fri, 17 Nov 2023 04:43 PM (IST)

    Khichdi 2 Review खिचड़ी 2 शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गयी है। यह 2010 में आयी फिल्म का सीक्वल है। खिचड़ी सीरियल के बाद इसे फिल्म में ढालकर पर्दे पर उतारा गया था। लम्बे अर्से बाद इसका सीक्वल रिलीज किया जा रहा है। आतिश कपाड़िया ने निर्देशन किया है जबकि फिल्म की ओरिजिनल स्टार कास्ट को सीक्वल में भी शामिल किया गया है।

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    खिचड़ी 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो गयी है। फोटो- इंस्टाग्राम

    प्रियंका सिंह, मुंबई। लम्बे अंतराल के बाद भी कई फिल्मों के सीक्वल दर्शकों के बीच आ रहे हैं। इनमें गदर 2 के बाद खिचड़ी 2: मिशन पांथुकिस्तान का नाम भी जुड़ गया है। यह फिल्म साल 2010 में रिलीज हुई खिचड़ी- द मूवी का सीक्वल है।

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    13 साल पहले बनी 'खिचड़ी- द मूवी' उस वक्त की पहली फिल्म थी, जिसे धारावाहिक खिचड़ी पर बनाया गया था। अब सीक्वल की कहानी और किरदार पांथुकिस्तान पहुंच गए हैं, जहां पारेख परिवार एक मिशन पर निकलता है।

    क्या है खिचड़ी 2 की कहानी?

    थोड़ी इंटेलिजेंस एजेंसी (टीआइए) का सदस्य (अनंत विधात शर्मा) पारेख परिवार को पांथुकिस्तान के शहंशाह के चंगुल में फंसे भारतीय वैज्ञानिक मक्खनवाला (परेश गणात्रा) को छुड़ाकर लाने का जिम्मा सौंपता है।

    इसके लिए वह पारेख परिवार को पांच करोड़ रुपये देता है। पारेख परिवार के बेटे प्रफ्फुल (राजीव मेहता) की शक्ल हूबहू उस शहंशाह से मिलती है।

    योजना यह होती है कि शहंशाह को अगवा करके प्रफ्फुल को उसकी जगह दे दी जाएगी और वैज्ञानिक को वहां से निकाल लिया जाएगा। इस मिशन में पारेख परिवार कितना कामयाब होता है, इस पर कहानी आगे बढ़ती है।

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    कितनी पकी खिचड़ी?

    फिल्म का लेखन और निर्देशन करने वाले आतिश कपाड़िया की इस फिल्म में जो परिस्थितियां हैं, उसमें कोई लॉजिक न ढूंढें तो फिल्म मजेदार लगेगी।

    हालांकि, ऐसा करना संभव नहीं है, क्योंकि कहानी में संदेश की तलाश भले ही न हो, लेकिन लॉजिक की होती है। बाकी इस फिल्म की कहानी साधारण है, जो पारेख परिवार की आपसी नोकझोंक और नादानियों की झलक प्रस्तुत करती है।

    हालांकि, फिल्म के बजाय इन किरदारों को टीवी पर देखना ज्यादा मजेदार होता है। खैर, कहानी भले ही कमजोर हो, लेकिन इसके कलाकारों ने जिस तरह से अपने अभिनय से इसे संभाला है, उसकी प्रशंसा करना बनता है। कहीं से महसूस नहीं होता है कि इन किरदारों को 13 साल बाद देख रहे हैं।

    पारेख परिवार का एक ही रंग के कपड़े पहनना स्क्रीन को खूबसूरत बनाता है, साथ ही उनके बीच के मजबूत रिश्ते को दर्शाता है।

    फिल्म का क्लाइमेक्स मजेदार है, जहां बीच रेगिस्तान में सारे किरदार चुपचाप बैठकर अपना काम इसलिए करने लगते हैं, क्योंकि रोबोट को भागते हुए पारेख परिवार को मारने का आदेश दिया गया होता है, उन सब के बैठ जाने से रोबोट उन्हें मार नहीं पाता है।

    वह हर किसी से केवल निवेदन करता रह जाता है कि वह भागे, ताकि वह उन्हें मार सके। अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में अपने तरीके से समझकर उसका अजीबो-गरीब अनुवाद करने वाले प्रफ्फुल और हंसा के बीच के दृश्य इतने सालों बाद भी कहीं से ऊबाऊ नहीं लगते हैं।

    कैसा है कलाकारों का अभिनय?

    हंसा की भूमिका में सुप्रिया पाठक का काम बेहतरीन है, हालांकि इस बार खुशी के मौके पर उनका उठकर गरबा करने वाले सीन की कमी महसूस होती है। हिमांशु के किरदार में जेडी मजेठिया को देखकर लगता है कि उन्होंने अपनी उम्र को बांध रखा है। वह फिट लगते हैं, साथ ही हंसा के साथ उनकी जुगलबंदी मजेदार है।

    हालांकि, किसी को पता नहीं चलेगा... वाले जोक्स की कमी महसूस होती है। प्रफ्फुल की भूमिका में राजीव मेहता पर दोहरी जिम्मेदारी है। उन्होंने मासूम प्रफ्फुल की भूमिका के साथ निर्दयी शंहशाह की भूमिका को बिना किसी रुकावट के निभाया है। बाबूजी की भूमिका में अनंग देसाई और जयश्री की भूमिका में वंदना पाठक का काम सराहनीय है।

    पायलट के रोल में प्रतीक गांधी और रोबोट बने कीकू शारदा हंसाने में कामयाब होते हैं। 'खिचड़ी- द मूवी' से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाली कीर्ति कुल्हारी परमिंदर के रोल में पहले से बेहतर लगी हैं। अनंत विधात शर्मा कामेडी में असहज दिखते हैं। फिल्म के दो गाने 'वंदे राका' और 'नाच नाच' कर्णप्रिय हैं, जिसमें कुछ अच्छे विजुअल्स देखने को मिलते हैं।

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