Gulmohar Movie Review: शर्मिला टैगोर और मनोज बाजपेयी की अदाकारी से महका रिश्तों का 'गुलमोहर'
Gulmohar Movie Review गुलमोहर के जरिए शर्मिला टैगोर एक दशक बाद अभिनय की दुनिया में लौटी हैं। यह उनका ओटीटी डेब्यू भी है। वहीं द फैमिली मैन वाले मनोज बाजपेयी इस बार पारिवारिक समस्याओं में उलझ गये हैं। फिल्म का निर्देशन राहुल चित्तेला ने किया है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। राहुल चित्तेला निर्देशित गुलमोहर बत्रा परिवार की कहानी है, जिसमें तीन पीढि़यां एक साथ रह रही हैं। एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ रहे हैं। हालांकि, हर किसी की जिंदगी में कशमकश चल रही है। अंदरुनी तौर पर सभी में असंतोष और असंतुष्टि का भाव है।
दिल्ली के बत्रा परिवार की कहानी
नई दिल्ली की पृष्ठभूमि में गढ़ी गयी गुलमोहर का आरंभ बत्रा परिवार की पार्टी से होता है। करीब 32 साल पुराने पैतृक घर को छोड़ने से पहले पूरा परिवार चार दिन साथ है। ताकि, इस घर में एक साथ आखिरी होली को मनाया जा सके। इसी दौरान घर की मुखिया कुसुम बत्रा (शर्मिला टैगोर) बताती हैं कि उन्होंने पॉन्डिचेरी (पुडुचेरी) में घर खरीदा है। वहीं पर अकेले रहेंगी।
उनके इस फैसले से उनका बेटा अरुण (मनोज बाजपेयी) नाखुश है। अरुण का बेटा आदि (सूरज शर्मा) अपने माता-पिता के साथ नए घर में रहने के बजाय अपनी पत्नी के साथ अलग किराए के मकान में रहना चाहता है। वह अपने दम पर अपना स्टार्टअप शुरू करना चाहता है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही।
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बेटे के अलग रहने के निर्णय से पिता में नाराजगी है। अरुण की छोटी बेटी अभी कालेज में पढ़ रही है। इन चार दिनों के दौरान बत्रा परिवार के हर सदस्य के बारे में रहस्य जानने को मिलते हैं। कुछ रहस्य चौंकाते हैं। इन रहस्यों की वजह से उनके रिश्ते टूटते से नजर आते हैं, लेकिन क्या परिवार के रिश्ते सिर्फ खून से बनते हैं? आखिर में यह रिश्ते संभल पाएंगे या बिखर जाएंगे इस संबंध में कहानी है।
गुलमोहर रिव्यू- कैसी है कथा, पटकथा?
फिल्ममेकर मीरा नायर को असिस्ट कर चुके राहुल चित्तेला की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। उन्होंने अर्पिता मुखर्जी के साथ रिश्ते के तानों बानों को अच्छी तरह गूंथा है। रिश्तों की आड़ में ऊंच नीच, जातपात, संपत्ति का लालच जैसे मुद्दों को भी छुआ है। फिल्म के फर्स्ट हाफ में धीरे-धीरे सभी किरदार और उनकी जिंदगानी से आप परिचित होते हैं।
यहां हर किरदार काफी परतदार है। ढेर सारे पात्र और उनकी समस्याओं की वजह से कहानी थोड़ा जटिल हो जाती है। सब अपनी बातें कर रहे हैं, लेकिन आपस में संवाद नहीं है। आखिर परिवार क्यों पीछे छूट रहा, यह समझ नहीं आता। फिल्म में मां-बेटे, पिता-पुत्र के बीच आपसी मतभेद, दादी और पोती के बीच के रिश्तों को अच्छे से दर्शाया गया है।
शुरुआत में फिल्म के कुछ प्रसंग को देखकर लगता है कि वह कुछ दिलचस्प मोड़ लेंगे, लेकिन उन्हें समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया। वह आधे अधूरे से लगते हैं। गुलमोहर के सुरक्षा गार्ड और घरेलू सहायक के बीच के अंश अच्छे और पेचीदा हैं, लेकिन फिल्म की पटकथा को अधिक केंद्रित रखने के लिए उन्हें एडिट करने की भरपूर संभावना थी।
गुलमोहर रिव्यू- कैसा है अभिनय?
करीब 12 साल के बाद सिल्वर स्क्रीन पर नजर आईं शर्मिला टैगोर को परिवार की मुखिया के पात्र में देखना अच्छा लगता है। कुसुम के किरदार में वह बेहद सहज नजर आती हैं। हालांकि, उनके किरदार को लेकर कुछ सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। कर्तव्यनिष्ठ बेटे, जिम्मेदार पति और पिता की भावनाओं के बीच अपने अंतरद्वंद्व से जूझ रहे अरूण को मनोज बाजपेयी नया आयाम देते हैं।
हिंदी सिनेमा की इस अनोखी प्रतिभा की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह अपने किरदार में ढल जाते हैं। संबंधित किरदार में किसी और की कल्पना नहीं की जा सकती। इस किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था। अरुण की पत्नी इंदु की भूमिका में सिमरन का काम उल्लेखनीय है। वह परिवार के सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में नजर आती हैं।
अरूण के चाचा के किरदार में अमोल पालेकर जंचे हैं। ग्रे किरदार को उन्होंने विश्वसनीय बनाया है। बाकी सहयोगी कलाकारों में चंदन राय, जतिन गोस्वामी और अन्य ने सशक्त सहयोग किया है।
प्रमुख कलाकार: शर्मिला टैगोर, मनोज बाजपेयी, सिमरन, सूरज शर्मा, अमोल पालेकर
निर्देशक: राहुल वी चित्तेला
अवधि: 132 मिनट
प्लेटफार्म: डिज्नी प्लस हाटस्टार
स्टार: तीन
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