Banaras Movie Review: कांतारा के बाद आई एक और कन्नड़ फिल्म 'बनारस', टाइम ट्रैवल पर बेस्ड है मूवी, पढ़ें रिव्यू
Banaras Telugu Movie Review In Hindi ऋषभ शेट्टी की कांतारा के बाद एक और कन्नड़ डब फिल्म हिन्दी में रिलीज हुई है बनारस। टाइम ट्रैवल पर बेस्ड इस फिल्म को देखने का अगर आप मूड बना रहे हैं तो पहले पढ़ लीजिए फिल्म का रिव्यू।

प्रियंका सिंह, मुंबई। Banaras Movie Review In Hindi: टाइम ट्रैवल पर बॉलीवुड में एक्शन रिप्ले, बार बार देखो, फंटूश जैसी कुछ फिल्में बनी हैं। हॉलीवुड इस जॉनर को बनाने में माहिर है, लेकिन हिंदी सिनेमा में टाइम ट्रैवल पर बनी फिल्में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई हैं। कन्नड़ में बनी और हिंदी समेत कई भाषाओं में डब करके पैन इंडिया रिलीज की गई फिल्म 'बनारस' को भी टाइम ट्रैवल वाली फिल्म बताकर प्रमोट किया गया है।
टाइम ट्रैवल पर बेस्ड है फिल्म
कहानी शुरू होती है बड़े बिजनेसमैन का बेटे सिद्धार्थ (जैद खान) से, जो अपने दोस्तों से शर्त लगाता है कि वह दनी (सोनल मोंटियरो) को आसानी से अपने प्यार के जाल में फंसा सकता है। वह दनी से झूठ कहता है कि वह अंतरिक्ष यात्री है और भविष्य से आया है। भविष्य में दनी और उसकी शादी हो चुकी है। दनी भी उसकी बातों को मान लेती है। सिद्धार्थ दनी के रूम तक पहुंच जाता है, जहां से वह अपनी और दनी की फोटो दोस्तों को शेयर कर देता है। वह फोटो एक दोस्त की गलती की वजह से दूसरे ग्रुप में चली जाती है। दनी की बदनामी होती है।
लीड रोल में हैं जैद खान
दुखी दनी अपने चाचा-चाची के घर बनारस चली जाती है। उसके चाचा नारायण शास्त्री (अच्युत कुमार) यूनिवर्सिटी में केमेस्ट्री के प्रोफेसर हैं। वह एक ऐसा सीरम बना रहा है, जो नार्को एनालिस टेस्ट का अपग्रेडेड वर्जन है। सिद्धार्थ को जब पता चलता है कि दनी बदनामी की वजह से अपनी पढ़ाई छोड़कर बनारस चली गई है, तो वह दनी से माफी मांगने के लिए बनारस पहुंचता है। इसी बीच सिद्धार्थ को लड्डू खिलाकर उसके शरीर में एक सीरम डाल दिया जाता है, जिसका पता उसको नहीं है। क्या दनी सिद्धार्थ को माफ कर देगी? सिद्धार्थ के शरीर में वह सीरम क्या करने वाला है? इस पर फिल्म आगे बढ़ती है।
'कांतारा' कर रही है दमदार कलेक्शन
कन्नड़ सिनेमा पिछले दिनों कांतारा और केजीएफ जैसी कई बेहतरीन फिल्में बना चुका है। ऐसे में वहां की फिल्मों से उम्मीदें बढ़ जाती हैं, लेकिन बनारस फिल्म उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है। फिल्म के निर्देशक जयतीर्थ ने ही फिल्म के लेखन और स्क्रीनप्ले की जिम्मेदारी उठाई है। फिल्म की शुरुआत जिज्ञासा पैदा करती है, जब सिद्धार्थ भविष्य से आने की बात कहता है, लेकिन जैसे ही पता चलता है की वह मजाक था, वहां से कहानी में दिलचस्पी कम होने लगती है।
बचकानी लगी फिल्म
सिद्धार्थ का दनी से माफी मांगने वाले सीन को इतना लंबा खींच दिया गया है कि टाइम ट्रैवल के दृश्यों के लिए क्लाइमेक्स का इंतजार करना पड़ता है। फिल्म अंत में थोड़ी रफ्तार पकड़ती है, जब सिद्धार्थ टाइम लूप में फंसता है और वह दनी और उसके परिवार की हत्या होने से रोकना चाहता है। लेकिन जब आप इस टाइम लूप की असली कहानी अंत में जानेंगे, तो ठगा हुआ सा महसूस करेंगे। नार्को टेस्ट के साथ टाइम ट्रैवल की कहानी को जिस तरह से मिलाया गया है, वह बहुत बचकाना लगता है, खासकर तब जब तकनीक इतनी प्रगति पर है कि इस तरह की कहानियां बन सकती हैं।
लुभाते हैं बनारस के सीन
सिनेमैटोग्राफर अद्वैत गुरु मूर्ति की प्रशंसा करना बनता है, क्योंकि उन्होंने बनारस (अब वाराणसी) की खूबसूरती, वहां के खुशबू को कैमरे में कैद किया है। वाराणसी की गलियां, खानपान, गंगा घाट, जहां भगवान शिव का रूप धारण कर खेलते बच्चों को उन्हें कहानी के साथ उन्होंने बखूबी मिलाया है। फिल्म में काशी विश्वनाथ का कॉरिडोर बनने से पहले का पुराना बनारस भी दिखेगा। अद्वैत ने टाइम लूप के एक जैसे दृश्यों को भी अलग-अलग एंगल से फिल्माया है, ताकि वह हर बार नया लगे। के एम प्रकाश चुस्त संपादन के जरिए फिल्म को 30 मिनट छोटा कर सकते थे, हालांकि यह निर्णय भी निर्देशक का होता है। फिल्म की हिंदी डबिंग भी ठीक है।
दिल को छू जाता है ये गाना
अभिनय की बात करें, तो डेब्यू फिल्म होने के नाते जैद खान की मेहनत पर्दे पर दिखती है। सोनल मोंटेरो सुंदर भी लगी हैं और स्क्रिप्ट के दायरे में उन्होंने अभिनय भी अच्छा किया है। बनारस में सिद्धार्थ के दोस्त शंभू की भूमिका में अभिनेता सुजय शास्त्री का काम बढ़िया हैं। वह कई दृश्यों में हंसाते भी हैं और भावुक भी कर जाते हैं। फिल्म का गाना माय गंगे... कर्णप्रिय है।
फिल्म – बनारस
मुख्य कलाकार – जैद खान, सोनल मोंटेरो, सुजय शास्त्री, अच्युत कुमार
निर्देशक – जयतीर्थ
अवधि – 150 मिनट
रेटिंग – डेढ़
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