Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'फिल्म मेकिंग में कोई गणित नहीं होता है', Jaane Jaan के डायरेक्टर सुजॉय घोष ने खुलकर की दिल की बात

    सुजॉय ने कहा- निर्देशक होने के नाते मेरा काम है कहानी को कहना। जो किताब में था मैंने उसे वैसे ही लिया है। किरदार बहुत अच्छे से किताब में लिखा गया है तो मुझे बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। मुझे बस उन किरदारों को भारतीय बनाना पड़ा। क्योंकि मेरे दर्शक भारतीय हैं हिंदी बोलने वाले हैं। मेरे जिम्मेदारी और ड्यूटी मेरे दर्शकों के लिए पहले है।

    By Priyanka singhEdited By: Mohammad SameerUpdated: Mon, 18 Sep 2023 06:30 AM (IST)
    Hero Image
    फिल्म जाने जान काफी समय से बनाना चाहते थे निर्देशक सुजाय (file phoo)

    कहानी, बदला जैसी फिल्मों के निर्देशक सुजाय घोष करीब दो दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं। उनके द्वारा निर्देशित फिल्म जाने जान नेटफ्लिक्स पर 21 सितंबर को रिलीज होगी।

    करीना कपूर, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा अभिनीत यह फिल्म प्रख्यात उपन्यास द डिवोशन आफ सस्पेक्ट एक्स का भारतीय अडैप्टेशन है। इस मर्डर मिस्ट्री किताब को वर्ष 2005 में जापानी लेखक कीगो हिगाशिनो ने लिखा था। फिल्म को लेकर सुजाय से बातचीत के प्रमुख अंश।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1. आपने कहा था कि फिल्ममेकिंग एक साहित्य की तरह है। उसका कैलकुलेशन से कोई लेना-देना नहीं होता है। इसे विस्तार से बताएं...

    हां, इसका मतलब है कि फिल्ममेकिंग में कोई फार्मूला नहीं होता है। जैसे की मुझे फिल्म बनाना आता है, लेकिन मुझे पता नहीं है कि वो अच्छी फिल्म है या बुरी फिल्म है। मुझे बस यह पता है कि फिल्म कैसी बनती है। इसलिए मैंने उसे साहित्य कहा है, क्योंकि हम जो जैसा चल रहा है, उसके साथ-साथ चलते हैं।

    ये भी पढ़ेंः क्या हॉलीवुड में एंट्री लेने वाली हैं करीना कपूर, 'जाने-जान' एक्ट्रेस का जवाब करेगा हैरान?

    फिल्म को बनाने के पीछे की सोच बहुत स्वाभाविक होती है। लेकिन जब हम सेट पर जाते हैं, तो कई बदलाव होते हैं। फिर कलाकार अपनी तरफ से कुछ करते हैं, तो वह फिल्म और बदल जाती है। एडिट टेबल, साउंड डिजाइन में फिर कई चीजें बदलती हैं। फिल्ममेकिंग की पूरी प्रक्रिया बहुत आर्गैनिक होती है।

    2. लेकिन फिल्ममेकिंग को हमेशा फार्मूले से जोड़ा जाता रहा है। क्या इसमें वाकई कोई गणित नहीं होता है?

    नहीं, क्योंकि गणित में एक और एक जोड़ेंगे तो दो होता है। फिल्ममेकिंग में एक और एक जोड़ेंगे, तो कुछ भी हो सकता है। दो अलग कलाकारों को अगर एक सीन में डाल दिया जाए, तो वह कुछ भी कमाल कर सकते हैं।

    3. इस फिल्म के किरदार किताब के किरदारों से कितने अलग हैं?

    निर्देशक होने के नाते मेरा काम है कहानी को कहना। जो किताब में था मैंने उसे वैसे ही लिया है। किरदार बहुत अच्छे से किताब में लिखा गया है, तो मुझे बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। मुझे बस उन किरदारों को भारतीय बनाना पड़ा। क्योंकि मेरे दर्शक भारतीय हैं, हिंदी बोलने वाले हैं।

    मेरे जिम्मेदारी और ड्यूटी मेरे दर्शकों के लिए पहले है, इसलिए भारतीय बनाने के लिए मुझे जो करना पड़ा, मैंने वह चीजें की हैं। कहानी भले ही हिगाशिनो साहब की है। उसे लेकर मैंने अपने तरीके से कहने का प्रयास किया है। फिल्म के सभी किरदार किताब से ही लिए हैं। मैंने उसे भारतीय अंदाज में लिखा और फिर तीनों कलाकारों को सौंप दिया। उसके बाद जो पर्दे पर आता है, वह कलाकारों का ही कमाल होता है। लोगों को फिर उनका काम अच्छा लगे या बुरा सितारों की जिम्मेदारी होती है।

    4. क्या करीना, जयदीप और विजय इस फिल्म के लिए पहली पसंद थे?

    इस फिल्म की शुरुआत बहुत पहले हुई थी। तब चीजें अलग थी। उसके बाद इसमें कई बदलाव हुए। इस कहानी पर फिर से काम शुरू हुआ, जब करीना इस फिल्म से जुड़ीं। तब मुझे एक मंच बनाना था, जहां करीना और उनके साथ दमदार कलाकार चाहिए थे।

    केवल जयदीप और विजय के ही दो नाम मेरे दिमाग में आए थे। अगर जयदीप और विजय ना बोल देते तो यह फिल्म नहीं बनती। फिर दस साल और लग जाते इस फिल्म को बनाने में। शुक्र है कि उन्होंने हां कहा।

    5. आप किस हद तक अपनी फिल्म के लिए पसंदीदा कलाकारों को राजी करने का प्रयास करते हैं?

    जब आप लिखते हैं, तो आपके दिमाग में कलाकार आ जाते हैं। अगर आपकी लिखी कहानी में सही कलाकार फिट न हों, तो अजीब सा महसूस होने लगता है। इसलिए मैं करीना, जयदीप, विजय तीनों के पीछे भाग रहा था। विजय तो पता नहीं कहां रंगून में फंसे हुए थे।

    वह तो काफी घूमते रहते हैं। जयदीप के पास गया और उन्हें स्क्रिप्ट सुनाई, तो उन्होंने स्क्रिप्ट कुछ देर पढ़ी, फिर घर चले गए। (हंसते हुए) वह कहीं गोरेगांव (मुंबई का इलाका) में रहते हैं। मैं वहां तक भी गया। सब कुछ किया कि इन्हें फिल्म से जोड़ पाऊं। अच्छा हुआ की तीनों तैयार हुए। मुझे जैसी अपनी फिल्म बनानी थी, वैसी बनी है।

    6. आप हमेशा कहते आए हैं कि आप उन्हीं जगहों पर शूट करते हैं, जिस जगह की संस्कृति से आप वाकिफ होते हैं। कैलिमपांग में इस फिल्म को शूट के पीछे भी यही वजह रही?

    0 हां, क्योंकि किताब की कहानी टोक्यो में सेट थी। मुझे ऐसी एक छोटी सी जगह चाहिए थी, जो अकैडमिक हो, जहां किरदारों की अपनी कहानी हो। यह सब चीजें कैलिमपांग में सेट हो गई। कैलिमपांग एक रहस्यमयी दुनिया बनाने के लिए परफेक्ट जगह रही। पहाड़ हैं, हल्की धुंध होती है। थ्रिलर फिल्मों के लिए ऐसी जगह चाहिए होती है। मैं उस जगह को करीब से जानता भी हूं, इसलिए पूरी फिल्म वहीं शूट की है।

    7. फिल्म में जयदीप के किरदार नरेन में नि:स्वार्थ प्यार की भावना साफ दिखती है। क्या ऐसे प्यार में आप यकीन करते हैं?

    अगर मुझसे पूछे, तो मैं नरेन जैसा नहीं बन सकता हूं। हालांकि ऐसे लोग यकीनन दुनिया में होते हैं। निस्वार्थ प्यार करना बहुत कठिन है। कहने के लिए आसान है कि मैं प्यार में यह कर सकता हूं, वो कर सकता हूं, मैं तो यही कहता हूं कि फिर करके दिखाओ।

    मुझे किताब के इस किरदार की इसी बात ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया था कि किसी से बिना कोई उम्मीद किए केवल प्यार करना, कितनी अनोखी भावना है। मैंने पहले ऐसा कभी नहीं देखा है। मैं चाहता था कि जिसने किताब नहीं पढ़ी है, वह ऐसे किरदार से मिले कि ऐसे भी इंसान दुनिया में हो सकते हैं।