World Laughter Day 2025: बॉलीवुड की इन फिल्मों की हंसी बनी जनता की हीलिंग, साथ लाती हैं स्पेशल मैसेज
आज 4 मई को ‘वर्ल्ड लाफ्टर डे’ मनाया जा रहा है जो हर साल मई के पहले रविवार को सेलिब्रेट किया जाता है। हंसी इंसान की सेहत और मानसिक सुकून के लिए बेहद जरूरी है खासकर तनाव भरी जिंदगी में। इस मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं कुछ बेहतरीन बॉलीवुड फिल्में जो न सिर्फ गुदगुदाएंगी बल्कि आपका मूड भी फ्रेश कर देंगी।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। World Laughter Day 2025: हर साल मई के पहले रविवार को World Laughter Day 2025 यानी विश्व हास्य दिवस मनाया जाता है। वर्ल्ड लाफ्टर डे मनाने का उद्देश्य लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है। आज के समय में ज्यादातर लोग तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, ऐसे में लाफ्टर डे इस मेंटल स्ट्रेस को कम कर लोगों के जीवन में खुशी को जोड़ सकता है।
कई लोग अपने स्ट्रेस को दूर करने के लिए फिल्में देखते हैं। बॉलीवुड में भी कई ऐसी फिल्मों का निर्माण किया गया है जो एंटरटेनमेंट के साथ ऑडियंस के लिए एक थेरेपी की तरह होती हैं। इन फिल्मों का मकसद केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं होता है, इनके पीछे छिपी कहानी जनता के दिमाग पर गहरा असर करती है और मेंटली रिलीव करने में मदद करती है। आइए जानते हैं इन फिल्मों के बारे में...
मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003)
राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित मुन्ना भाई एमबीबीएस एक दिल को छूने वाली कॉमेडी है, जो मुरली प्रसाद शर्मा (संजय दत्त) नाम के आदमी की कहानी है। वह अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए डॉक्टर बनने का नाटक करता है। अपने दोस्त सर्किट (अरशद वारसी) के साथ, मुन्ना मेडिकल स्कूल में अजीब तरीके से एडमिशन ले लेता है। इसके बाद मुन्ना चिकित्सा की गंभीर दुनिया में फिट होने की कोशिश करता है। अपनी अतरंगी हरकतों के साथ वह "जादू की झप्पी" की फिलॉसफी को हर किसी के साथ बांटता है, जो वहां के मरीजों को भावनात्मक रूप से ठीक करती है।
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यह फिल्म की कहानी के लिहाज से तो मजेदार है ही। साथ में मूवी के डायलॉग्स भी काफी मजेदार हैं। 'भाई, ये टेंशन लेने का नहीं, देने का', 'केमिकल लोचा' जैसे फनी डायलॉग्स दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर करते हैं। फिल्म का कॉमेडी पार्ट मुन्ना की दूसरों की मदद करने की सच्ची इच्छा पर आधारित है, भले ही उसके तरीके अनोखे हों। उसकी "जादू की झप्पी" इंसानी रिश्तों पर जोर देती है, यह दिखाते हुए कि हंसी और मानवीयता लोगों को ठीक कर सकती है जहां दवा अकेले नाकाम रहती है।
धमाल (2007)
लिस्ट में अगला नाम इंद्र कुमार द्वारा निर्देशित धमाल का है जो एक मजेदार कॉमेडी जर्नी दिखाती है। फिल्म में चार बेवकूफ दोस्त—रॉय (रितेश देशमुख), मानव (जावेद जाफरी), आदि (अरशद वारसी), और बोमन (आशीष चौधरी)—एक छिपे हुए खजाने की तलाश में निकलते हैं, जिसका राज एक मरते हुए चोर ने बताया था।
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खजाने की लालच के अलावा फिल्म के कॉमेडी पार्ट की बात करें तो, चारों किरदार एक-दूसरे को हर गंभीर मौके पर मजेदार तंज कसते हैं और अपनी अनोखी खामियों (जैसे मानव की मूर्खता या रॉय का ओवर कॉन्फिडेंस) के साथ बाहर आते हैं। संजय दत्त का एक बेवकूफ पुलिसवाले के रूप में कैमियो और विजय राज का खजाने के लिए जुनूनी गैंगस्टर के रूप में शानदार अभिनय फिल्म पर चार चांद लगाने का काम करता है।
हालांकि कहने को धमाल मुख्य रूप से एक कॉमेडी मूवी है। मगर इसके साथ फिल्म दोस्ती और वफादारी के बीच की डोर को दिखाती है जो इसे दिल को छूने वाला बनाता है। किरदारों की कमियां और आपसी भाईचारा उन्हें दर्शकों से जोड़ने का काम करता है, और असफलताओं के बावजूद उनकी पॉजिटिव अप्रोच की बेतुकी बातों पर हंसने का मोटिवेशन देती है।
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3 इडियट्स (2009)
राजकुमार हिरानी की 3 इडियट्स बॉलीवुड की आइकॉनिक फिल्मों में से एक मानी जाती है। तीन इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की कहानी भारत के एजुकेशन सिस्टम पर एक धीमी चोट करती है। रेंचो (आमिर खान), फरहान (आर. माधवन), और राजू (शरमन जोशी) हंसाने के साथ-साथ रट्टा मारने वाली पढ़ाई और समाज की उम्मीदों पर सवाल उठाती है।
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फिल्म की कॉमेडी की बात करें तो आज भी इसके मजेदार सीन्स की चर्चा लोगों के बीच होती है। रैंचो का क्लास में अनोखे जवाब (जैसे "मशीन क्या है?"), चतुर की स्पीच और तीनों दोस्तों के नशे में होने के साथ "ऑल इज वेल" का नारा। यह सब दिल को छू जाता है। यह फिल्म पढ़ाई के दबाव और नंबरों की दौड़ की आलोचना करती है, और कहती है कि अपने शौक को चुनो। यह मेंटल हेल्थ पर बात करती है, जैसे पढ़ाई के तनाव से आत्महत्या।
पीके (2014)
राजकुमार हिरानी की पीके में एक एलियन (आमिर खान) धरती पर आता है और इंसानों के धर्म और रीति-रिवाजों पर मासूम सवाल उठाता है। फिल्म हंसाने के बहाने से अंधविश्वास और धार्मिक बंटवारे पर सवाल करती है और एक साथ रहने का मैसेज भी देती है। फिल्म में पीके का किरदार धरती पर फॉलो किए जाने वाले तौर-तरीकों को चुनौती देता है।
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उसका भगवान की मूर्ति को असली समझना, "डांसिंग कार" से कपड़े चुराना दर्शकों को खूब हंसाता है। फिल्म की खास बात है कि जहां ये एक तरफ हंसाती है वहीं दूसरी तरफ यह सवाल भी करती है। एक समाज के तौर पर खुद से ही सवाल करते हैं। फिल्म को वर्ल्ड लाफ्टर डे पर देखना किसी ट्रीट से कम नहीं है।
अंगूर (1982)
संजीव कुमार की डबल रोल वाली अंगूर एक ऐसी कॉमेडी-ड्रामा फिल्म है, जिसे हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक माना जाता है। गुलजार द्वारा निर्देशित इस फिल्म की कहानी दो जुड़वां भाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो जन्म के समय बिछड़ जाते हैं और जवानी में एक अनोखे संयोग से फिर मिलते हैं। एक भाई बड़ा होकर सीधा-सादा और नेक इंसान बनता है, जबकि दूसरा चालबाज और उचक्का। जब ये दोनों एक ही जगह टकराते हैं, तो ऐसी हास्यास्पद उलझनें पैदा होती हैं कि दर्शक हंसी से लोटपोट हो जाते हैं। सिनेमाघरों में हंसी के ठहाके गूंज उठे थे, और यह फिल्म आज भी उतनी ही ताजा लगती है।
इस फिल्म में कॉमेडी के बादशाह देवेन वर्मा की शानदार एक्टिंग ने दर्शकों का दिल जीत लिया। उनका हर सीन इतना मजेदार था कि लोग उन्हें देखते ही हंस पड़ते थे। अंगूर ने न केवल दर्शकों को हंसाया, बल्कि देवेन वर्मा के करियर को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, जिसके बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई।
अंदाज अपना अपना (1994)
1994 में जब पहली बार 'अंदाज अपना अपना' थिएटर्स में रिलीज हुई थी, तब इसे बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया गया था. मगर वक्त के साथ ये फिल्म आइकॉनिक बन गई. उस दौर में ये एक्स्परिमेंट करने वाली बॉलीवुड की पहली फिल्मों में से एक थी। अंदाज अपना अपना दो बिंदास और सपने देखने वाले दोस्तों, अमर (आमिर खान) और प्रेम (सलमान खान), की कहानी है, जो अमीर बनने और प्यार पाने के बड़े-बड़े सपने देखते हैं।
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आमिर और सलमान की जोड़ी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है। दोनों की दोस्ती और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ हर सीन को मजेदार बनाती है। फिल्म में गलतफहमियों का खेल हर सीन को हास्यास्पद बनाता है। जैसे, अमर और प्रेम का एक-दूसरे को गलत समझना, या तेजा के गुर्गों के साथ उनकी भिड़ंत, हर बार नया हंगामा खड़ा करता है।
फिल्म का देसी माहौल, 90 के दशक का फैशन, और बेपरवाह अंदाज दर्शकों को उस दौर की याद दिलाता है। यह नॉस्टैल्जिया हंसी को और खास बनाता है, खासकर विश्व हास्य दिवस जैसे मौके पर।
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