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दरअसल: संजू की ज़िंदगी का नया ‘प्रस्थान’

उम्र के इस पड़ाव पर बीवी-बच्चों,फिल्म इंडस्ट्री और प्रशंसकों से घिरे होने बावजूद संजय दत्त की तन्हाई का अंदाजा लगाना मुश्किल है।

By Manoj KhadilkarEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 06:09 PM (IST)Updated: Sun, 27 May 2018 09:35 AM (IST)
दरअसल: संजू की ज़िंदगी का नया ‘प्रस्थान’
दरअसल: संजू की ज़िंदगी का नया ‘प्रस्थान’

अजय ब्रह्मात्मज

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खबर आई है कि संजय दत्त माँ नरगिस दत्त के जन्मदिन 1 जून से अपने होम प्रोडक्शन की नई फिल्म की शूटिंग आरम्भ करेंगे। सात सालों के बाद उनके करियर का यह नया ‘प्रस्थान’ होगा। उनकी इस फिल्म का निर्देशन मूल तेलुगू ‘प्रस्थानम’ के निर्देशक देवा कट्टा ही करेंगे। इस नई शुरुआत के लिए संजय दत्त को बधाई और यह ख़ुशी की बात है कि उन्होंने इसके लिए माँ का जन्मदिन ही चुना। इसी महीने माँ नरगिस के पुण्य दिवस के मौके पर उन्होंने एक ट्वीट किया था कि ‘मैं जो भी हूँ,तुम्हारी वजह से हूँ। मैं तुम्हारी कमी महसूस करता हूँ।’ माँ के प्रति उमड़े उनके प्यार की क़द्र होनी चाहिए। सचमुच संजय आज जो भी हैं,उसमें नरगिस दत्त की परवरिश और लाड-प्यार का बड़ा योगदान है।

राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘संजू’ में माँ-बेटे के सम्बन्ध को देखना रोचक होगा। उनके निर्देशन में मनीषा कोइराला ने अवश्य नरगिस के लाड, चिंता और तकलीफ को परदे पर उतारा होगा। संजय दत्त पर छिटपुट रूप से इतना कुछ लिखा जा चुका है कि माँ-बेटे के बीच की भावनात्मक उथल-पुथल और घटनाओं के बारे में सभी कुछ ना कुछ जानते हैं। उनके आधार पर संजय के प्रति उनकी धारणाएं भी बनी हुई हैं,जिसमें उनकी बाद की गतिविधियों ने दृष्टिकोण तय किया है। उन्हें बिगड़ैल बाबा के नाम से सम्बोधित किया जाता रहा है।

बहुत मुमकिन है कि हिरानी की ‘संजू’ से संजय दत्त के बारे में बनी निगेटिव धारणाएं टूटें। हम उस संजय को देख पाएं,जो माँ की मौत के तीन सालों के बाद उनका सन्देश सुन कर चार दिनों तक फूट-फूट कर रोते रहे। उस सन्देश में नरगिस ने उन्हें ‘विनम्र’ और ‘नेक इंसान’ होने की सलाह दी थी। अनुशासन प्रिय सख्त पिता और लाड-दुलार में डूबी माँ के बीच संजय को लेकर झगडे होते थे।

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नरगिस के जीवनीकारों ने विस्तार से इन झगड़ों और मतभेदों के बारे में लिखा है। शुरू में नरगिस संजय दत्त को पिता की डाट-फटकार से बचाती रहीं। संजय के पक्ष में खड़ी रहीं। ऐसे भी मौके आये जब सुनील दत्त ने दो टूक शब्दों में कहा कि हम दोनों में से एक को चुन लो तो नरगिस ने बेटे को चुना। एक बार ऐसी ही एक घटना के बाद नाराज़ सुनील दत्त दो दिनों तक घर नहीं लौटे। बुरी संगत और बुरी आदतों ने संजय दत्त को बिगाड़ दिया था।

माँ से मिली शह संजय दत्त को सुधारने की सुनील दत्त की कोशिशें, नाकाम रहीं। बाद में नरगिस को एहसास हुआ कि उनसे चूक हो गई। संजय दत्त की चिंता में वह घुलती गईं। जीवन के आखिरी दिनों कैंसर ने उनकी तकलीफ और बढ़ा दी। पीड़ा के इसी दौर में उन्होंने बेटे संजय समेत परिवार के सभी सदस्यों के लिए सन्देश छोडे थे।

आज की पीढ़ी के पाठकों को नरगिस की फ़िल्में देखनी चाहिए। उनकी जीवनियां पढ़नी चाहिए। नरगिस ने बतौर अभिनेत्री लम्बी सफल पारी पूरी करने के बाद सुनील दत्त के साथ गृहस्थी में कदम रखा। सम्परित पत्नी और माँ की भूमिका तक हो वह सीमित नहीं रहीं। उन्हें राज्य सभा की सदस्यता मिली थी और पद्मश्री से भी उन्हें सम्मानित किया गया था। देश के पहले प्रधान मंत्री नेहरू से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। देशसेवा और राष्ट्रभक्ति के मिसाल रही दत्त दंपति। उनकी मृत्यु पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कहा था,’नरगिस की मृत्यु की खबर से उन्हें गहरा दुःख हुआ है। जिन करोड़ों दर्शकों ने उन्हें परदे पर देखा,उनके लिए नरगिस प्रतिभा और समर्पण की प्रतीक हैं। वह गर्मजोशी और सहानुभूति की साक्षात देवी थीं। उन्होंने अनगिनत सामाजिक मुद्दों का समर्थन किया।’

उम्र के इस पड़ाव पर बीवी-बच्चों,फिल्म इंडस्ट्री और प्रशंसकों से घिरे होने बावजूद संजय दत्त की तन्हाई का अंदाजा लगाना मुश्किल है। जीवन के इस मोड़ पर उन्हें माँ की याद आ रही है। वे उनकी कमी महसूस कर रहे हैं। यह एक प्रकार से उनका पश्चाताप है। हम यही उम्मीद करते हैं कि वे ज़िन्दगी की भूलों के अफ़सोस पर काबू कर सधे क़दमों से आगे बढ़ें। सफल रहें।

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