'पैसे देने चाहिए...' Sparsh Srivastava ने बताया निर्माता नहीं देते मिलने का समय, हॉलीवुड को बताया बढ़िया
स्पर्श श्रीवास्तव (Sparsh Srivastava) के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री में प्रसिद्धि और पैसा तो मिल जाता है लेकिन किसी भी किरदार की तैयारी के लिए समय मिलना मुश्किल है। वे चाहते हैं कि हॉलीवुड की तरह भारत में भी अभिनेताओं को तैयारी के लिए पैसे मिलें जिससे परफॉर्मेंस और निखर कर आए। एक्टर ने बताया कि निर्माता समय नहीं देते हैं।

जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। फिल्म इंडस्ट्री में प्रसिद्धि मिल जाए, तो पैसा, फेम सब कुछ मिल जाता है। हालांकि लापता लेडीज फिल्म और दुपहिया वेब सीरीज के अभिनेता स्पर्श श्रीवास्तव की माने तो उन्हें पैसे या प्रसिद्धि के बजाय किसी भी पात्र की तैयारी के लिए समय चाहिए होता है। इस बारे में हमने स्पर्श से बात की और जानना चाहा कि वो किसी किरदार के लिए खुद को कैसे तैयार करते हैं।
तैयारी करने के लिए मिलने चाहिए पैसे
स्पर्श कहते हैं कि मेरा काम पात्र की तैयारी करने का है। एक-डेढ़ महीने की तैयारी मिलती है, तो वह काम बेहतर होता है। हालांकि ऐसा होता नहीं है, क्योंकि उतना समय कलाकार के पास नहीं होता है। मैं चाहता हूं कि हमारे देश का सिनेमा वहां पहुंचे जब एक्टर को तैयारी करने के लिए पैसे भी मिले, ऐसा हालीवुड में होता है। निर्माता जब कलाकार को लेने के बाद छह महीने या एक साल तैयारी करने के लिए पैसे देता है, तो खुशी-खुशी वह तैयारी करते हैं, इससे उनकी परफार्मेंस निखर कर आती है। अगर किसी कलाकार को पांच-छह महीने मिल जाए तो कमाल हो जाएगा। मेरे लिए पैसे उतने जरूरी नहीं है, लेकिन ऐसा ख्याल रखने वाला निर्माता मायने रखता है।
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निर्माता समय नहीं देते
पैसे तो बायप्रोडक्ट है, आप चमकते हैं, तो लोग पैसा भी देते हैं। समय बड़ी चिंता है कि क्या निर्माता-निर्देशक उतना समय देंगे, जो चाहिए। मैंने कई बार डिमांड की है कि मुझे निर्देशक के साथ मीटिंग करनी है, जो नहीं मिली है, क्योंकि वह व्यस्त थे। आजकल कहानियां बैलेंस शीट पर बनती हैं।
कॉमेडी रोल के लिए कैसे की तैयारी?
स्पर्श इससे पहले दुपहिया सीरीज में भुगोल के किरदार में नजर आए थे। अपनी सीरीज के बारे में बात करते हुए स्पर्श ने आईएनएस को दिए एक इंटरव्यू में प्रामाणिकता के साथ कॉमेडी को चित्रित करने की चुनौतियों पर बात की थी। स्पर्श ने कहा,'शुरुआत में डर की भावना थी क्योंकि कॉमेडी बहुत आसान है। जिस क्षण ऐसा होता है, आपका सह-कलाकार इसे महसूस करता है, और दर्शकों को लगता है कि यह सिर्फ अभिनय है। असली चुनौती उन्हें उस क्षण में विश्वास दिलाना है।"
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