Sholay 50 Years: आज रिलीज होती 'शोले' तो कमा लेती इतने हजार करोड़, Saiyaara-पुष्पा 2 के भी फूल जाते हाथ-पांव
50 साल पहले स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज शोले हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्म है। फिल्म का हर किरदार दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है। शोले एक ब्रांड बन चुकी है क्योंकि फिल्म के डायलॉग्स पर जहां Zen-Z रील्स बना रहे हैं तो वहीं ब्रांड भी कहीं न कहीं इसका उपयोग कर मुनाफा कमा रहे हैं। जरा सोचिए 50 साल पहले आई ये फिल्म अगर आज बनती तो कितना कमाती।

जागरण नेटवर्क। कुछ फिल्में हिट होती हैं। कुछ इतिहास बन जाती हैं और सिर्फ एक फिल्म शोले बनती है जिसकी लोकप्रियता पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रही। आज सिनेमा भले ही बाक्स ऑफिस के आंकड़ों से आंका जाता हो, लेकिन अगर गौर से देखें तो 15 अगस्त 1975 को इमरजेंसी के दौरान प्रदर्शित हुई अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, अमजद खान अभिनीत शोले ने पचास साल पहले ही इस क्लब को मात दे दी थी।
करीब ढाई करोड़ रुपये के बजट में बनी इस फिल्म ने उस समय तीस करोड़ रुपये कमाए थे। वर्तमान में यह राशि तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा होती। बॉलीवुड की ब्लाकबस्टर फिल्म होने के साथ ही इसने देश में ब्राडिंग को भी नई परिभाषा दी।
शोले ने करवाया कई बड़े ब्रांड्स का प्रॉफिट
मुंबई के मिनर्वा थिएटर में पांच साल तक लगातारी चली यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में प्रतिष्ठित स्थान रखती है। इसकी प्रासंगिकता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि डिजिटल युग में इसके संवादों और दृश्यों ने मीम्स की दुनिया में भी अपनी जगह बना ली है। इंटरनेट मीडिया यूजर धड़ल्ले से इसका उपयोग करते हैं। शोले के कलाकार भी इस बात से अभिभूत हाते हें कि फिल्म की सफलता इतने साल बाद भी बनी हुई है। आज तमाम सितारे विभिन्न उत्पादों का प्रचार करते दिख जाते हैं, लेकिन इस परिपाटी को शुरू करने का श्रेय काफी हद तक शोले को जाता है।
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बॉक्स ऑफिस पर शोले को मिली अपार सफलता के बाद उसे भुनाने में कंपनियां भी पीछे नहीं रही। गब्बर सीमेंट बेचता हुआ, वीरू मोबाइल नेटवर्क का प्रचार करता हुआ, बसंती स्कूटर का प्रचार करती हुई दिखी। वहीं वर्तमान में गब्बर की आवाज को जेन जी की रीलों में नए संदर्भों में ढाला गया है। फिल्म के इन किरदारों या संवादों की झलक को कई बार दूसरी फिल्मों में भी इस्तेमाल किया गया। मार्केटिंग टीम आज भी इन लोकप्रिय किरदारों को प्रयोग करती हैं। मार्केटिंग के जानकारों के मुताबिक साल 2023 में कोका-कोला इंडिया ने हेमा मालिनी के तांगेवाली बंसती किरदार को ध्यान में रखते हुए एक सीमित संस्करण वाला 'बसंती का संतरा' रेट्रो कैन लॉन्च किया। यह कुछ ही दिनों में बिक गया।
भारती एयरटेल के हैशटैग कितने आदमी थे रील्स चैलेंज में 72 घंटों में 12 हजार से ज्यादा यूजर द्वारा बनाए गए वीडियो देखे गए। हुंडई ने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फिल्टर बनाया जिससे प्रशंसक जय और वीरू की बाइक को रामगढ़ में 'रेस' करा सकते थे, जिससे टेस्ट ड्राइव लीड में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यह सब शोले का ही कमाल रहा।
जी पी सिप्पी से पहले दो निर्माताओं के पास आई थी 'शोले'
शोले को बनाने की कहानी भी दिलचस्प है। निर्माता जी पी सिप्पी फिल्म सीता और गीता की सफलता बाद लड़की-लड़के का रोमांस दोहराने के इच्छुक नहीं थे। वह एक मल्टी-स्टारर फिल्म बनाना चाहते थे। साल 1970 में राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर के फ्लॉप होने के बाद से कोई मल्टी-स्टारर फिल्म नहीं बनी थी, लेकिन जी.पी. इससे विचलित नहीं थे। उन्होंने लेखक जोड़ी सलीम-जावेद से कुछ नया लाने को कहा। सलीम-जावेद महीनों से चार पंक्तियों वाले एक आइडिया पर काम कर रहे थे। निर्माता बलदेव पुष्करणा ने पहले इसे खरीदा था, लेकिन उनके निर्देशक मनमोहन देसाई को यह आइडिया रास नहीं आया।
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एक और निर्माता, प्रेम सेठी ने प्रकाश मेहरा के लिए कहानी का आइडिया खरीदा, लेकिन वह जंजीर बनाने में बहुत व्यस्त थे। फिर वे इसे सिप्पी परिवार के पास ले गए। चार लाइन ऐसे थी कि एक सेना अधिकारी के परिवार का कत्लेआम होता है। उसे दो जूनियर अधिकारियों की याद आती है, जिनका कोर्ट मार्शल हुआ था। वे बदमाश हैं, लेकिन बहादुर भी हैं। सेवानिवृत्त अधिकारी बदला लेने के अपने मिशन में उन्हें शामिल करने का फैसला करता है। इन चार लाइनों को सुनकर सिप्पी ने उन्हें स्क्रिप्ट पर काम करने को कहा। निर्देशक रमेश सिप्पी ने इस जोड़ी के साथ रोमांस, एक्शन, कामेडी, त्रासदी, भावनाए, बदला, त्याग, संगीत, मूल्य, रहस्य जैसे मनोरंजन के सभी मसालों को डालकर 204 मिनट की शोले बना डाली। इसका आकर्षण खलनायक गब्बर के संवाद भी रहे जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में सहजता से अपनाया गया। यही बात शोले को मार्केटिंग में मजबूती देती है। वहां संदर्भ समझाने की जरूरत नहीं है। सब अपने आप समझ आ जाता है।
समय-समय पर गीत और डायलॉग्स का हुआ इस्तेमाल
देखा जाए तो कार्पोरेट प्रेजेंटेशन से लेकर क्रिकेट की चुहलबाजी, राजनीतिक भाषण, स्टैंड-अप कामेडी, बोर्डरूम में बड़बोलेपन, इंस्टाग्राम रील्स—आप में इनका न जाने कितनी बार उपयोग हुआ है और होता रहेगा। टीवी और ओटीटी भी इससे अछूता नहीं रहा। द कपिल शर्मा शो से लेकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा तक, शोले के किरदार या संवाद किसी न रूप में परिलक्षित होते हैं। इसका संगीत अभी भी प्रासंगिक है। स्पॉटिफाई का कहना है कि रेट्रो बॉलीवुड संगीत, जिसमें शोले जैसी हिट फिल्में भी शामिल हैं, सबसे अधिक स्ट्रीम की जाने वाली शैलियों में से एक है। टीवी पर आज भी इसकी लोकप्रियता बनी हुई है।
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मेटा रिसर्च के मुताबिक नास्टैल्जिया कंटेंट पर क्लिक करने की प्रवृत्ति में 26 प्रतिशत की बढोतरी देखी गई है। यहीं नहीं इस कंटेंट को ठहर कर देखने के समय में 30 प्रतिशत की बढ़त हुई है। बहरहाल, आगे भी शोले सिनेमा सीखने वालों के लोगों के लिए पाठ्य पुस्तक की तरह ही रहेगी, जिससे जाना जा सकेगा कि तकनीक की कम उपलब्धता के बावजूद इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस के साथ मार्केट पर कितना प्रभाव डाला।
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