मुंबई के ट्रैफिक को फिक्स करना चाहते हैं Rana Naidu, अपने दातों को लेकर परेशान हैं राणा दग्गुबाती की एक्ट्रेस
राणा नायडू बनकर एक बार फिर से साउथ सुपरस्टार राणा दग्गुबाती लौट आए हैं। उनकी सीरीज का सेकंड सीजन नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुका है। हाल ही में दैनिक जागरण से खास बातचीत करते हुए शो के अलावा मुंबई में बढ़ रहे पैपराजी कल्चर पर अपनी राय दी। इसके साथ ही शो में नई एंट्री लेने वाली एक्ट्रेस ने बताया कि वह अपने दांतों को फिक्स करना चाहती हैं।
राणा नायडू की स्टारकास्ट से खास बातचीत/ फोटो- Imdb
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अमेरिकी क्राइम थ्रिलर ‘रे डोनोवन’ की हिंदी रीमेक वेब सीरीज ‘राणा नायडू’ के मुख्य नायक राणा दग्गुबाती को नहीं पसंद पैपराजी कल्चर। इस सीरीज के नए सीजन में एंट्री हुई है कृति खरबंदा की। वेब शो, पैपराजी कल्चर और आठ घंटे काम करने जैसे विषयों पर दोनों कलाकारों से बातचीत के कुछ अंश...
इस सीजन को करण अंशुमन, सुपर्ण वर्मा और अभय चोपड़ा तीन निर्देशकों ने निर्देशित किया है, कैसा अनुभव रहा?
राणा दग्गुबाती- पहला सीजन मेरे लिए बहुत कनफ्यूजिंग था। मुझे नहीं पता था कि शो को दो निर्देशक बनाने वाले हैं। मुझे नहीं पता था किस एक के निर्देश को समुचित तरीके से लूं। करण और सुपर्ण वर्मा एक-दूसरे से बेहद अलग हैं, लेकिन उनकी इसी दीवानगी में ही हमें हमारी रिदम मिली।
कृति खरबंदा- मैं अभी भी समझने की कोशिश कर रही हूं, जब तक उसकी आदत हो पाती, शूटिंग ही खत्म हो गई। ओटीटी पर यह मेरा पहला अनुभव है। इतने लंबे फॉर्मेट के लिए मैंने पहले कभी शूट नहीं किया। जब मैं पहले दिन सेट पर पहुंची तो रिहर्सल के लिए गई थी। करण के साथ रीडिंग कर रही थी। सुपर्ण अलग ही एनर्जी के साथ आए। उन्होंने सब ओवरटेक कर लिया। हम भूल गए कि क्या रिहर्सल कर रहे थे। सुपर्ण उन निर्देशकों में से हैं, जो स्वाभाविकता में यकीन रखते हैं। करण सुनियोजित तरीके से काम में यकीन रखते हैं, जबकि अभय संतुलन बनाते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं और वो क्या चाहते हैं। सबके काम करने की प्रक्रिया अलग है।
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शो में राणा हर चीज को फिक्स करता है। असल जिंदगी में किस चीज को फिक्स करना कठिन लगता है?
राणा- मुंबई में ट्रैफिक जैसी कई समस्या से जूझना पड़ता है। अगला सीजन पूरा हैदराबाद में घर के पास शूट करना है। मैं उन्हें दिखाना चाहता हूं कि हैदराबाद में शूटिंग करना कितना आसान है। हैदराबाद शहर बना ही शूटिंग के लिए है। जिस क्षेत्र में हम रहते हैं, वहां पर पास में ही छह स्टूडियो हैं। सिनेमा बनाने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
कृति- (हंसते हुए अपने हाथों को चेहरे की तरफ करते हुए) मुझे मेरे दांत फिक्स करने हैं, मगर मुझे ब्रेसेस लगाने में बहुत डर लगता है।
पैपराजी कल्चर में भी आप सहज नजर नहीं आते हैं...
राणा- यह भी मुंबई की समस्या है। एयरपोर्ट में, घर के बाहर सब जगह मौजूद रहते हैं। हैदराबाद में पैपराजी स्टूडियो के बाहर रहते हैं। जब आप तैयार होते हैं, तो वह आपकी तस्वीरें लेते हैं। मुंबई फैशन और फिल्म नगरी है। हम लोग चप्पल पहनकर निकलते हैं, फिर भी वो फोटो निकालने लगते हैं।
कृति- मुंबई में जहां मैं पहले रहती थी, वहां कई नामचीन कलाकारों के घर हैं। मैं उस इलाके में नई थी तो पता नहीं था कि वहां पैपराजी हमेशा रहती है। मैं अपने कुत्ते को टहलाने के लिए नीचे उतरी थी। मैं बहुत ही खराब दिख रही थी और इन लोगों ने मेरी तस्वीर क्लिक कर ली। मुझे उस दिन महसूस हुआ कि ये वो इंडस्ट्री है, जहां मैं काम करने वाली हूं। यहां पर यही कल्चर चलता है। हां, अगर आप सम्मानपूर्वक कहें तो वह आपकी फोटो नहीं लेंगे। मेरी राय में वो भी अपना काम कर रहे हैं, लेकिन जब कोई छिपकर किसी कलाकार की तस्वीर निकाले, तो यह गलत है।
समय के साथ हीरोइज्म की परिभाषा बदलती है। राणा, आपके हिसाब से हीरोइज्म की क्या परिभाषा है?
पहले बहुत अच्छा इंसान हीरो के तौर पर सामने आता था। अब चीजें बदल गई हैं। अब सही या गलत वाली बात नहीं है। हर किसी में ग्रे शेड है। इस शो में मेरा पात्र वही सब कुछ दिखाता है। वह कुछ चीजें ऐसी करता है, जो किसी को पसंद आती हैं, किसी को नापसंद।
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