रंगमंच पर भी पसंद की जाती है रामायण, सिद्धांत इस्सर ने बताया मंच पर श्रीराम बनने का अनुभव
पुनीत इस्सर के बेटे सिद्धांत इस्सर (Siddhant Issar) छोटे पर्दे पर रामायण (Ramayan Serial) जैसे धारावाहिक में नजर आ चुके हैं। अभिनेता के तौर पर वह रंगमंच पर भी श्रीराम की भूमिका निभा चुके हैं। अब उन्होंने इस किरदार को मंच पर निभाने के अनुभव को साझा करते हुए रामायण की हर बारीकी पर बात की है। आइए जानते हैं उनका क्या कहना है।
प्रियंका सिंह, मुंंबई। भारतीयों के मानस में गहरे अंकित हैं प्रभु श्रीराम। उनकी महिमा जब मंच पर प्रदर्शित होती है दर्शक भी भक्ति भाव में डूब जाते हैं। रंगमंच पर प्रभु श्रीराम के चरित्र को जीवंत करते कलाकारों के लिए भी यह सिर्फ अभिनय नहीं, बल्कि आस्था से जुड़ा विषय है। रामनवमी (छह अप्रैल) के अवसर पर रंगमंच पर श्रीराम के मंचन की कहानी...
करीब 38 साल पहले छोटे पर्दे पर जब धारावाहिक रामायण का प्रसारण आरंभ हुआ था तो सड़कें सुनसान हो जाती थीं। मोहल्ले के जिस घर में टीवी होता था, वहां भीड़ जुट जाती थी। लोग धारावाहिक से इतना अभिभूत थे कि श्रीराम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल और माता सीता बनीं दीपिका चिखलिया से मिलने पर नतमस्तक हो जाते थे। इनके अलावा एनटीआर, नंदमुरी बालकृष्ण, जूनियर एनटीआर, गुरमीत चौधरी, प्रभास समेत कई कलाकारों ने प्रभु श्रीराम की भूमिका पर्दे पर निभाई है। आगामी दिनों में नितेश तिवारी निर्देशित फिल्म रामायण में रणबीर कपूर भी श्रीराम की भूमिका निभाएंगे।
वहीं रंगमंच पर भी भगवान राम पर नाटक का मंचन होता रहा है। अब नाटक में कलाकार बहुत सारा मेकअप लगाकर मंच पर नहीं उतरते हैं, बल्कि भव्य सेटअप के साथ श्रीराम की महिमा व लीलाएं दिखाते हैं। हमारे राम, जय श्रीराम-रामायण जैसे नाटकों में श्रीराम को देखते ही बनता है। आस्था थामे रखना बड़ा दायित्व: अभिनेता पुनीत इस्सर के बेटे सिद्धांत इस्सर जय श्रीराम-रामायण का मंचन पिछले पांच वर्ष से करते आ रहे हैं।
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श्रीराम का किरदार निभाने पर क्या बोले सिद्धांत?
28 साल के सिद्धांत को कई धारावाहिकों में श्रीराम का पात्र निभाने का मौका मिला। हालांकि होम प्रोडक्शन के इस संगीतमय नाटक में वह भगवान हनुमान या शिव की भूमिका निभाना चाहते थे। फिर उन्हें लगा कि जब लोग उन्हें श्रीराम की भूमिका में देख चुके हैं तो नाटक में भी उन्हें श्रीराम ही बनना चाहिए। सिद्धांत कहते हैं कि हम इनडोर में इस नाटक को करते हैं तो दो-ढाई हजार दर्शक होते हैं, लेकिन उससे कई गुना अधिक लोग नाटक को लाइव देखते हैं। उनकी आस्था आपके साथ उसी पल जुड़ जाती है। टीवी पर श्रीराम का पात्र निभाते समय कुछ गलती होती थी तो रीटेक और डबिंग से ठीक हो जाता था, लेकिन मंच पर रीटेक नहीं होता है। स्टेज पर तीन घंटे श्रीराम बनता हूं तो लोगों को लगता है, साक्षात प्रभु हैं। जब वनवास वाले दृश्य का मंचन करता हूं तो उनकी आंखों में आंसू होते हैं, जो संवाद मैं बोलता हूं, वह काव्य शैली में होता है, जैसे मैं मानव रूप में आकर मानव तुझको यह पाठ पढ़ाता हूं। संघर्ष है मानव जीवन में हर कदम पर मैं सिखलाता हूं। ऐसे में हर शब्द और उच्चारण सही होना चाहिए।
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मर्यादापुरुषोत्तम को मर्यादा में रहकर निभाएं: मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को जब कलाकार रंगमंच पर निभाते हैं तो उनकी मर्यादा का पूरा ध्यान रखना होता है। सिद्धांत कहते हैं कि मंच पर श्रीराम बनकर आने के एक-दो दिन पहले से लहसुन, प्याज खाना बंद कर देता हूं। ध्यान लगाता हूं। मेरे पिता इसी नाटक में रावण बनते हैं, वह कई बार डांट भी देते हैं। वह रावण हैं तो चिल्ला सकते हैं। प्रभु श्रीराम ऐसा नहीं कर सकते हैं। उनका चरित्र निभाते वक्त बहुत धैर्य रखना होता है। स्टेज पर केवल तीन घंटे के लिए ही नहीं, बल्कि मैं तो 365 दिन प्रभु की भक्ति में लीन रहता हूं। जब भगवान हनुमान, प्रभु श्रीराम से मिलने आते हैं, उस समय हनुमान चालीसा बजाई जाती है। तब पूरा ऑडिटोरियम राममय हो जाता है। पौराणिक कथाओं में बदलाव नहीं हो सकता है। प्रभु श्रीराम ने एक बार क्रोधित होकर कहा था कि अगर जाने का रास्ता नहीं दिया तो पूरे समुद्र को सुखा देंगे। हमें युवाओं को प्रभु का वह पराक्रम दिखाना चाहिए। प्रभु शस्त्र पूजन करते थे, युद्ध निपुण थे। हमने वह सब अपने नाटक में दिखाया है ताकि युवा उससे जुड़ें।
श्रीराम की महिमा का कथावाचन
अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा रंगमंच पर श्रीराम की महिमा से जुड़े नाटक श्रीराम की प्रत्यंचा का मंचन करने के साथ कथावाचन भी करते हैं। वह बताते हैं इसमें मेरा सोलो परफॉर्मेंस है, जिसमें रामायण के अप्रचलित और अनसुने प्रसंगों के बारे में बताता हूं। इन प्रसंगों को मैंने कंब रामायण (नौवीं शताब्दी में कंबन रचित रामायण में सियाराम के अयोध्या आगमन और भ्रातृप्रेम के प्रसंग समाए हैं), तुलसी रामायण और वाल्मीकि रामायण से संग्रहीत किया है। तुलसीदास की कवितावली से भी मैंने प्रसंग लिया है। कवितावली में कितने ऐसे प्रसंग है, जो लोगों को मालूम ही नहीं हैं। मैंने इसके लिए रिसर्च की है। ना जाने कितने संतों को सुना है। यह नाटक करीब पौने दो घंटे का है, जिसका लेखन, निर्देशन और अभिनय मैंने ही किया है। इस नाटक का शुभारंभ पिछले साल 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन हुआ था। उसी दिन मुंबई में शाम को मैंने पहली प्रस्तुति दी थी। इसके बाद इस शो को अलवर, लखनऊ, आगरा समेत देश के विभिन्न शहरों में आयोजित कर चुके हैं। इतनी अवधि का शो बिना ईश्वर की कृपा के संभव ही नहीं है। मैं इसमें एक प्रसंग सुनाता हूं कि रामायण में कहा गया है कि प्रभु श्रीराम का नाम आप श्रद्धा, भक्ति से या द्वेष से लें, पर उनके नाम में इतनी शक्ति है कि आप राममय हो जाते हैं। जब रंगमंच पर इसका वाचन करता हूं तो पूरा माहौल उनकी भक्ति में रंगा होता है।
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उद्देश्य व्यवसाय नहीं
हमारे राम नाटक के अब तक 200 मंचन कर चुके अभिनेता राहुल भूचर अमेरिका में तीन मई से 16 जुलाई तक इसका मंचन करेंगे। अंतिम आठ दिन ब्राडवे में हमारे राम का मंचन होगा। राहुल कहते हैं कि मैंने जब भगवान श्रीराम को स्टेज पर जीने के बारे में सोचा तो व्यवसाय करना उद्देश्य नहीं था। रामानंद सागर साहब पहले ही रामायण बना चुके हैं। मुझे नई पीढ़ी को श्रीराम से जोड़ना था, इसलिए नाटक का सहारा लिया, जहां लाइट्स, साउंड, विजुअल इफेक्ट्स को भव्य रखा। संगीत जगत से सोनू निगम, कैलाश खेर, शंकर महादेवन साहब जुड़े ताकि इसमें दिलचस्पी बनी रहे, नहीं तो रील के जमाने में साढ़े तीन घंटे का नाटक देखने के लिए लोगों को थिएटर लाना कठिन था।
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