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    Premchand की लिखी फिल्म देख उनकी प्रिटिंग प्रेस में ही हो गयी थी हड़ताल, सेंसर बोर्ड ने बैन कर दी 'मिल मजदूर'

    Premchand Birth Anniversary अपनी लेखनी से समाज की असली तस्वीर दिखाने वाले उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास समाज की असलियत उजागर करता रहा है। उन्होंने समाज आधारित साहित्य की रचना की जो आज भी युवा साहित्यकारों के लिए प्रेरणा है। प्रेमचंद ने लिखने के साथ फिल्मी दुनिया में भी अपना हाथ आजमाने की कोशिश की थी। उनके फिल्मी सफर के बारे में जानने के लिए पढ़िए ये खबर।

    By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Mon, 31 Jul 2023 11:30 AM (IST)
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    Legendry Indian Writer Premchand birth anniversary. Photo- Screenshot

    नई दिल्ली, जेएनएन। Premchand Birth Anniversary: 31 जुलाई को प्रेमचंद की 143वीं जयंती है। हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी का लोहा मनवा चुके प्रेमचंद का बॉलीवुड के साथ भी नाता रहा है, लेकिन यह रिश्ता बहुत मामूली समय के लिए रहा, शायद प्रेमचंद को सिनेमाई लाइन रास नहीं आई। तभी तो वो सिर्फ दो फिल्में लिखकर हिंदी सिनेमा को अलविदा कह गए।

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    कैसे हुई मायानगरी 'बंबई' में एंट्री?

    प्रेमचंद भले ही कहानीकार और उपन्यासकार के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके थे, लेकिन वे फिल्मी दुनिया में भी अपना हाथ आजमाना चाहते थे। यह 1930-40 का दशक था, जब फिल्म इंडस्ट्री में नए-नए कहानीकारों की मांग बढ़ रही थी। पत्र-पत्रिकाओं और उपन्यास लिखने वाले लेखक समझ गए थे कि कहानी कहने का नया अंदाज सिनेमा ही है। लिहाजा, प्रेमचंद भी साल 1934 में बंबई पहुंच गए। यहां उन्होंने अजंता सिनेटोन नामक कंपनी में बतौर लेखक अपनी नौकरी शुरू की। उनका वेतन सालाना 8 हजार रुपए रखा गया।

    प्रेमचंद की लिखी पहली फिल्म ही बैन हो गई

    प्रेमचंद ने पहली फिल्म लिखी, जिसका नाम 'मिल मजदूर' रखा गया। कहानी में एक नौजवान अपने पिता की टैक्सटाइल मिल का मालिक बन जाता है, लेकिन मजदूरों के प्रति उसका रवैया काफी खराब होता है, वह उन पर अत्याचार शुरू कर देता है।

    हालांकि, मिल मालिक की बहन और पूरा मैनेजमेंट मजदूरों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। क्लाइमैक्स में मिल मालिक जेल में चला जाता है और उसकी बहन मिल की नई मालकिन बन मजदूरों के साथ फिर काम शुरू कर देती है। फिल्म बनकर तैयार हुई और कुछ शहरों में रिलीज भी हुई।

    फिल्म का असर ऐसा हुआ कि प्रेमचंद की प्रिंटिंग प्रेस के श्रमिक भी बकाया भुगतान के लिए हड़ताल पर चले गए थे। दिल्ली, लाहौर और लखनऊ में फिल्म देखकर मजदूर अपने मालिकों के खिलाफ आक्रोशित हो गए। मजदूरों का रोष देखकर सेंसर बोर्ड ने फिल्म को बैन दिया।

    प्रेमचंद को रास नहीं आई बंबई, लौट आए

    इसके बाद प्रेमचंद ने अजंता सिनेटोन के लिए तीन कहानियां और लिखीं। इन पर 'नवजीवन', 'शेर दिल औरत' और 'सेवा सदन' नामक फिल्में बनीं। फिल्म 'सेवा सदन' में उनकी कहानी को तरोड़-मरोड़कर पेश किया गया। ये बात प्रेमचंद को ठीक नहीं लगी।

    इसके बाद उन्हें यह भी महसूस हुआ कि मेकर्स केवल पैसे के लिए फिल्म बनाते हैं, जबकि प्रेमचंद अपनी कहानियों से समाज में कुछ ना कुछ मैसेज पहुंचाना चाहते थे। उनका सिनेमा से मन उचट गया और एक साल का करार खत्म होने के बाद वे काशी लौट आए।

    दोस्त को बताई फिल्मी दुनिया की असलियत

    1935 में बनारस लौटने के बाद प्रेमचंद ने अपने मित्र को एक खत लिखा। इसमें उन्होंने बताया कि फिल्म भले एक मैजिकल आर्ट है, लेकिन अब इसे बिजनेस के लिहाज से ही देखा जाता है। फिल्म इंडस्ट्री से आर्ट और आर्टिस्ट, दोनों खत्म हो रहे हैं।

    गौरतलब है कि करीब सालभर बाद 8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचंद का 56 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। उनका फिल्म इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने का सपना अधूरा ही रह गया।