'आज भी यादगार वो 'प्रतिज्ञा...' Dharmendra की वो पॉपुलर फिल्म जिसने उन्हें बनाया 'जट्ट यमला पगला दीवाना'
1975 में रिलीज हुई दुलाल गुहा की प्रतिज्ञा फिल्म मनोरंजन का यूनीक मिश्रण थी। धर्मेन्द्र के एक्शन कॉमेडी और रोमांस ने दर्शकों को खूब आकर्षित किया। फिल्म मैं जट्ट यमला पगला दीवाना गाने के साथ हमेशा के लिए यादगार बन गई। फिल्म में धर्मेन्द्र ने अजीत सिंह नामक एक ट्रक ड्राइवर का किरदार निभाया है।

जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। 19 सितंबर, 1975 को प्रदर्शित हुई दुलाल गुहा निर्देशित ‘प्रतिज्ञा’ ने मसालेदार मनोरंजन और धर्मेंद्र के अभिनय का अनूठा संगम पेश किया। फिल्म में धर्मेंद्र का एक्शन, कामेडी और रोमांस दर्शकों को खूब भाया। ‘मैं जट्ट यमला पगला दीवाना’ जैसे अमर गीत के साथ हमेशा-हमेशा के लिए यादगार हुई इस फिल्म पर संदीप भूतोड़िया का आलेख...
फिल्म एक्शन और हास्य का मिश्रण
साल 1975 हिंदी सिनेमा के लिए सबसे यादगार वर्ष रहा। ‘शोले’, ‘दीवार’, ‘चुपके चुपके’ और ‘आंधी’ जैसी फिल्मों ने शैली और कहानी कहने के ढंग की परिभाषा नए सिरे से गढ़ी। इसी दौर में प्रदर्शित हुई फिल्म थी दुलाल गुहा की ‘प्रतिज्ञा’। इस फिल्म ने बिना किसी झिझक के दर्शकों को मसालेदार मनोरंजन का पूरा स्वाद दिया। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की यह फिल्म एक्शन, हास्य, संगीत और मेलोड्रामा का अनोखा संगम थी। यह 20वीं शताब्दी के सातवें दशक की लोकप्रिय फिल्मों का आदर्श उदाहरण बन गई, जिसकी ताजगी और आकर्षण 50 साल बाद भी कायम है।
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क्या थी प्रतिज्ञा की कहानी?
जहां ‘शोले’ ने धर्मेंद्र की पहचान एक रोमांचक एक्शन-हीरो के रूप में मजबूत की, वहीं ‘प्रतिज्ञा’ ने उनकी इस छवि के साथ-साथ उनका हास्य पक्ष भी उजागर कर दिया। यह फिल्म केवल बॉक्स आफिस पर सफलता के लिए ही नहीं, बल्कि धर्मेंद्र को उनके सबसे यादगार गीत ‘मैं जट्ट यमला पगला दीवाना’ देने के लिए भी जानी जाती है। इस गीत की लोकप्रियता ने ‘प्रतिज्ञा’ को हिंदी सिनेमा के इतिहास में स्थायी जगह दिला दी। अन्य पारंपरिक हिंदी फिल्मों की तरह ‘प्रतिज्ञा’ भी खोए हुए परिवार, डकैत, बदले और व्यक्ति का अन्याय के खिलाफ खड़े होना जैसी कहानी पर आधारित है। लेकिन दुलाल गुहा ने इसे कई चटपटे ट्विस्ट से ऐसा रंग दिया कि पूरी कहानी जीवंत और मजेदार सफर बन गई।
धर्मेंद्र ने इस फिल्म में एक ट्रक ड्राइवर अजीत सिंह का किरदार निभाया, जिसके परिवार की हत्या कुख्यात डकैत भरत (अजीत) कर देता है और सब कुछ खोकर अजीत अपने प्रियजनों की हत्या का बदला लेने की प्रतिज्ञा करता है। कहानी उदास भी हो सकती थी, मगर गुहा और लेखक नबेंदु घोष ने इसमें हास्य और परिस्थितिजन्य कॉमेडी का ऐसा तड़का लगाया, जिससे ये और रोचक हो गई। डकैतों के इलाके में घुसने और बदला लेने के लिए अजीत (धर्मेंद्र) एक पुलिस इंस्पेक्टर होने का नाटक करता है। उसका यही रूप फिल्म के सबसे मजेदार दृश्य रचता है।
हेमा मालिनी ने निभाया था राधा का किरदार
आम आदमी का अपना काम निकालने के लिए पुलिस का ढोंग करना कोई नया विचार नहीं था, लेकिन यहां धर्मेंद्र की कॉमिक टाइमिंग और अभिनय इसे रोचक बना देते हैं। हेमा मालिनी इसमें गांव की चंचल लड़की राधा के किरदार में हैं, जो अजीत के झूठे-पुलिसिया अंदाज पर फिदा हो जाती है। उनकी और धर्मेंद्र की जोड़ी पहले ‘सीता और गीता’ में सराही गई थी और बाद में ‘शोले’ में अमर हो गई। ‘प्रतिज्ञा’ में भी दोनों की नोकझोंक, मस्ती भरे झगड़े और गाने दर्शकों को खूब पसंद आते हैं। यह फिल्म पूरी तरह धर्मेंद्र के इर्द-गिर्द घूमती है। 1975 तक धर्मेंद्र ने ऐसी छवि गढ़ ली थी, जिसमें ताकत और हास्य का संतुलन था। ऐसा मेल बहुत कम अभिनेता कर पाते थे। जहां अमिताभ बच्चन का ‘एंग्री यंग मैन’ रूप उस दशक पर हावी था, वहीं धर्मेंद्र की खासियत उनका हल्का-फुल्का अंदाज था।
यहीं से पॉपुलर हुआ था जट्ट यमला पगला दीवाना
फिर आता है गीत ‘मैं जट्ट यमला पगला दीवाना’। यह सिर्फ गीत नहीं रहा, बल्कि धर्मेंद्र की अनौपचारिक पहचान बन गया। इस गाने में किए उनके डांस स्टेप्स को कई फिल्मों में अनगिनत बार दोहराया गया। बाद में इस गीत के आधार पर फिल्मों के नाम भी बने (यमला पगला दीवाना सीरीज)। इस गाने के दृश्यों में धर्मेंद्र का बिंदास अंदाज दर्शाता है कि वह खुद को कभी ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते थे। दर्शक उनके साथ हंस सकते थे, यहां तक कि उन पर भी हंस सकते थे और फिर भी उनका हीरो वाला रुतबा कम नहीं होता था। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का झट से गुनगुनाने लायक, परिस्थितियों से जुड़ा और हर वर्ग को पसंद आने वाला संगीत उस दशक की मसाला फिल्मों का आत्मा था।
एकदम अलग ढंग से पेश की कहानी
साल 1975 तक हेमा मालिनी ‘ड्रीम गर्ल’ के रूप में लोकप्रिय हो चुकी थीं और फिल्म ‘प्रतिज्ञा’ में उन्होंने धर्मेंद्र के साथ शानदार अभिनय किया। फिल्म में हेमा का किरदार राधा केवल सजावटी नहीं, बल्कि हास्य और रोमांस से भरपूर है। सहायक कलाकारों ने भी फिल्म को रंगीन बनाया। ‘प्रतिज्ञा’ में दुखी नायक, बदला, जिद्दी नायिका, चालाक खलनायक, रोमांटिक और लोकधुनों से सजे गाने, सभी मसाले मौजूद हैं। भले ही कहानी अनुमानित हो, लेकिन प्रस्तुतीकरण और स्टार पावर ने फिल्म को दर्शकों के लिए बेहद मनोरंजक बना दिया।
हमें दिया एक यादगार सिनेमा
आधी शताब्दी बीत जाने के बाद भी ‘प्रतिज्ञा’ न केवल व्यावसायिक रूप से सफल रही, बल्कि उस दशक के हिंदी सिनेमा को मनोरंजक और यादगार बनाने वाली फिल्मों में शामिल है। निर्देशक दुलाल गुहा को भले ही महान निर्देशकों में न गिना जाए, लेकिन उन्होंने संतुलित मनोरंजन और भावनाओं के साथ कई सफल फिल्में दीं, जो आम और पारिवारिक दर्शकों को आकर्षित करती थीं। ‘प्रतिज्ञा’ उस दौर की बेहतरीन मनोरंजन फिल्मों में मानी जाती है, जो यह दर्शाती है कि उस समय केवल गंभीर या महाकाव्यात्मक ही नहीं, बल्कि हास्य, मस्ती और संगीत से भरपूर सिनेमा भी लोकप्रिय था।
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