Bollywood Playback Singing: बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगिंग का इतिहास गहरा, जानिए कब और कैसे हुई शुरुआत?
Bollywood Playback Singing History गानों के बिना फिल्मों में काफी खालीपन नजर आता है। वो सॉन्ग्स ही होते हैं जो मूवी में जान फूंकने का काम करते हैं। सिनेमा जगत में प्लेबैक सिंगिंग का अपना एक अनूठा दर्जा है। लेकिन इसकी शुरूआत कैसे हुई कौन सा वो सिंगर और फिल्म थी जिससे प्लेबैक सिंगिंग का उदय हुआ। आइए ये सारी डिटेल्स इस लेख में जानते हैं।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Playback Singing Bollywood History: मनोरंजन का साधन जिस तरह से फिल्मों को माना जाता है, ठीक उसी तरह से गाने वो जरिया हैं, जो इस साधन का महत्व और भी अधिक बढ़ाते हैं। भारतीय सिनेमा का इतिहास सदियों पुराना है, जिसमें कई गहरे राज छिपे हैं और कई ऐसी जानकारियां जिनके बारे में जानने को लेकर हर कोई उत्सुक रहता है। ये गाने ही होते हैं जो फिल्म में किरदार के परिचय, कहानी, सुख-दुख की परिस्थिति और प्यार को फरमाने का जरिया माने जाते हैं।
आज इस लेख में हिंदी फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग पर प्रकाश डाला जाएगा। लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मोहम्मद रफी जैसे कई महान फनकार किस तरह से मूवीज के लिए रीढ़ की हड्डी साबित हुए। इन तमाम गायकों की प्लेबैक सिंगिग के दम पर इंडस्ट्री में गायकी और गीतों का एक नया दौर शुरू हुआ। आइए प्लेबैक सिंगिंग के बारे में विस्तार से जानकारियां टटोलते हैं।
कब हुई हिंदी सिनेमा में प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत
आजादी से पहले भारतीय सिनेमा में कई बड़े बदलाव की शुरुआत देखने को मिल रही थी, जिनमें डबल रोल, फिल्मों में एक्ट्रेस की एंट्री और प्लेबैक सिंगिंग का उदय शामिल है। साल 1935 में इंडस्ट्री में पार्श्व गायन का उदय। इसके जनक दाता कोई और नहीं बल्कि दिग्गज निर्देशक नितिन बोस को माना जाता है।
बताया जाता है कि नितिन ने पहली बार अपनी फिल्म 'धूप छांव' में प्लेबैक सिंगिंग का तरीका अपनाया। इस मूवी का 'मैं खुश होना चाहूं' गाना हिंदी सिनेमा का पहला प्लेबैक सिंगिंग सॉन्ग माना जाता है। इस गाने को पारुल घोष, उमा शशि और सुप्रवा सरकार जैसे सिगंर्स ने अपनी मधुर आवाज दी।
प्लेबैक सिंगिंग से पहले कैसे तैयार होते थे गाने
सिनेमा के शुरुआती दिनों में देखा जाता था कि एक अभिनेता ही मेल और फीमेल किरदार का रोल अदा करता था। सिर्फ इतना ही नहीं वह फिल्मों के गानों को भी खुद गाया करते थे। जानकारी मुताबिक शूटिंग के दौरान एक्टर ही फिल्म के गाने को एक डायलॉग की तरह गाता था और संगीतकार पीछे से इसे म्यूजिक देते थे।
जिसके लिए वह कैमरा से बचते हुए कहीं पेड़ या किसी चीज के पीछे छिपकर इस काम का पूरा करते थे। इस तरह से कड़ी मेहनत के बाद सॉन्ग तैयार होता था।
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स्टूडियो रिकॉर्डिंग से बदली गानों की किस्मत
हिंदी सिनेमा में प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत आसान नहीं थी। लेकिन आजादी से पहले पाकिस्तानी सिंगर नूरजहां और केएल सहगल जैसे महान गायकों ने प्लेबैक सिंगिंग के स्तर को आगे बढ़ाने के जिम्मा उठाया। लेकिन आजादी के समय 1947 में सहगल की मौत और नूरजहां का विभाजन के बाद अपने देश लौट जाने से सिनेमा जगत में प्लेबैक सिंगिंग के क्षेत्र में सन्नाटा सा पसरने लगा।
फिर 1950 के बाद लता मंगेशकर, मुकेश और मोहम्मद रफी जैसे कई सुरों के सरताज ने प्लेबैक सिंगिंग को पुर्नजीवित कर अपनी करिश्माई आवाज का जादू बिखेरा। स्टूडियो में खड़े होकर ये सिंगर्स अपनी गायकी का जलवा बिखरने लगे और हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक गीत बनने लगे।
स्टूडियो में रिकॉर्ड होने के बाद शूटिंग के दौरान फिल्म कलाकार उन गानों की लिपसिंग करते थे और बाद में एडटिंग टेबल पर इनका सिंकनाइज कर गाना रेडी किया जाने लगा। इस तरह से पार्श्व गायन स्वर्णिम युग का आरंभ दोबारा से हो गया।
FAQ:-
-किस फिल्म में शुरू हुई प्लेबैक सिंगिंग
धूप-छांव, गीत (मैं खुश होना चाहूं)
- पहला प्लेबैक सॉन्ग किस सन में गाया गया
1935
- पार्श्व गायन का स्वर्णिम युग
1940-1950
-किन सिंगर्स ने प्लेबैक सिंगिंग को दिया बढ़ावा
केएल सहगल और नूरजहां
-पुराने दौर के प्रसिद्ध प्लेबैक गायक
- लता मंगेशकर
- मोहम्मद रफी
- मुकेश
- किशोर कुमार
- मन्ना डे
- हेमंत कुमार
- आशा भोंसले
- 90 के दशक के पॉपुलर प्लैबैक सिंगर्स
- कुमार शानू
- अल्का याग्निक
- उदित नारायण
- मोहम्मद अजीज
- एसपी बालासुब्रमण्यम
- कविता कृष्णमूर्ति
कौन होते हैं प्लेबैक गायक
अक्सर देखा जाता है कि फिल्मों में हीरो अपनी प्रेमिका के लिए गाने गाता है, जिस तरह से कलाकार इसे परफॉर्म करता है, उसे देख ऐसा लगता है कि वास्तव में वहीं गा रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और होती है। एक प्लेबैक सिंगर पर्दे के पीछे इस एक्टर की आवाज बनता है और गानों के जरिए अपनी मधुर आवाज की अमिट छाप छोड़ता है।
कुमार शानू, उदित नारायण जैसे गायकों ने सलमान खान, आमिर खान और शाह रुख खान जैसे कलाकारों की फिल्मों के कई गानों को अपनी आवाज देकर पहचान बनाई है।
आधुनिक युग में बदला प्लेबैक सिंगिंग का नजरिया
पुराने दौर में प्लेबैक सिंगिंग का जरिया सिर्फ और सिर्फ फिल्में होती थीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता चला गया और इस क्षेत्र में कई बदलाव देखने को मिलते गए। 90 के दशक के अंत में सोनू निगम, केके, श्रेया घोषाल और अभिजीत भट्टाचार्य जैसे तमाम गायकों ने अपने हुनर की पहचान बनाने के लिए म्यूजिक एल्बम का जरिया अपनाया और ये दांव सिंगर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ।
तब से लेकर अब तक कई ऐसे गायक हैं, जो न सिर्फ फिल्मों में अपने पार्श्व गायकी के लिए जाने जाते हैं, बल्कि इनकी म्यूजिक एल्बम को भी फैंस सुनना पसंद करते थे। अगर चर्चा की जाए आधुनिक युग के टॉप प्लेबैक सिंगर्स के बारे में तो उसमें अरिजीत सिंह का नाम शीर्ष स्थान पर काबिज होगा,
जबकि जुबिन नौटियाल, विशाल मिश्रा, पलक मुच्छल और अमित त्रिवेदी जैसे तमाल गायकों के नाम इस लिस्ट में शामिल हैं। प्लेबैक सिंगिंग के अलावा म्यूजिक कॉन्सर्ट में लाइव सिंगिंग के जरिए ये गायक फैंस का मनोरंजन करते हैं, पैसा कमाते हैं।
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