बॉलीवुड पर क्यों भारी पड़ता है साउथ? OMG डायरेक्टर अमित राय ने बताई पते की बात
लंबे समय से हिंदी सिनेमा वर्सेज साउथ सिनेमा के मसले को लेकर डिबेट चलती आ रही है। अब ओह माय गॉड फिल्म के निर्देशक अमित राय ने इस बात की जानकारी दी है कि आखिर क्यों टॉलीवुड, बॉलीवुड पर भारी पड़ता है।

हिंदी सिनेमा वर्सेज साउथ सिनेमा (फोटो क्रेडिट- एक्स)
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। ओम माय गॉड जैसी सफल फिल्म फ्रेंचाइजी से अपनी खास पहचान बनाने वाले निर्देशक अमित राय को भला कौन नहीं जानता।
हाल ही में दैनिक जागरण संग खास बातचीत में अमित राय ने हिंदी सिनेमा वर्सेज साउथ सिनेमा डिबेट पर खुलकर बात की है और टॉलीवुड फिल्मों की सफलता का कारण भी बताया है।
ये है साउथ फिल्मों की सफलता का कारण
दक्षिण भारतीय फिल्में क्यों बॉक्स आफिस पर हिंदी सिनेमा से बेहतर प्रदर्शन कर पा रही हैं, इस सवाल के अलग-अलग जवाब सामने आते हैं। फिल्म ‘ओएमजी 2’ के निर्देशक अमित राय इसे लेखन की कमी मानते हैं। वह इसे बताने के लिए अल्लू अर्जुन अभिनीत फिल्म ‘पुष्पा 2: द रूल’ का उदाहरण देते हुए समझाते हैं।

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अगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मैं इस नाम की फिल्म बनाता तो एक ब्रिगेड खड़ी हो जाती और अंग्रेजी में पूछती कि- पुष्पा? क्या यह सही नाम है? क्या दर्शक इससे जुड़ेंगे? मैं यह भी जानता हूं कि मेरा जीवन खत्म हो जाएगा उन्हें यह विश्वास दिलाने में कि पुष्पा एक मेटाफर (रूपक) है, वह व्यक्ति जो ऊपर से पुष्प की तरह दिखता है, लेकिन भीतर से वह फायर यानी आग है। यहां का एक तबका मुझे इस फिल्म के साथ आगे ही बढ़ने नहीं देता।
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साउथ सिनेमा ने पात्र की भावनाओं को इतनी सच्चाई से दिखाया है कि वह गलत है, फिर भी लोग उसके साथ खड़े हैं। पुष्पा की बायको (मराठी में पत्नी) जब उसे मंत्री के साथ फोटो खिंचाने की बात कहती है और वो मंत्री मना कर देता है। उसके बाद पूरी की पूरी फिल्म बदल जाती है। हिंदी सिनेमा में लोग सोचेंगे कि इस पर कोई फिल्म कैसे बना सकता है। यहां किसी को इतना ही कहूंगा कि बायको शब्द जरूर रखो, तो बोलेंगे प्लीज इसे पत्नी से रिप्लेस कर दें।
यहां सिर्फ चकाचौंध चाहिए
हिंदी वाले महाराष्ट्र में काम तो कर रहे हैं, लेकिन उनको बायको शब्द नहीं पता होता, लेकिन साउथ में बैठे व्यक्ति को पता है कि बायको क्या है। वह डबिंग करते वक्त ध्यान में रखते हैं कि मेरा हीरो मराठी है, तो वह कैसे बात करेगा, इसलिए वह डबिंग श्रेयस तलपड़े से कराते हैं, जो खुद मराठी हैं। वह अपनी कहानी के अनुवाद में भी ध्यान रख रहे हैं कि उनका मुख्य पात्र किस जाति का होगा। हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। कारण यही है कि हिंदी सिनेमा के लोग मेहनत नहीं करना चाहते हैं। यहां सिर्फ चकाचौंध चाहिए, सिर्फ पैसा कमाना है।

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