Nimrat Kaur के पिता की आतंकियों ने कर दी थी हत्या, 30 साल बाद मेमोरियल बनने पर इमोशनल हुईं एक्ट्रेस
Nimrat Kaur शहीद आर्मी ऑफिसर मेजर भूपेन्द्र सिंह की बेटी हैं जो साल 1994 में आतंकी मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। 30 साल बाद पिता के जन्मदिन पर उनके होमटाउन में एक मेमोरियल बनाया गया है जिसके उद्घाटन पर एक्ट्रेस इमोशनल हो गईं। उद्घाटन की फोटोज शेयर करते हुए निम्रत कौर ने अपने दिल का हाल बयां किया है।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। एयरलिफ्ट और दसवीं जैसी फिल्मों में नजर आ चुकीं जानी-मानी अदाकारा निम्रत कौर (Nimrat Kaur) सिर्फ 11 साल की थीं, जब उनके पिता की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। निम्रत के पिता भूपिंदर सिंह मेजर थे, जिनकी शहीद होने से पहले कश्मीर में पोस्टिंग थी।
निम्रत कौर ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि 1994 में कश्मीर में उनके वर्किंग प्लेस से आतंकवादियों ने उनके पिता को किडनैप कर लिया था और आतंकियों को छुड़ाने की डिमांड की थी। एक हफ्ते के बाद निम्रत कौर के पिता की हत्या कर दी गई थी। 30 साल बाद शहीद मेजर के सम्मान में एक मेमोरियल बना है, जिसका उद्घाटन उनके परिवार ने किया है।
पिता के सम्मान में बना मेमोरियल
निम्रत कौर ने पिता के मेमोरियल उद्घाटन की फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह मेमोरियल के पास खड़ी होकर मां और बहन के साथ पोज दे रही हैं। वह एक तस्वीर में आर्मी ऑफिसर्स के साथ भी दिखाई दे रही हैं। इन फोटोज को शेयर करते हुए निम्रत कौर ने दिल छू लेने वाला नोट लिखा है।
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Nimrat Kaur at late father memorial inaugration- Instagram
निम्रत का सपना हुआ पूरा
उन्होंने कहा, "आज पापा की 72वीं जयंती पर मां, मेरी बहन और मैंने उनके नाम पर एक स्मारक का उद्घाटन किया, जिसमें न केवल उनके बल्कि राजस्थान के श्री गंगानगर से 12 अन्य वीर सैनिकों के राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान का सम्मान किया गया। 30 साल पहले जब से हमने उन्हें जम्मू-कश्मीर में 1994 में खोया है, तब से मेरा और मेरे परिवार का एक सपना आखिरकार सच हो गया।"
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पिता की बातें कर हुईं इमोशनल
लंच बॉक्स एक्ट्रेस ने आगे लिखा, "यहां तैनात स्थानीय सेना के जवानों के साथ गहरा समन्वय में नागरिक प्रशासन के अथक प्रयासों और समर्थन के लिए मैं दिल से कृतज्ञ हूं। पापा मिट्टी के बेटे थे, मोहनपुरा गांव में एक किसान परिवार में पैदा हुए। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक निडर और उग्रता के साथ नेतृत्व किया, जीवन जिया और मर गए। आज मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती कि मैं इस धरती पर खड़े होकर, उनके जन्मस्थान पर उनके नाम और जीवन की कहानी को अमर होते हुए देखकर कितना गौरवान्वित महसूस कर रही हूं, जो आज की और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर रहा है।"
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