क्या बॉलीवुड में अपनी पकड़ मजबूत बना रहा क्षेत्रीय सिनेमा? जानिए ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे' के निर्माता की राय
हालिया प्रदर्शित मराठी फिल्म ‘सबर बोंडा’ से निखिल आडवाणी बतौर कार्यकारी निर्माता जुड़े। सनडांस फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को ग्रैंड ज्यूरी प्राइज के अवार्ड से सम्मानित किया गया था। पढ़िए निखिल द्वारा निर्मित ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी रानी मुखर्जी के लिए उन्होंने कही क्या बात...

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कुछ वर्षों में तमिल, तेलुगु, मलयालम सिनेमा से आ रही कई फिल्मों को हिंदी पट्टी के दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया। उनको बॉक्स-आफिस पर सराहा गया है। उनके विषय भी काफी अलग रहे हैं। क्षेत्रीय सिनेमा क्या बालीवुड की तुलना में ज्यादा साहसिक कहानी ला रहा है? इस बाबत ‘वेदा’ फिल्म के निर्देशक निखिल आडवाणी कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि यह क्षेत्रीय सिनेमा की बात है। चाहे मराठी हो, बांग्ला या पंजाबी क्षेत्रीय सिनेमा में भी कई श्रेणियां हैं। पंजाबी में ‘जट एंड जूलियट’ जैसी विशुद्ध कामर्शियल फिल्म है। वहीं कई सशक्त विषयों पर पंजाबी फिल्में बनी हैं। पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे, विजय तेंदुलकर जैसे मराठी साहित्यकारों ने जो लिखा है, वह बेमिसाल है।
निखिल के लिए खास है ये साल
वहीं विशुद्ध मराठी सिनेमा भी है। यह क्षेत्रीय सिनेमा की बात नहीं है। यह बात है फिल्ममेकर की पसंद की। बांग्ला में एक तरफ सत्यजित राय, मृणाल सेन, रित्विक घटक, रितुपर्णो घोष जैसे फिल्ममेकर हैं, वहीं विशुद्ध सिनेमा भी है। यह सब जगह है। यह क्षेत्रीय वर्सेज बालीवुड की बात नहीं है।’ यह साल और अगला साल निखिल के लिए खास होने वाला है। वह फिलहाल अपने वेब शो ‘द रिवोल्यूशनरीज’ पर काम कर रहे हैं। इसकी कुछ दिनों की शूटिंग बची है, जिसे वे अगले महीने से शूट करेंगे। वहीं उनकी वेब सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ सीजन 2 भी अगले साल प्रदर्शित होगी।
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यह उनका पुरस्कार है
अभिनेत्री रानी मुखर्जी को इस साल फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। इस फिल्म के निर्माता निखिल आडवाणी हैं। रानी को अवार्ड मिलने से प्रफुल्लित निखिल कहते हैं, ‘रानी फिल्म ‘ब्लैक’ में किए गए अभिनय के लिए भी राष्ट्रीय पुरस्कार की हकदार थीं। मैं बहुत खुश हूं कि उन्हें पुरस्कार मिला। उन्हें पुरस्कार के लिए बधाई देने वालों में मैं आखिरी शख्स था। दरअसल, राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा के समय मुझे पता नहीं था कि रानी को अवार्ड मिला है, जबकि वो मेरे फोन कॉल का इंतजार कर रही थीं। वह इस पुरस्कार की हकदार थीं। मैं ऐसी कई फिल्मों के नाम गिना सकता हूं, जिसके लिए उन्हें यह पहले ही मिल जाना चाहिए था।’
तो खाली हो जाएगी दुनिया
बहुत बार यह प्रचार किया जाता है कि कई फिल्ममेकर फिल्मों की आड़ में अपना एजेंडा चला रहे हैं। निखिल स्वीकारते हैं कि फिल्म के जरिए अपनी बात कही जा सकती है। वह कहते हैं, ‘फिल्मों के जरिए एजेंडा बिल्कुल चलाया जा सकता है। आप अपनी फिल्म से क्या कहना चाहते हैं, उस पर यकीन होना चाहिए। आजकल की फिल्ममेकिंग बाक्स आफिस और पैसों की बात करती है। यश चोपड़ा, राज कपूर, बिमल राय, कुंदन शाह, सईद मिर्जा, सत्यजित राय भी फिल्मों के जरिए अपनी बात रखते थे। मनमोहन देसाई ने एंटरटेनमेंट के दायरे में धर्मनिरपेक्षता और एकता के बारे में बात की। असहमति लोकतंत्र की आधारशिला है। हर कोई हर बात पर सहमत हो जाएगा तो दुनिया खाली हो जाएगी।’
खत्म नहीं होना चाहिए प्रेशर
करियर के इस पड़ाव पर कौन सा दबाव झेलना मुश्किल होता है? सवाल के जवाब में निखिल कहते हैं, ‘मैं हमेशा इंटरनेट मीडिया से दूर रहने की कोशिश करता हूं, लेकिन फिर कोई फिल्म आ जाती है तो टीजर या ट्रेलर पोस्ट करने के लिए तीन दिन के लिए चला जाता हूं। फिर उसकी आदत होने लगती है। बहरहाल, अच्छी बात यह है कि हम कड़ी मेहनत करते हैं कि शुक्रवार का कोई तनाव न हो। अगर फिल्म न चले तो भी सोमवार को काम पर आ जाएंगे। तो वह दबाव नहीं है। बाकी हर शाट को ओके करने के लिए तो प्रेशर होता ही है कि क्या मुझे उसे ओके करना है क्योंकि अगले चार घंटे में 20 शाट खत्म करने हैं, लेकिन अगर प्रेशर नहीं होगा तो आप काम करना बंद कर देंगे।’
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