NSD से आईं 'जामताड़ा' फेम Monika Panwar से बड़ी स्टार ने छीनी बिग बजट फिल्म, ऐसे झोली में गिरी 'दुकान'
जामताड़ा से मशहूर हुईं मोनिका पंवार (Monika Panwar) जल्द ही दुकान (Dukaan Movie) में दिखाई देंगी जो 5 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म में अभिनेत्री ने सरोगेट मदर की भूमिका निभाई है। दैनिक जागरण से बातचीत में मोनिका पंवार ने बताया है कि कैसे उन्हें यह फिल्म मिली और इसके लिए उन्हें क्या मुश्किलें झेलनी पड़ीं।
प्रियंका सिंह, मुंबई। डिजिटल प्लेटफार्म पर चमकते सितारे बड़े पर्दे तक पहुंच गए हैं। उनमें एक नाम मोनिका पंवार (Monika Panwar) का भी है। ‘जामताड़ा– सबका नंबर आएगा’ वेब सीरीज से प्रसिद्ध होने वाली मोनिका अब ‘दुकान’ फिल्म में नजर आएंगी। पांच अप्रैल को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली यह फिल्म सरोगेसी के मुद्दे पर बनी है। मोनिका से प्रियंका सिंह की बातचीत के अंश...
‘दुकान’ फिल्म से कैसे जुड़ना हुआ?
इस फिल्म के मेकर्स ने मेरा वेब शो देखा था, जिसके बाद उन्होंने आडिशन लिया ताकि यह देख सकें कि मैं रोल में ठीक लगूंगी या नहीं। मुझे वैसे भी ऑडिशन की प्रक्रिया पसंद है। बहुत से कलाकारों को ऑडिशन के लिए पूछे जाने पर बुरा लगता है कि उनके काम पर सवाल उठाया जा रहा है।
ऐसा नहीं होता है। जो आपको काम दे रहा है, उसे यह समझने का पूरा हक है कि आप रोल के लिए फिट हैं या नहीं। हर फिल्मकार की प्रक्रिया अलग होती है, जिसकी इज्जत कलाकारों को करनी चाहिए।
इस फिल्म में आप सरोगेट मां बनी हैं। क्या चुनौतीपूर्ण रहा? मां बनने की भावना को समझना या गर्भवती दिखने के लिए प्रास्थेटिक मेकअप?
प्रास्थेटिक मेकअप कठिन तो था ही, जितने महीने की गर्भवती थी, उसके अनुसार पेट पर प्रोस्थेटिक किया जा रहा था, जो 10 से 15 किलोग्राम भारी था। यह किरदार भी कठिन था। कई अभिनेत्रियों ने इसके लिए मना कर दिया था, क्योंकि फिल्म में मेरा किरदार दो से तीन बार सरोगेसी से गुजरता है। गुजरात का उच्चारण पकड़ना भी आसान नहीं था।
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इसके लिए मैंने गुजरात के गांवों में काफी वक्त बिताया, स्थानीय लोगों से बातें कीं। जहां तक मां की भावना समझने वाली बात है तो इस फिल्म के निर्देशक चाहते थे कि इसमें मां-संतान वाला रिश्ता वैसा न दिखे, जैसा अक्सर फिल्मों में दिखाया जाता है। स्पष्ट था कि मां ऐसी नहीं थी, जो रोने पर बच्चे को पुचकारेगी। वह शायद हंस देगी।
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यह आपकी पहली फिल्म है, जो सिनेमाघर में प्रदर्शित होगी। बाक्स ऑफिस का कितना दबाव है?
मैं बस यही सोच रही हूं कि कंटेंट वाली फिल्में सिनेमाघर में आनी चाहिए। ऐसी फिल्में नजरिया बदलती हैं। मैं इस बात से भी इनकार नहीं करूंगी कि स्टार कौन है, लोग यह सवाल भी पूछते हैं, लेकिन केवल बड़ी फिल्में देखने दर्शक नहीं आते हैं, मेरे भीतर ऐसा विचार पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म ‘लापता लेडीज’ से आया है।
आपने कहा था कि केवल सुंदर चेहरों और अच्छे कपड़ों के लिए मुंबई न आएं। जो मेहनत की थी, वह सफल लग रही है?
हां, मुझे लगता है कला ही मायने रखती है। जब समानांतर सिनेमा का दौर शुरू हुआ था तो शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह समेत कई कलाकारों ने अभिनय की कला से ही लोगों को चौंकाया था। जब ओटीटी प्लेटफार्म आया तो दर्शकों को फिर आश्चर्य हुआ कि ऐसा कंटेंट भी हो सकता है।
उन्हें नए चेहरों से कोई दिक्कत नहीं थी। वह स्टार नहीं, केवल किरदार देख रहे थे। मैं यही मानती हूं कि लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो ऐसा काम करना होगा, जिसमें दम हो। दर्शकों का प्यार केवल काम के बलबूते पर ही कमाया जा सकता है।
आप एनएसडी से हैं। अभिनय सीखकर आना क्यों जरूरी लगा?
मैं फिल्मी परिवार से नहीं हूं। अभिनय सीखना जरूरी था। कई लोगों से सुना है कि अभिनय करने के लिए एक्टिंग की पढ़ाई जरूरी नहीं है। तीन साल कौन इसकी पढ़ाई में देता है। मगर मैंने सोच रखा था कि मुंबई जाने से पहले अभिनय सीखना ही है। समंदर में कूद रहे हैं तो तैराकी आनी ही चाहिए।
क्या आप भी किसी बड़े कलाकार या स्टार किड से रिप्लेस होने के दुख से गुजरी हैं?
हां, उसका दुख है, लेकिन मलाल नहीं। जो काम हाथ में है, उसकी इज्जत करती हूं। एक बड़े बजट के ऐतिहासिक फिल्म में बड़ी कलाकार ने रिप्लेस किया था। जब वह रोल हाथ से निकला था, तो बुरा लगा था। ऐसा नहीं था कि मैं यह सोच रही थी कि उस रोल को मैं ज्यादा बेहतर करती, बस कुछ किरदारों पर दिल आ जाता है। एक हफ्ते तक दुखी थी, फिर सब सामान्य हो गया था।
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