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    लाइट्स कैमरा एक्शन: फिल्म पैसों से नहीं लोगों से बनती है, दर्शकों के दिलों से होता है रिश्ता - महेश भट्ट

    जागरण डॉट कॉम के एंटरटेनमेंट शो लाइट्स कैमरा एक्शन में देखिए महेश भट्ट और उनकी बेटी पूजा भट्ट से विशेष बातचीत -

    By Rahul soniEdited By: Updated: Sun, 03 Feb 2019 03:18 PM (IST)
    लाइट्स कैमरा एक्शन: फिल्म पैसों से नहीं लोगों से बनती है, दर्शकों के दिलों से होता है रिश्ता - महेश भट्ट

    मुंबई। मशहूर डायरेक्टर और फिल्ममेकर महेश भट्ट फिल्म सड़क 2 डायरेक्ट कर रहे हैं। उनकी बेटी प्रसिद्ध अदाकारा रही हैं और फिल्ममेकर हैं। जागरण डॉट कॉम के एंटरटेनमेंट एडिटर पराग छापेकर से लाइट्स कैमरा एक्शन शो में विशेष बातचीत करते हुए दोनों ने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में जुड़ी कई बातों को शेयर किया। बातचीत पढ़ने के साथ पूरा इंटरव्यू का वीडियो नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं -

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    जब महेश भट्ट से पूछा गया कि वे पूजा भट्ट की एक्टिंग को मिस करते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि, पूजा बहुत डिसीप्लिन्ड एक्ट्रेस रही हैं। फिल्म डैडी के दौरान जब हम शूटिंग कर रहे थे तो उसके एक दिन पहले मुझे लगा कि क्या यह वाकई कर पाएगी। लेकिन पूजा का जो लहजा था उसमें कही न कही जज्बातों की गहराई थी। उस समय लगा कि हां यह कर लेगी। क्योंकि अभिनय के लिए जज्बातों का होना आवश्यक है।

    पूजा कहती हैं कि, बतौर फिल्ममेकर सम्मान मिल रहा है। फिल्म मेकिंग की एक प्रोसेस होती है। इस प्रोसेस की मैं रिस्पेक्ट करती हूं। क्योंकि हर एक व्यक्ति का इसमें योगदान होता है। सबसे बड़ी बात होती है पेशंस रखने की। इसलिए एक्टिंग को अब ज्यादा मिस नहीं करती।

    फिल्ममेकिंग को लेकर महेश भट्ट ने कहा कि, यह एक प्रोसेस है जिसमें कई बार आपको अकेले कॉर्नर में जाकर बैठना होता है और फिर सोच विचार करना पड़ता है। कई बार लोगों से बात नहीं करते क्योंकि नया आइडिया सोचना ज्यादा जरूरी होता है।

    1982 में आई अपनी फिल्म अर्थ को लेकर महेश भट्ट ने कहा कि, एक साल तक लोगों ने कहा कि नहीं चल पाएगी। क्योंकि कहानी बिल्कुल अलग है और कहा कि यह कैसे चल सकती हैं। लेकिन हम तो चार फ्लॉप के बाद एक साल और फिल्म लेकर घूमते रहे और नया इतिहास लिखा गया। महेश भट्ट कहते हैं कि फिल्में पैसों से नहीं बल्कि लोगों से बनती हैं। हमारे पास कई बार फाइनेंसर आते रहे हैं लेकिन हमने उन्हें वापिस लौटा दिया। क्योंकि जिस व्यक्ति के पार फिल्म बनाने का जज्बा है वह दर्शत तक पहुंच सकता है। आखिरकार फिल्ममेकर का रिश्ता दर्शक के दिल से होता है। 

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