JFF 2024: 'दर्शकों से जिंदा है रंगमंच...', अनुसूया वैद्य ने खोला सिनेमा और ऑडियंस के गहरा रिश्ते का राज
जागरण फिल्म फेस्टिवल में सिनेमा की दुनिया के बड़े सितारों ने शिरकत की। रंगमंच कलाकारों ने भी अपने विचारों से दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। अनुसूया वैद्य ने सिनेमा और रंगमंच के गहरे रिश्ते को समझाते हुए दर्शकों के महत्व पर खुलकर बात की। आइए रंगमंच से जुड़ी कुछ बड़ी शख्सियत के विचार सिनेमा और नाटक प्रदर्शन के बारे में जानते हैं।
रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। रंगमंच के लिए जो चीज सबसे अधिक प्रेरित करती है वो है दर्शकों की ऊर्जा। अगर कोई दर्शक नहीं होगा तो रंगमंच नहीं रहेगा। बिना दर्शक के अगर कलाकार अपना नाट्य प्रदर्शन करेगा तो फिर वो पूर्वाभ्यास हुआ, रंगमंच नहीं। रंगमंच के लिए दर्शकों का होना जरूरी है। ये बातें रंगमंच कलाकार अनुसूया वैद्य ने 'रंगमंच सिनेमा का व्याकरण है' विषय पर आधारित मास्टर क्लास में सिनेप्रेमियों से कहीं।
रंगमंच सिनेमा के साथ क्या रिश्ता रखता है?
रंगमंच आज के सिनेमा के साथ क्या रिश्ता रखता है, इस सवाल पर उन्होंने कहा, जब आप किसी रंगमंच के कलाकार को सिनेमा में देखते हैं तो ये पता चल जाता है कि ये रंगमंच का कलाकार है, क्योंकि उसका रंगमंच से जुड़ा व्याकरण बहुत अच्छा होता है। रंगमंच ने सिनेमा पर काफी प्रभाव छोड़ा है, चाहे वो लेखन हो, अभिनय या फिर निर्देशन। जब आप मनोज बाजपेयी, इरफान खान या नवाजुद्दीन सिद्दीकी को सिनेमा में देखते हैं तो उनके अभिनय में आपको रंगमंच का स्वाद चखने को जरूर मिलेगा। रंगमंच मेरा पूरा जीवन है। जब मैं 12 वर्ष की थी तब से रंगमंच के साथ जुड़ी हूं। अब 53 वर्ष हो गए हैं। मैंने अक्षरा प्रोडक्शन में भी अभिनय किया है। मुझे लगता है कि रंगमंच से जुड़े सभी लोग थोड़े पागल से होते हैं।
रंगमंच कलाकार मोहित त्रिपाठी ने बताया कि उनके कालेज के प्रोफेसर जावेद मलिक ने उन्हें रंगमंच के लिए काफी प्रोत्साहित किया था। बाद में वो मुंबई चले गए और सिनेमा में काम किया। वहां उन्हें महसूस हुआ कि रंगमंच उनका जुनून है और वो इसके बिना नहीं रह सकते, क्योंकि यह उन्हें सहज बनाए रखता है। फिर वह दिल्ली वापस आ गए और यहां खुद का एक ग्रुप बनाया और अब रंगमंच ही उनकी जिंदगी है। उन्होंने कहा कि मार्केट में आजकल ओटीटी और सिनेमा पर इतनी फिल्में बिक रही हैं कि कंटेंट की गुणवत्ता से काफी समझौता हो रहा है।
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Photo Credit- Jagran JFF
रंगमंच की विशेषता है डायलॉग
रंगमंच कलाकार केवल अरोड़ा ने कहा कि जब सिनेमा एक इंडस्ट्री के तौर पर शुरू हुई थी तो उसमें सारे रंगमंच के ही लोग गए थे, तो व्याकरण क्या वो तो पूरी वर्णमाला थी। रंगमंच का आज के सिनेमा से कैसा संबंध है, इस सवाल पर केवल ने कहा, आज के समय में जो भी व्यक्ति रंगमंच में जाता है, उसमें 90 प्रतिशत लोग असल में सिनेमा करना चाहते हैं। रंगमंच प्रशिक्षण सिनेमा के लिए एक फीडर उद्योग बन रहा है।
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रंगमंच की विशेषता उसके डायलॉग हैं। मेरे बहुत से छात्र हैं जो शुरुआत में तो रंगमंच को लेकर काफी उत्सुक दिखते हैं, फिर धीरे-धीरे गिनते हैं कि पांच वर्ष हो गए, छह वर्ष हो गए, अब सिनेमा में मौका मिले। उन्होंने बताया, जब मैं किरोड़ीमल में छात्र था तब थिएटर मुझे जो कुछ भी रोजाना दे रहा था उसे लेकर मुझे बड़ी उत्सुकता रहती थ, लेकिन मुझे ये भी पता था कि मुझे कोई नौकरी पकड़नी पड़ेगी और पढ़ाना मुझे काफी पसंद था।
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