JFF 2025: जागरण फिल्म फेस्टिवल में Jaideep Ahlawat ने खोला सफलता का राज, इन तीन बातों पर दिया जोर
Jagran Film Festival 2025 जागरण फिल्म फेस्टिवल के 13वें संस्करण में अभिनेता जयदीप अहलावत ने शिरकत की। इस दौरान उन्होंने कई अहम पहलूओं पर खुलकर बातचीत भी की और बताया कि वह किरदार के हिसाब से खुद किस तरह से तैयारी करते हैं। आइए इस लेख में जानते हैं कि उन्होंने क्या-क्या कहा।

शालिनी देवरानी l जागरण नई दिल्ली: जिंदगी में सफल होने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं, खुश रहना, फिट रहना और पढ़ना। अगर आप संघर्ष कर रहे हैं लेकिन रिजेक्शन और विफलता से दुखी हैं, तो आपके काम और व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक ऊर्जा झलकती है। आप हर परिस्थिति में खुश रहेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी।
दूसरी बात मानसिक और शारीरिक तौर पर हमेशा अपना ख्याल रखें। तीसरी बात खूब पढ़ें, आप एक हजार लोगों से नहीं मिल सकते लेकिन प्रेमचंद की कहानियां आपको हजारों किरदारों से मिला सकती हैं। आज की पीढ़ी पढ़ना पसंद नहीं करती, लेकिन किताबों से काफी कुछ सीखने को मिलता है। ये बातें अभिनेता जयदीप अहलावत ने जागरण फिल्म फेस्टिवल के दौरान बातचीत में कहीं।
किरदार के साथ खुद को ढालना- जयदीप
उन्होंने आगे अपने फिल्मी किस्से सुनाते हुए कहा कि एक कलाकार का काम स्क्रिप्ट में जादू डालना होता है। कहानी पढ़ते हुए जो मैं महसूस कर रहा हूं वो दर्शकों तक पहुंचे, ये मेरी जिम्मेदारी है। “पाताल लोक” में हाथीराम चौधरी के किरदार के लिए मुझे वजन बढ़ाने को कहा गया था। मैंने पूरी शिद्दत से किरदार निभाया। सुजाय घोष ने मुझे “जाने जां” की कहानी में इतना बताया था कि ब्यूटी एंड द बीस्ट जैसी थीम पर फिल्म है। किरदार के हुलिये के बारे में कुछ नहीं बताया, उन्हें लगता था मैं किरदार के हुलिये को जानकर मना कर दूंगा।
फोटो क्रेडिट- ध्रुव कुमार
लेकिन मैंने उस किरदार को देखकर ही फिल्म के लिए हां कहा था। इसी तरह “राजी” के लिए जब मेघना गुलजार ने मुझे स्क्रिप्ट दी तो मैंने पूछा कि 50 साल से ऊपर के किरदार के लिए मैं ही क्यों। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। अविनाश अरुण (फिल्म थ्री आफ अस के निर्देशक) मेरे अच्छे दोस्त हैं, उन्होंने फिल्म की कहानी मुझे सिर्फ पढ़ने के लिए भेजी थी। मुझे कहानी पसंद आई और प्रदीप कामत का रोल मांगा।
नायक की कहानी पर बोले अभिनेता
नायक की कहानी नहीं होती- जयदीप कहते हैं कि नायक की कहानी नहीं होती। हर कहानी का एक नायक होता है। इसलिए हमेशा किरदार पर फोकस करना चाहिए। मेरी कई फिल्मों के किरदार उम्र से बड़े रहे, लेकिन मैं सिर्फ कहानी देखता हूं। उसमें मेरा रोल कितना है या उम्र क्या है, ये मेरे लिए मायने नहीं रखता।
फोटो- ध्रुव कुमार
फिल्म में दो सीन भी हैं और वो फिल्म के बाद आपको और आडियंस को याद रह गए तो काफी है। इंडस्ट्री में ज्यादातर स्टार घर से तैयार होकर निकलते हैं और ऐसा नहीं होने पर असहज रहते हैं। मैं साधारण रहने में ही सहज महसूस करता हूं। घर से कान्फिडेंस लेकर निकलता हूं इसलिए कैसा भी रहूं असहज नहीं होता। जेएफएफ का आयोजन रजनीगंधा के सहयोग से किया जा रहा है।
बैकग्राउंड पर जयदीप की राय
पुराने दौर में फिल्में देखने का था मजा... मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूं। मुझे याद है पहले वीडियो होम सिस्टम (वीएचएस) पर फिल्में देखते थे। गांव में किसी के घर गाय का बछड़ा हुआ, किसी की नौकरी लग गई, किसी का लड़का हो गया... किसी भी बहाने गांव वाले मिलकर फिल्म देखते थे। आज समय बदल चुका है और फिल्म देखने के काफी विकल्प हैं, लेकिन उस दौर में जो मजा था वो आज नहीं है।
पाताल लोक सीजन-2 में काफी घबराहट थी, रातभर सोता नहीं था.. पाताल लोक सीजन-2 की शूटिंग के समय काफी घबराहट थी। शूटिंग की शुरुआत पर इतना तनाव था कि मैं रातभर सो नहीं पा रहा था। पहला सीन मुंबई में बने पुलिस स्टेशन के सेटअप में शूट होना था। शूटिंग वाले दिन मैं अंधेरे में ही सेट पर पहुंच गया। स्टेशन में जाकर हाथी राम की कुर्सी पर बैठा और ऐसा आराम मिला कि वहीं सो गया। इतने कम समय में ऐसी राहत भरी नींद मैंने कब ली थी मुझे याद भी नहीं है। मैंने काम करते हुए सीखा है जितना सहज रहेंगे उतना बेहतर करेंगे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।